नैदानिक मनोविज्ञान
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नैदानिक मनोविज्ञान, clinical psychology मनोवैज्ञानिक आधार वाले संकट या दुष्क्रियता से बचाव तथा राहत प्रदान करने या व्यक्तिपरक स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने वाला एक एकीकृत विज्ञान, सिद्धांत तथा नैदानिक ज्ञान है।[1][2] इस पद्धति के केंद्र में होते हैं मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन तथा मनोचिकित्सा; यद्यपि नैदानिक मनोवैज्ञानिक, अनुसंधान, शिक्षण, परामर्श, विधि चिकित्साशास्त्र संबंधी साक्ष्य (forensic testimony) तथा कार्यक्रम विकास एवं प्रशासन में भी संलिप्त होते हैं।[3] कई देशों में नैदानिक मनोविज्ञान एक नियंत्रित मानसिक स्वास्थ्य पेशा है।
इस क्षेत्र का आरंभ, प्रायः वर्ष 1896 में पेंसिल्वैनिया विश्वविद्यालय में लाइटनर विट्मर (Lightner Witmer) द्वारा प्रथम मनोवैज्ञानिक चिकित्सालय की स्थापना के साथ माना जाता है। 20वीं शताब्दी के प्रथमार्ध में नैदानिक मनोविज्ञान मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन पर केंद्रित था, जिसमें उपचार पर कम ध्यान दिया जाता. 1940 के दशक के बाद, जब द्वितीय विश्व युद्ध में प्रशिक्षित चिकित्सकों की बड़ी संख्या में आवश्यकता हुई, तब इसमें बदलाव आया। तब से लेकर आज तक दो प्रमुख शैक्षणिक प्रारूपों का विकास हुआ- पीएचडी विज्ञान-चिकित्सक प्रारूप (नैदानिक अनुसंधान पर केंद्रित) और मनोवैज्ञानिक (Psy.D.)- चिकित्सक-विद्वान प्रारूप (नैदानिक चिकित्सा पर केंद्रित). नैदानिक मनोवैज्ञानिक अब मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ माने जाते हैं, तथा वे सामान्यतः चार प्रमुख प्राथमिक सैद्धांतिक अभिमुखन- मनोगतिकी, मानविकी, व्यवहार उपचार/संज्ञानात्मक स्वभावजन्य तथा प्रणालियों या पारिवारिक उपचारों में प्रशिक्षित होते हैं।