सुदामा पांडे "धूमिल" (9 नवंबर 1936 – 10 फरवरी 1975) हिंदी भाषा के कवि रहलें। बनारस के धूमिल हिंदी साहित्य के साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कवी मानल जालें[1][2], आ उनके बागी तेवर[3] खातिर जानल जाला।

धूमिल के जिनगी रहत, खाली एक ठो कबिता-संग्रह छपल संसद से सड़क तक आ दुसरा संग्रह मरे के बाद छपल, कल सुनना मुझे, दुसरका खातिर उनके साहित्य अकादमी के पुरस्कार मिलल।

धूमिल के निधन 38 बरिस के उमिर में ब्रेन ट्यूमर (दिमागी गाँठ) से हो गइल।

जिनगी

धूमिल के जनम उत्तर प्रदेश के बनारस के लगे खेवली नाँव के गाँव में 9 नवंबर 1936 के भइल।[4] उनके नाँव सुदामा पांडे रहल आ ऊ एक ठो निचला तबका के परिवार से रहलें। 12 बरिस के उमिर में मूरत देवी से बियाह भइल। 1953 में हरहुआ से हाईस्कूल पास कइलें। कमाई करे खातिर कलकत्ता गइलेन आ कुछ दिन मजूरी करे के परल।

बाद में बनारस में आ के इलेक्ट्रानिक्स में आईटीआई क के नोकरी करे लगलें।

असह कपार दरद के सिकाइत पर उनके काशी विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज में दाखिल करावल गइल जहाँ डाक्टर लोग दिमाग में गाँठ (ब्रेन ट्यूमर) बतावल। लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज में भरती करा के आप्रेसन भइल जेकरा बाद कोमा में चल गइलें आ बेहोसी के दसा में 10 फरवरी 1975 के दुनिया से गुजर गइलें।

परभाव

धूमिल के बागी कवी मानल जाला। आजादी का बाद, यानि उपनिवेशी शासन के खतम होखे के बाद, के राजीनीत के ले के उनुका मन में भयानक त्रास के भाव रहल आ ई उनुका कबिता के प्रमुख बिसयन में से एक रहल बा।[5]

अशोक वाजपेयी के शब्द में: "धूमिल कबिता के मुनासिब कार्रवाई मानें: कबिता खातिर जवन कामचलाऊ रवइया अनेक नया प्रगतिशील लोगन में बा ओकरा से ऊ सर्वथा मुक्त रहलें..." आ "...धूमिल के प्रासंगिकता एह बात में बा कि ऊ अपने कवित्त के आचरण से सिद्ध कइलें कि कबितइयो प्रामाणिक कर्म हवे।"[6]

धूमिल के जयंती हर साल उनका गाँव खेवली में मनावल जाला।[7][8]

संदर्भ

बाहरी कड़ी

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