मनका
भारत के बिहार राज्य का एक गाँव / From Wikipedia, the free encyclopedia
गुरिया या मनका (bead) ऐसे बंधे हुए दानों को कहते हैं जिन्हें पिरोकर माला बनाई जाती है या जिनसे बनी झालरें सजावट के लिए वस्त्रों में लगाई जाती हैं। 'गुरिया' शब्द का मूल संस्कृत का 'गुटिका' शब्द है और 'मनका' का मूल संस्कृत ही का 'मणिका' शब्द है।
मनुष्य कब से गुरिया बनाता रहा है, यह कहना कठिन है। जीवश्मों से निर्मित्त पुरापाषाण काल के कुछ ऐसे दाने प्राप्त हुए हैं जिनके संबंध में विश्वास किया जाता है कि वे उस काल में मनुष्यों द्वारा गुरियों की भाँति प्रयुक्त होते थे। ज्यों ज्यों समय बीतता गया, सजावट की इच्छा पूरी करने के लिए मनुष्य ने अन्य पदार्थों का भी उपयोग करना आरंभ किया। 6,000 वर्ष पूर्व की, हड्डियों तथा दुर्लभ पत्थरों इत्यादि की बनी गुरियाँ भी अनेक संग्रहालयों में देखी जा सकती हैं। आधुनिक काल में मनके विविध पदार्थों से बनाए जाते हैं। भारतीय ग्रामीण मेलों में बिकनेवाली बच्चों की मालाएँ बहुधा चटक रंगों में रँगे मटर के दानों से बनती हैं, किंतु बहुमूल्य मालाएँ मूंगे और मणियों को बेधकर तथा सोने के तार में पिरोकर बनाई जाती हैं।
यूरोप में चेकोस्लोवेकिया देश का गैब्लॉंज़ (Gablonz) क्षेत्र गुरिया उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से सारी दुनिया में मनके भेजे जाते हैं। किसी समय यहाँ केवल सैलूलाइड की मूंगे जैसी गुरियाँ बनती थीं, किंतु अब ये प्लास्टिक, काँच, लकड़ी, सींग, कछुए के कवच इत्यादि की बनती हैं। चीन और जापान में हाथीदाँत और हड्डियों के नक्काशीदार मनके बनते हैं। यूरोप आदि देशों में गुरियों का फैशन समय समय पर बदलता रहता है और उसी के अनुसार विभिन्न प्रकार के मनकों की खपत होती है। अब प्लास्टिक की गुरियों का प्रचलन अधिक हो गया है।