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अभियान्त्रिकी वह विज्ञान तथा व्यवसाय है जो मानव की विविध जरूरतों की पूर्ति करने में आने वाली समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है। इसके लिए वह गणितीय, भौतिक और प्राकृतिक विज्ञानों के ज्ञानराशि का उपयोग करती है।
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अभियान्त्रिकी भौतिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है; औद्योगिक प्रक्रमों का विकास एवं नियंत्रण करती है। इसके लिए वह तकनीकी मानकों का प्रयोग करते हुए विधियाँ, डिज़ाइन और विनिर्देश प्रदान करती है।
'इंजीनियरिंग' और 'इंजीनियर' की उत्पत्ति फ्रेंच शब्दों Ingénierie और ingenieur से हुई है। ये शब्द पुरानी फ्रेंच के 'engigneor' से व्युत्पन्न हैं जिसका अर्थ 'युद्ध-मशीन का निर्माता'। [1]
अंग्रेजी के 'इंजीनियरिंग' और 'इंजीनियर' शब्द यद्यपि उच्चारण में फ्रेंच शब्दों के समान ही हैं किन्तु उनकी उत्पत्ति बिल्कुल अलग स्रोत से हुई है। इतना ही नहीं, इनकी व्युत्पत्ति 'इंजन' (engine) शब्द से नहीं हुई है (जैसा कि अधिकांश लोग सोचते हैं)। 'अभियांत्रिकी' का अंग्रेजी भाषा में पर्यायवाची शब्द "इंजीनियरिंग" है, जो लैटिन शब्द "इंगेनिउम" (ingenium) से निकला है; इसका अर्थ 'स्वाभाविक निपुणता' है।
निकट भूतकाल में अभियांत्रिकी शब्द का जो अर्थ कोश में मिलता था वह संक्षेप में इस प्रकार बताया जा सकता है कि
किंतु यह सीमित परिभाषा अब नहीं चल सकी। अभियांत्रिकी शब्द का अर्थ अब एक ओर नाभिकीय अभियांत्रिकी (न्यूक्लियर इंजीनियरिंग) के उच्च वैज्ञानिक और प्राविधिक क्षेत्र से लेकर मानवीय गुणों से संबंधित विषयों, जैसे श्रमिक नियंत्रण प्रबंधीय कार्यक्षमता, समय और गति का अध्ययन इत्यादि, अनेक प्रायोगिक विज्ञानों के विस्तृत क्षेत्र को घेरे हुए है। अत: अभियांत्रिकी की इस प्रकार परिभाषा करना अधिक उपयुक्त होगा कि "यह मनुष्य की भौतिक सेवा के निमित्त प्राकृतिक साधनों के दक्ष उपयोग का विज्ञान और कला है"।
ऐतिहासिक रूप से इंजीनियरी का उपयोग सबसे पहले सेना और सैनिक कार्यों में हुआ। इसके बाद जब इसका उपयोग असैनिक कार्यों (सड़क, पुल, भवन आदि का निर्माण) के लिये होने लगा तो नयी शाखा का नाम पड़ा - 'सिविल इंजीनियरी' (असैनिक इंजीनियरी)। समय के साथ इंजीनियरी के अन्य क्षेत्रों का विकास हुआ जिनकी प्रकृति सिविल इंजीनियरी से भी अलग थी और उन्हें 'यांत्रिक इंजीनियरी', 'वैद्युत इंजीनियरी' आदि नाम दिया गया।
सिविल इंजीनियरी (सर्वेक्षण इंजीनियरी तथा मानचित्र निर्माण सहित), यांत्रिक इंजीनियरी और विद्युत इंजीनियरी इंजीनियरी की परम्परागत शाखाएँ हैं। खनन इंजीनियरी, धातुकर्म और खान सर्वेक्षण का भी ऐतिहासिक महत्त्व है। वास्तुकला या स्थापत्य कला (आर्किटेक्चर) में इंजीनियरी और दृष्य कलाओं का सम्मिश्रण है।
अभियांत्रिकी की अनेक शाखाओं में, जैसे जानपद अथवा असैनिक (सिविल), यांत्रिक, विद्युतीय, सामुद्र, खनिजसंबंधी, रासायनिक, नाभिकीय आदि में, कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य अन्वेषण, प्ररचन, उत्पादन, प्रचलन, निर्माण, विक्रय, प्रबंध, शिक्षा, अनुसंधान इत्यादि हैं। अभियांत्रिकी शब्द ने कितना विस्तृत क्षेत्र छेंक लिया है, इसका समुचित ज्ञान प्राप्त करने के लिए दृष्टांत स्वरूप उसकी विभिन्न शाखाओं के अंतर्गत आनेवाले विषयों के नाम देना ज्ञानवर्धक होगा।
जानपद अथवा असैनिक अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग) के अंतर्गत अग्रलिखित विषय है : सड़कें, रेल, नौतरण मार्ग, सामुद्र अभियांत्रिकी, बाँध, अपक्षरणनिरोध, बाढ़ नियंत्रण, नौनिवेश, पत्तन, जलवाहिकी, जलविद्युत्शक्ति, जलविज्ञान, सिंचाई, भूमिसुधार, नदीनियंत्रण, नगरपालिका अभियांत्रिकी, स्थावर संपदा, मूल्यांकन, शिल्पाभियांत्रिकी (वास्तुकला), पूर्वनिर्मित भवन, ध्वनिविज्ञान, संवातन, नगर तथा ग्राम परियोजना, जलसंग्रहण और वितरण, जलोत्सारण, महापवहन, कूड़े-कचड़े का अपवहन, सांरचनिक अभियांत्रिकी, पुल, कंक्रीट, जाएत्विक संरचनाएँ, पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट (प्रिस्ट्रेस्ड कंक्रीट), नींव, संजान (वेल्डिंग), भूसर्वेक्षण, सामुद्रपरीक्षण, फ़ोटोग्राफीय सर्वेक्षण (फ़ोटोग्राफ़िक सर्वेयिंग), परिवहन, भूविज्ञान, द्रवयांत्रिकी, प्रतिकृति, विश्लेषण, मृदायांत्रिकी (सॉयल इंजीनियरिंग), जलस्रावी स्तरों में चिकनी मिट्टी प्रविष्ट करना, शैलपूरित बाँध, मृत्तिका बाँध, पूरण (भरना, ग्राउटिंग) की रीतियाँ, जलाशयों में जल रिसाव (सीपेज) के अध्ययन के लिए विकिरणशील समस्थानिकों (आइसोटोप्स) का प्रयोग, अवसाद के घनत्व के लिए गामा किरणों का प्रयोग।
यांत्रिक अभियांत्रिकी में यान्त्रिकी (मेकेनिक्स), उष्मागतिकी, जलवाष्प, डीजेल तथा क्षिपप्रणोदन (जेट प्रोपलशन), यंत्रप्ररचना, ऋतुविज्ञान, यंत्रोपकरण, जलचालित यंत्र, धातुकर्मविज्ञान, वैमानिकी, मोटरकार आदि (ऑटोमोबाइल) संबंधी आभियांत्रिकी, कंपन, पोतनिर्माण, ऊष्मा स्थानांतरण, प्रशीतन (रिफ्रेजिरेशन) हैं।
वैद्युत अभियांत्रिकी में विद्युद्यंत्र, विद्युत्-शक्ति-उत्पादन, संचरणा तथ वितरण, जलविद्युत्, रेडियोसंपर्क, विद्युत्मापन, विद्युदधिष्ठापन, अत्युच्चावृत्ति कार्य, नाभिकीय अभियांत्रिकी, इलेक्ट्रानिकी हैं।
रासायनिक अभियांत्रिकी में चीनी मिट्टी संबंधी अभियांत्रिकी, दहन, विद्युत् रसायन, गैस अभियांत्रिकी, धात्वीय तथा पेट्रोलियम अभियांत्रिकी, उपकरण तथा स्वयंचल नियंत्रण, चूर्णन, मिश्रण तथा विलगन, प्रसृति (डिफ़्यूज़न) विद्या, रासायनिक यंत्रों का आकल्पन तथा निर्माण, विद्युत् रसायन हैं।
कृषि अभियांत्रिकी में औद्योगिक प्रबंध, खनि अभियांत्रिकी, इत्यादि, हैं।
एलेक्ट्रानिकी अथवा एलेक्ट्रॉनिक्स
धातु निस्तारण अभियांत्रिकी
अभियांत्रिकी को संकीर्ण परिमित शाखाओं में विभाजित नहीं किया जा सकता। वे परस्परावलंबी हैं। प्रायोगिक और प्राकृतिक दोनों प्रकार की घटनाओं का निरपक्ष निरीक्षण तथा इस प्रकार के निरीक्षण के फलों का अभियांत्रिक समस्याओं पर ऐसी सावधानी से प्रयोग, जिससे समय और धन से न्यूनतम व्यय से समाज को अधिकतम सेवा मिले, अभियांत्रिकी की प्रमुख पद्धति है। शुद्ध वैज्ञानिक अभियांत्रिकी की उलझनों को सुलझाने की रीति वैज्ञानिक चाहे खोज पाए हों या न पाए हों, अभियंता को तो अपना कार्य पूरा करना ही होगा। ऐसी अवस्था में अभियंता कुछ सीमा तक प्रायोगिक विश्लेषण का सहारा लेता है और कार्यरूप में परिणत होनेवाला ऐसा हल ढूँढ़ निकालता है जो, रक्षा का समुचित प्रबंध रखते हुए, उसकी प्रतिदिन की समस्याओं को सुलझाने योग्य बना सकता है। जैस-जैसे संबंधित वैज्ञानिक अंश का उसका ज्ञान अचूक होता जाता है, वह रक्षा के प्रबंध में कमी करके व्यय भी घटा सकता है। समस्याओं के बौद्धिक और क्रियात्मक विचार ने ही अभियंता को उन क्षेत्रों में भी प्रवेश करने योग्य बनाया है जो आरंभ से ही वैज्ञानिक, डाक्टर, अर्थशास्त्री, प्रबंधक, मानवीय-शास्त्र-वेत्ता इत्यादि से सरोकार रखते समझे जाते हैं।
विश्व का इतिहास अभियांत्रिकी के रोमांस की कहानी से भरा पड़ा है। भारत और विदेशों में दूरदर्शी तथा निश्चित संकल्पवाले मनुष्यों ने अपने स्वप्नों के अनुसरण में सब कुछ दाँव पर लगाकर महत्त्वपूर्ण कार्य संपादित किए हैं। प्रत्येक अभियांत्रिक अभियान में तत्संबंधी विशेष समस्याएँ रहती हैं और इनको हल करने में छोटी-बड़ी दोनों प्रकार की प्रतिभाओं को अवसर मिलता है।
इंजीनियरी एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है। इंजीनियरी में कार्यप्रणाली का महत्त्व पहले से है किन्तु अब यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। इसी के परिणामस्वरूप 'सिस्टेम्स इंजीनियरिंग', 'ज्ञान इंजीनियरी' आदि का जन्म हुआ है।
मोटे तौर पर किसी भी इंजीनियर को दो बातें समझनी होतीं हैं -
'आवश्यकता' और प्रतिबन्धों को ध्यान में रखते हुए इंजीनियर विनिर्देश (स्पेसिफिकेशन), आरेखण (ड्राइंग), गुणवत्ता नियंत्रण तैयार करता है ताकि आवश्यक वस्तु या सेवा का निर्माण हो सके।
प्रायः इंजीनियर के पास एक से अधिक हल (solution) होते हैं। वह विविध विकल्पों पर विचार करता है। वह विकल्पों को तकनीकी, आर्थिक तथा सुरक्षा की दृष्टि से मूल्यांकन करता है और जो सर्वाधिक उपयुक्त परिणाम देता है उसे चुन लिया जाता है।
इंजीनियर का काम बहुत चुनौती भरा है। गलत हल का परिणाम बहुत महंगा या बहुत खतरनाक भी हो सकता है। इसलिये प्रायः इंजीनियर किसी हल को लागू करने के पहले उसका परीक्षण और विश्लेषण भी करता है। इसके लिये वह प्रोटोटाइप (prototypes), लघु-आकार वाले या सरलीकृत मॉडलों का प्रयोग, सिमुलेशन, ध्वम्सी या अध्वंसी टेस्ट तथा फैटिग टेस्ट आदि का सहारा लेता है।
चूंकि गलत हल का परिणाम गंभीर हो सकते हैं, इसलिये इंजीनियर पूर्व-निर्मित हलों (रेडिमेड सलुसन्स) को अपनाते समय इंजीनियर सुरक्षा गुणक (safety factor) का उपयोग करता है ताकि दुष्परिणाम की सम्भावना बहुत कम की जा सके। किन्तु सुरक्षा-गुनक जितना ही अधिक होगा, हल उतना ही महंगा, बड़ा, या कम दक्ष होगा।
रूस के नवसृजन विशेषज्ञ गेनरिक आल्तशुलर (Genrich Altshuller) ने बहुत से पेटेंटों का अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष निकाला था कि छोटे-स्तर के इंजीनियरी हल समझौतों (कम्प्रोमाइज) पर आधारित होते हैं जबकि बड़े-स्तर के काम में इंजीनियर उस हल को चुनता है जो समस्या की सबसे बड़ी कठिनाई को दूर करता हो।
कम्प्यूटर के आने से इंजीनियरी की कार्यप्रणाली में मूलभूत परिवर्तन आ गया। पहले किसी चीज की डिजाइन के लिये लम्बी-लम्बी गणनाएँ की जातीं थी, प्रयोग किये जाते थे, डिजाइन समीक्षा (review) होती थी किन्तु अब इनका स्थान कंप्युटर सिमुलेशन लेता जा रहा है। 'फाइनाइट एलिमेन्ट्स मेथड' (या FEM) के आगमन से यांत्रिकी, द्रवगतिकी, विद्युतचुम्बकत्व, मौसमविज्ञान, ऊष्मा-गतिकी आदि के कठिन से कठिन सिमुलेशन किये जाने लगे हैं। परिपथों का अभिकल्पन (डिजाइन), परिपथों के ले-आउट (पीसीबी या आई-सी निर्माण), परिपथों का परीक्षण आदि में कम्प्युटर सॉफ्टवेयर का प्रयोग हो रहा है। संक्षेप में कहें तो कम्प्युटर का प्रयोग डिजाइन में, ड्राफ्टिंग (ड्राइंग बनाने में), परीक्षण में, निर्माण में और रखरखाव में - सब जगह होने लगा है।
इसके अलावा इंजीनियर कम्प्यूटर से हर कदम पर सहायता प्राप्त करता है - डिजाइन में, उत्पादन में और उपकरणों को सुधारने में। डिजाइन में कम्प्यूटर के उपयोग से कार्य शीघ्रता से पूरा हो जाता है। आजकल बहुत से मामलों में कम्प्युटर द्वारा मॉडलिंग कर लेने से महंगे प्रोटोटाइप के निर्माण से छुटकारा मिल जाता है। कम्प्युटर सॉफ्टवेयर में आजकल पहले से निर्मित (रेडीमेड) तकनीकी हलों का डेटाबेस भी उपलब्ध है। अब तो आंकिक रूप से नियंत्रित मशीनों को निर्देश (इंस्ट्र्क्सन) दे दिये जाते हैं जिससे उत्पादन की प्रक्रिया बहुत सरल हो गयी है।
इसे भी देखें - महापरियोजनाओं की सूची
इंजीनियरी के अधिकांश कार्य विशाल होते हैं। वे एक व्यक्ति द्वारा या कुछ दिनों में होने वाले नहीं होते। ऐसे इंजीनियरी कार्यों को करने के लिये परियोजना बनाई जाती है।
एफिल टॉवर (गुस्टाव एफिल, मौरिस केल्केन तथा एमिल नुह (Emil Nuzhe) | ||||
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अभियंता | विचार | परियोजना | निर्माण | तैयार भवन |
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वैज्ञानिक दुनिया को ज्यों का त्यों अध्ययन करते हैं; अभियान्त्रिकों दुनिया बनाते हैं जो कभी नहीं रही। —Theodore von Kármán
विश्वव्यापी कार्य करने वाली गैर-सरकारी संस्थाएँ आपदाओं से लड़ने के लिये तथा विकास के लिये समुचित हल प्रदान करने हेतु इंजिनियरों की सहायता लेतीं हैं। बहुत सी धर्माथ संस्थाएँ मानवमात्र की भलाई के लिये इंजिनियरी का सीधे तौर पर प्रयोग करती हैं। ऐसी कुछ संस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
हमारी संस्कृति में इंजीनियरिंग का एक बड़ा उदाहरण त्रेता युग में मिलता है । रामायण के युद्ध के समय जब श्री रामचंद्र जी लंका पर चढ़ाई के लिए आगे बढ़े तो समुद्र की लहरों के बीच से आगे बढ़ना मुश्किल था , और तब वानर सेना के दो सैनिको क्रमश:नल और नील ने समुद्र के बीच पत्थर का पुल बनाकर अपनी अभियांत्रिकी प्रतिभा का एक उत्कृष्ट उदाहरण दिया ।। के इस सूचना के विषय में हमे , तुलसीकृत रामायण से जानकारी प्राप्त होती है ।
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