खड़ीबोली
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खड़ी बोली निम्नलिखित स्थानों के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है! मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड़, बागपत,बिजनौर,मुरादाबाद,संभल,अमरोहा, शामली, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देहरादून व नैनीताल के मैदानी भाग, हरिद्वार, उधम सिंह नगर,अम्बाला, कलसिया और पटियाला के पूर्वी भाग,खड़ी बोली क्षेत्र के पूर्व में ब्रजभाषा, दक्षिण-पूर्व में मेवाती, दक्षिण-पश्चिम में पश्चिमी राजस्थानी, पश्चिम में पूर्वी पंजाबी और उत्तर में पहाड़ी बोलियों का क्षेत्र है। मेरठ की खड़ी बोली आदर्श खडी बोली मानी जाती है जिससे आधुनिक हिन्दी भाषा का जन्म हुआ, वही बांगरू और, जाटकी या हरियाणवी एक प्रकार से पंजाबी और राजस्थानी मिश्रित खड़ी बोली ही हैं जो दिल्ली, करनाल, रोहतक, हिसार और पटियाला, नाभा, झींद के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है।
खड़ी बोली | |
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बोलने का स्थान | हिंदी बेल्ट |
मातृभाषी वक्ता | – |
भाषा परिवार |
हिन्द-यूरोपीय
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लिपि | Devanagari, Perso-Arabic |
भाषा कोड | |
आइएसओ 639-3 | – |
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खड़ी से 'खरी' का अर्थ लगाया जाता है, अर्थात् शुद्ध अथवा ठेठ हिन्दी बोली। उस समय जबकि हिन्दुस्तान में अरबी-फारसी या हिन्दुस्तानी शब्द मिश्रित उर्दू भाषा का चलन था, या अवधी या ब्रज भाषा का। ठेठ या शुद्ध हिन्दी का चलन नहीं था। लगभग 18वीं शताब्दी के आरम्भ के समय कुछ हिन्दी गद्यकारों ने ठेठ हिन्दी बोली में लिखना शुरू किया। इसी ठेठ हिन्दी को'खरी हिन्दी' या 'खड़ी हिन्दी' कहा गया। शुद्ध अथवा ठेठ हिन्दी बोली या भाषा को उस समय साहित्यकारों द्वारा खरी या खड़ी बोली के नाम से सम्बोधित किया गया था।
खड़ी बोली वह बोली है जिसपर ब्रजभाषा या अवधी आदि की छाप न हो। ठेठ हिन्दी। आज की राजभाषा हिन्दी का पूर्व रूप। इसका इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा है। यह परिनिष्ठित पश्चिमी हिन्दी का एक रूप है।