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रीठा या अरीठा (soap nut) एक वृक्ष है जो लगभग हरजगह भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े, छाल भूरी तथा फल गुच्छों में होते हैं। इसकी दो जातियाँ हैं। पहली सापीन्दूस् मूकोरोस्सी (Sapindus Mukorossi) और दूसरी सापीन्दूस् त्रीफ़ोल्यातूस् (Sapindus Trifoliatus)।
अरीठा | |
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Sapindus marginatus shrubs | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
अश्रेणीत: | Angiosperms |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Rosids |
गण: | Sapindales |
कुल: | Sapindaceae |
उपकुल: | Sapindoideae |
वंश: | Sapindus L. |
प्रकार जाति | |
Sapindus saponaria L.[1] | |
Species | |
See text | |
पर्यायवाची | |
Dittelasma Hook.f.[2] |
सापीन्दूस् मूकोरोस्सी के जंगली पेड़ हिमालय के क्षेत्र में अधिक पाये जाते जाते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत में तथा आसाम आदि में लगाये हुए पेड़ बाग-बगीचों में या गांवों के आसपास पाये जाते हैं। इसके फलों को पानी में भिगोने और मथने से फेन उत्पन्न होता है और इससे सूती, ऊनी तथा रेशमी सब प्रकार के कपड़े तथा बाल धोए जा सकते हैं। आयुर्वेद के मत में यह फल त्रिदोषनाशक, गरम, भारी, गर्भपातक, वमनकारक, गर्भाशय को निश्चेष्ट करनेवाला तथा अनेक विषों का प्रभाव नष्ट करेनवाला है। संभवत: वमनकारक होने कारण ही यह विषनाशक भी है। वमन के लिए इसकी मात्रा दो से चार माशे तक बताई जाती है। फल के चूर्ण के गाढ़े घोल की बूंदोंको नाक में डालने से अधकपारी, मिर्गी और वातोन्माद में लाभ होना बताया गया है।
सापीन्दूस् त्रीफ़ोल्यातूस् के पेड़ दक्षिण भारत में पाए जाते हैं, इसमें 3-3 फल एक साथ जुड़े होते हैं। इसके फलों की आकृति वृक्काकार होती है और अलग होने पर जुड़े हुए स्थान पर हृदयाकार चिह्न पाया जाता है। ये पकने पर लालिमा लिए भूरे रंग के होते हैं। दूसरे प्रकार के वृक्ष से प्राप्त बीजों से तेल निकाला जाता है, जो औषधि के काम आता है। इस वृक्ष से गोंद भी मिलता है।
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