नीतिशास्त्र
सही और गलत आचरण से संबंधित दर्शन की शाखा / From Wikipedia, the free encyclopedia
नीतिशास्त्र (अंग्रेजी- Ethics या Moral Philosophy; यूनानी-ἠθικός) जिसे आचारनीति, नीतिदर्शन या आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शनशास्त्र एवं मूल्यमीमांसा की वह शाखा है जो नैतिक मूल्यों के सिद्धांत एवं सही और गलत व्यवहार के अवधारणाओं के व्यवस्थिकरण,तर्कबद्ध बचाव तथा संस्तुति से संपृक्त है । यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके।
नीतिशास्त्र | |
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विद्या विवरण | |
अधिवर्ग | दर्शनशास्त्र, मूल्यमीमांसा |
विषयवस्तु | सही-गलत क्रिया,निर्णय व आचरण की नैतिक सारघटकों के आधार पर दार्शनिक विवेचना से संबंधित |
शाखाएं व उपवर्ग | |
प्रमुख विद्वान् | सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, सिसरो, एपिक्टेटस, एपिक्यूरस, सिटियम के ज़ेनो, हिप्पो के संत ऑगस्तिन, लूसियस सेनेका, संत थॉमस अक्वाइनस, स्पिनोज़ा, डेविड ह्यूम, इमैन्युएल कांट, जेरेमी बेन्थम, जॉन स्टुअर्ट मिल, जॉन रॉल्स, मार्था नॉस्बॉम |
इतिहास | नीतिशास्त्र का इतिहास |
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अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। नीतिशास्र मानव को सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है।
अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं।
नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं:
- अधिनीतिशास्त्र, जिसका संबंध नैतिक प्रस्थापनाओं के सैद्धांतिक अर्थ और संदर्भ से हैं, और कैसे उनके सत्य मूल्य (यदि कोई हो तो) निर्धारित किये जा सकता हैं
- मानदण्डक नीतिशास्त्र, जिसका संबंध किसी नैतिक कार्यपथ के निर्धारण के व्यवहारिक तरीकों से हैं
- अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र, जिसका संबंध इस बात से हैं कि किसी विशिष्ट स्थिति या क्रिया के किसी अनुक्षेत्र में किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए (या उसे क्या करने की अनुमति हैं)।
इसमें वकीलों ओर अपने पक्षकार को जो भी सलाह दी जाती है उसी के हिसाब से पक्षकार काम करने को बाधित होता है।