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बिंदुसार (297 ईपु - 273 ईपु) चाहे अमित्रघात ( संस्कृत: सत्रू सभ के बिनासक) चाहे अमित्रोघेट्स ( यूनानी: Ἀμιτροχάτης) मौर्य कुल के दोसरका सम्राट रहलें। ई मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के बेटा आ एह बंस के सभसे परसिद्ध शासक अशोक के पिता रहलें। बिंदुसार के जिनगी के दिया ओतना नईखे लिखाईल जेतना चंद्रगुप्त भा अशोक दिया लिखाईल बाटे।
बिंदुसार | |
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अमित्रघात | |
दोसरका मौर्य सम्राट | |
Reign | ल॰ 297 – c. 273 BCE |
Coronation | c. 297 BCE |
Predecessor | चंद्रगुप्त मौर्य (पिता) |
Successor | अशोक (पुता) |
Died | c. 273 BCE |
Dynasty | मौर्य |
Father | चंद्रगुप्त मौर्य |
Mother | दुर्धरा |
बिंदुसार दिया बेसी बात जैन आ बौद्ध ग्रंथन से पता लागेला। बिंदुसार चंद्रगुप्त मौर्य के पूत रहन। चंद्रगुप्त सेल्योक्स १ निकेटर के धीया से बियाह कइले रहन एहसे लोग इहो मानेला जे बिंदुसार के माई यूनानी रही बाकिर एकर केवनो साक्ष्य ना मिलस। बारहामा सताबदी मे हेमचंद्र के लिखल जैन ग्रंथ परिशिष्टपरवन मे लिखल बा जे इनकर माई के नांव दुर्धरा बाटे।
बौद्ध ग्रंथ दीपवंस आ महावंस मे बिंदुसार के बिंदुसारो लिखल बा। जैन ग्रंथ जइसे की परिशिष्ठपर्वन आ हिन्दू ग्रंथ जइसे विष्णु पुराण मे इनकर नांव विंदुसार लिखल बा।[1][2] आउरो सभ पुराण मे चन्द्रगुप्त के पूत के नांव दिहल बा जेकरा के लेखन संबंधी भूल मानल जा सकेला; श्रीमद्भागवत मे वरिसार चाहे वरिकार लिखल बा आ वायू पुरान मे भद्रसार चाहे नंदसार लिखल बाटे।[3]
महाभाष्य मे चन्द्रगुप्त के पूत के नांव अमित्रघात देल बाटे।[4] यूनानी लेखक लोग इनकरा अलित्रोघेट्स चाहे अमित्रोघेट्स कहले बा। बिंदुसार के देवानंपिय ओ कहल बाटे जे बाद मे असोको के कहल गइल। जैन ग्रंथ राजावली कथा मे इनकरा सिंहसेना कहल गइल बा।[5]
बौद्ध आ जैन ग्रंथन के खीसा सभ मे ई लिखल बा जे बिन्दुसार के हुनकर नांव कइसे मिलल। दुनो मे लिखल बा जे चाणक्य चन्द्रगुप्त प माहूर के असर के काटे ला हुनकर जेवनार मे प्रतिदिन तनी सा माहुर फेंटत रहन। चन्द्रगुप्त ई ना जानत रहन आ एकदिन आपन गाभिन मेहरारू के आपना मे खियवलन। बौद्ध ग्रंथन मे लिखल बा जे रानी सात दिन मे लईका जने के रही, चाणक्य जब जनलन जे रानी अब ना बचिहें, ऊ तलवार से हुनकर मुड़ी अउर पेट काट देलन आ लईका के निकारि देलन, फेर सात दिन ले ओह लईका के मरल बकरियन के पेट मे धइलन। सात दिन प बिंदुसार जनमलन आ हुनकर नांव बिंदुसार एहसे धराइल काहेकी हुनकर देहि प बकरी के खून के ठोप (बिंदू) चुवत रहे।[6] जैन ग्रंथ परिशिष्ठपर्वन मे लिखल बा जे रानी जसहिं मुअली चाणक्य हुनकर पेट काट के लईका निकार लेलन, तले माहुर के एगो ठोप लईका के माथा ले आ गइल रहे एही से हुनकर नांव बिंदुसार धाराइल।[7]
असोकवदान मे बिंदुसार के तीनगो पुतन के नांव दिहल बा: सूसिम, असोक आ वितासोक। असोक आ वितासोक के महतारी सुभद्रांगी रही जे की चंपापुरी के रही। हुनकर जनम प एगो जोतिस कहले रहे जे एकर एगो पूत राजा होई आ एगो पुजेडी। हुनकर सेयान भइला प हुनकर पिता हुनका पाटलिपुत्र मे बिंदुसार के राजभवन लिआ गइलें। बिंदुसार के मेहरारू सुभद्रांगी के सुघरई के देखि जरनिआही मे हुनकरा राज के नाऊ बनइली। एक दिन बिंदुसार होकर बार बनावल देख के खुस भ गइलें त ऊ आपन रानी बने के इच्छा धइली। पहिले तऽ बिंदुसार होकर कुल के चलते ना कहले बाकिर जब पता लागल की ई ऊँच कुल के हई तऽ हुनकरा आपन मूख रानी बनाई लिहलें। ई जोड़ी के दुगो पूत भइल असोक आ वितासोक। बिंदुसार के असोक ना सोहात रहन एहसे की हुनकर देह के बानवट नीक ना रहे।
दिव्यदान के दोसरका खिसा मे जनपदकाल्यानी के असोक के महतारी कहल गइल बा।[8] वमसट्ठप्पकसिनी मे धम्मा के असोक के महतारी लिखल बाटे। महावंस कहेला जे बिंदुसार 101 पूत आ 16 मेहरारू रहे। हेमे सभ से बड़ सुमन रहे आ सभ से लहुर तिस्सा रहे। असोक आ तिस्सा एक्के माई ले जनमल रहे।[9]
इतिहासकार उपेन्द्र सिंह अनुमान लगवले बाड़न जे बिंदुसार 297 ईशा पूर्व मे सम्राट बनल होइहन।[4]
सोरहमा सताबदि के तिब्बत के लेखक तारानाथ लिखले बाड़न जे बिंदुसार सोरह गो नगर के जीतल रहन। शैलेन्द्र नाथ कहेलन जे बिंदुसार राज के बिस्तार ना कईलन।
महावंस मे लिखल बा जे बिंदुसार असोक के उज्जैन के प्रसासक बनवलन।[9] असोकवदन कहेला जे बिंदुसार तक्षशीला के बिद्रोह के खतम करे ला असोक के भेजले रहन। बिंदुसार असोक के हथियार आ सेना ना दिहलन तब देव लोग आपन चमतकार से असोक के सेना दिहलन। जहिया सेना तक्खसिला चहुपल ओहिजा के लोग असोक से कहलस जे उ लोग के खाली बिंदुसार के मंत्रियन से दिक्कत बाटे बाकिर सम्राट से केवनो ओरहन नइखे। असोक बिना कोनो रोकावट के नगर मे ढुकलन आ देव लोग कहलस जे एक दिन ऊ सउसे पिरथी प राज करिहन। बिंदुसार के मुअला प फेर तक्खसिला देने बीद्रोह भइल आ अबरी सुसिम के बिदरोह मे भेजल गइल बाकिर उ सफल ना हो पइलन।
रजावली कथा कहेला जे चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री चाणक्य हुनकरा बिंदुसार के गद्दी प बइठावे के सलाह दिहलन।[10] परिशिष्ठपर्वन कहेला जे चाणक्य बिंदुसारो के प्रधानमंत्री रहलन। एहमे एगो खिसा बा जेकरा मे लिखल बा जे चाणक्य एगो सुबंधू नांव के बेकत के मंत्री बनावे के सलाह दिहलन। बाकिर सुबंधू से जरत रहन आ हुनकरा ले बड़ मंत्री बनल चाहत रहन एहिसे ऊ बिंदुसार से कहलन जे चाणक्य हुनकर माई के पेट चिर देले रहन। एह बिंदुसार दोसर लोग के एह बात के पतियावत देखलन तऽ ऊ चाणक्य से नफरत करे लगलन। चाणक्य जवन की पहिलहीं बुढ़ा गइल रहन सभ छोड़ि के संथारा ले लिहलन। बादी मे जहिया बिंदुसार के आपन जनम के सांच पता लागल तऽ ऊ चाणक्य भीरी फेनु से मंत्री बने के निहोरा कइलन। जब चाणक्य एह बात के ना सकरलन तऽ बिंदुसार सुबंधू के चाणक्य मनावे ला कहलन। चाणक्य के मनावे के जगहा प सुबंधू हुनकरा जरा के मुआ देताड़न। बादि मे चाणक्य सरपला के चलते सुबंधू ओ के सभ छोड़ के भिक्खु बने पड़ि जाता।[7][11]
असोकवदन कहेला जे बिंदुसार पान सए गो मंत्री रहऽसन जेमे से खल्लतक आ रधागुप्त असोक के बिंदुसार के मूअला प सम्राट बने मे सहायता कइले रहऽसन।
बिंदुसार यूनानी लोगन जोर हित नाता लेखा संबंध बनाई जे धइलन। दैमाकोस बिंदुसार के दरबार मे यूनानी राजा एंटियोकस के राजदूत रहन।[12][13][14] दैमाकोस "ऑन पिटी" नांव के एगो किताबो गहले रहन।[15] तीसरका सताबदि के यूनानी लेखक एंथिएनस आपन डिनोसोफिस्ट नांव के पुस्तक मे, हेगसेंदर के लेख के आधार प लिखले बाड़न जे: बिंदुसार एंटियोकस से मीठ दारू, सूखाइल अंजीर आ एगो सोफिस्त (सिक्षक) भेजे ला कहलन।[16] एंटियोकस कहलन जे ऊ दारु आ अंजिर भेज दीहें बाकिर यूनान के नियम सोफिस्त भेजे के इजाजत ना देला।[17][18][19] बिंदुसार के सोफिस्त भेजे के से पता लागेला जे उ यूनानी दरसन सिखल चाहत होइहन। [20]
डायोडोरस कहलन जे "पालीबोथरा" (पाटलिपुत्र) के सम्राट, यूनानी लेखक लैंबलस के सुआगत कइलन। एह सम्राट के लोग बिंदुसार नांव से चिन्हेला।
बौद्ध ग्रंथ समंतपासादिक आ महावंस कहेला जे बिंदुसार ब्राह्मण धरम के मानत रहन आ हुनकरा "ब्राहमन भत्तो" कहले बा।[22][23] जैन स्त्रोत सभ कहेला जे बिंदुसार के पिता चन्द्रगुप्त जैन धरम अपना लिहले रहन। बाकिर ऊ सभ बिंदुसार प चुप रहले आ बिंदुसार जे जैन साबित करे के कोनो साक्ष्य नइखे।[24] साँची मे मिलल बुद्ध धरम के मंदिर से ई पता लागेला जे बिंदुसार बौद्ध धरम के मानत रहन।[4][21]
बौद्ध स्त्रोत सभ कहेला जे बिंदुसार दरबार के एगो अजीविक जोतीस असोक के महान सम्राट बने के भविसबानी कइले रहे।[25] अलग अलग ग्रंथन मे एह बेकत के नांव पिंगलवत्स आ जानसन देल बा।
दिव्यदान कहेला जे राजकुमार सभ के खेलत देखत घड़ी बिंदुसार पिंगलवत्स से पूछलन जे एहमे से के सम्राट बने जोग बा, तऽ पिंगलवत्स असोक के नांव लीहलें बाकिर कोनो ठोस जबाब ना दिहलें काहेकि बिंदुसार असोक के ना मानत रहन। बाकिर सुभद्रंगी से ऊ असोक दिया कहले रहन। रानी हुनका से राज दरबार छोरे के कहली एहसे पहिले सम्राट हुनकरा से बरजोरि नांव पूछस। बिंदुसार के मूअला प पिंगलवत्स फेर दरबार मे आ गइलन।[25]
महावंस कहेला जे रानी के कुलूपग (कुल के जोगी) रहलें। ऊ कस्सप बुद्ध बजी एगो अजगर मे जनमल रहन आ भिक्खु सभ के बात सुनि के बहुते बुद्धिमान हो गइल रहन। ऊ दरबार छोड़ देले रहन। असोक के सियान भइला प सुभद्रंगी असोक के भविसबानी बतइली। असोक फेर हुनकरा के दरबार मे बोलवन आ पाटलिपुत्र आवत बजी ऊ बिच्चे मे बौद्ध धरम के अपना लिहऽताड़न।
ऐतिहासिक साक्ष्य से पता लागेला जे बिंदुसार 270 ईशा पूर्व मे मुअल रहन। उपेन्द्र सिंह कहेलन जे बिंदुसार 273 ईशा पूर्व मे मुअल रहन। एलेन डेनिअलोऊ कहेलन जे बिंदुसार 274 ईशा पूर्व मे मुअल रहन। शैलेन्द्र नाथ सेन मानेलन जे बिंदुसार 273 ईशा पूर्व मे मुअल रहन आ ओकर चार बरिस बाद असोक सम्राट भइलन।[26]
महावंस कहेला जे बिंदुसार आठाइस बरिस ले राज कइलन आ पुरान केहला जे ऊ पचीस बरिस के राज कइलन।[27] बौद्ध ग्रंथ मञ्जुश्रीमूलकल्प कहेला जे ऊ 70 बरिस ले राज कइलन बाकिर ई सही नइखे।[28]
सवँसे स्त्रोत ईहे कहेला जे बिंदुसार के मुअला प असोके सम्राट बनलन, भले सम्राट बने के परकिरिया सभन मे एक ना देले होखे। महावंस मे लिखल बा जे असोक उज्जैन के प्रशासक रहन आ बिंदुसार के मुअला प ऊ पाटलिपुत्र अइलन आ आपन निनानबे भाइयन के मार के सम्राट बनलन।
आसोकवदन मे लिखल बा जे, सुसिम जिनकरा बिंदुसार सभ से बेसी मानत रहन ऊ आपन लोहा के दसताना खल्लतक के देहि प बिग दिहलन, एह से खल्लतक लागल जे सुसिम सम्राट बने जोग नइखन। एहिसे ऊ 500 मंतरियन के सभा मे आसोक के सम्राट बनावे के बात कहलन आ संगे संगे इहो कहलन जे देवता लोग आसोक के महान सम्राट बने के असिस देले बाड़न। तानिए दिन प बिंदुसार बेमार भ गइलन आ सुसिम के सम्राट आ असोक के तक्खसिला के परसासक के आदेश दिहलन। ओह घड़ी सुसिम के तक्खसिला भेजल रहे जेने ऊ बिद्रोह के समाप्त करे के परयास करत रहन। जब सम्राट मुए के रहन तऽ मंत्री लोग बोलल जे अबहिन जहिया ले सुसिम पाटलिपुत्र नइखन आवत तले असोक के सम्राट बनाई दिहल जाव। बाकिर बिंदुसार एह सलाह प खिसिया गइलन। फेर असोक कहलन जे जदि हुनकर सम्राट बनल भाग मे लिखल बा तऽ देवता लोग अपने हुनकरा सम्राट बनइहन। बिंदुसार जसही मुअलन तसही देवता लोग असोक के मुकुट पेन्हा दिहलन। जब सुसिम ई खबर जनलन तऽ ऊ पाटलिपुत्र अइलन। बाकिर असोक के संघाती आ मंत्री राधागुप्त हुनकरा के जरत भट्टी मे धकेल के मुआ दिहलन।[29][30]
राजावली कथा मे लिखल बा जे बिंदुसार असोक के सम्राट बनाई के सन्यास ले लिहऽताड़न।[10]
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