ओलचिकी लिपि
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ऑल चिकी एक भारतीय लिपि है, जो संथाली भाषा लिखने में प्रयुक्त होती है। इसका आविष्कार पंडित रघुनाथ मुर्मू ने वर्ष 1925 में किया था। यह संताली के लिए आधिकारिक लेखन प्रणाली है, जो भारत में एक आधिकारिक क्षेत्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त एक आग्नेय भाषा है। इसमें 30 अक्षर हैं, जिनके रूपों का उद्देश्य प्राकृतिक आकृतियों को उद्घाटित करना है। लिपि बाएँ से दाएं लिखी गई है, और इसके दो रूप हैं (चपा और उसरा); बाद वाले का यूनिकोड नहीं है। दोनों रूपों में, इस वर्णमाला का आविष्कार बिना किसी अक्षर केस के हुआ था।
ऑल चिकी | |
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प्रकार | वर्णमाला |
भाषाएँ | संथाली भाषा |
आईएसओ 15924 | Olck, 261 |
दिशा | बाएँ-से-दाएँ |
यूनिकोड एलियास | Ol Chiki |
यूनिकोड रेंज | U+1C50–U+1C7F |
नोट: इस पृष्ठ पर आइपीए ध्वन्यात्मक प्रतीक हो सकते हैं। |
संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में इस लिपि को लेकर संताली विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों के बीच हल्का विवाद है। कुछ लोग इस लिपि के पक्ष में हैं तो कुछ इसके विरोध में हैं। संथाली भाषा ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में अपने अलग-अलग बोली उच्चारण के साथ बोली जाती है। अर्थात इसका उच्चारण उसी राज्य की मुख्य भाषा के साथ मिला कर किया जाता है। कहा जाता है कि झारखंड के संथाल परगना के सभी जिलों में यह बिना बाहरी भाषाओं के मेल से बोला जाता है। इसलिए इसे ही शुद्ध संताली या सही उच्चारित संताली कहा जाता है। संथाल परगना के कुछ संताली विशेषज्ञों के अनुसार यह कहा जाता है कि संताली भाषा में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिन्हे यहां के बोली उच्चरण के अनुसार ओलचिकी में नहीं लिखा जा सकता है यानी ओलचिकी लिपि संताली के लेखन की आवशयकता की पूर्ति नहीं कर पाता है। इस कारण अभी भी इस लिपि पर विवाद बना हुआ है।