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सैयद मुहम्मद इतेसाम उद्दीन (फ़ारसी: محمد اعتصام الدين; बांग्ला: মুহাম্মদ ইতেশামুদ্দীন), एक मुग़ल राजनयिक और १७६५ मैं यूरोप की यात्रा करने वाला पहला शिक्षित हिन्दुस्तानी और बंगाली था।[1] वो बंगाल के नवाबों के साथ साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा करने वाला मुंशी भी था। इन्होंने इलाहाबाद की १७६५ के संधि का मूल भी लिखा था।[2][3]
यह लेख उर्दू भाषा में लिखे लेख का खराब अनुवाद है। यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखा गया है जिसे हिन्दी अथवा स्रोत भाषा की सीमित जानकारी है। कृपया इस अनुवाद को सुधारें। मूल लेख "अन्य भाषाओं की सूची" में "उर्दू" में पाया जा सकता है। |
शेख़ मिर्ज़ा सैयद मुहम्मद इतेसाम उद्दीन पांचनूरी | |
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हुक्का पीते हुए मिर्ज़ा की एक तस्वीर | |
धर्म | इस्लाम |
उपसंप्रदाय | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ | |
जन्म |
१७३० क़ाज़ीपाड़ा मस्जिद, पांचनूर, चाकदहा, नदिया जिला, बंगाल सूबा, मुग़ल साम्राज्यਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
निधन |
१८०० पांचनूर, चाकदहा, नदिया जिला, बंगाल सूबा, मुग़ल साम्राज्यਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
शांतचित्त स्थान | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
पिता | शेख़ ताजुद्दीन |
पद तैनाती | |
कार्यकाल | १८ वीं सदी |
धार्मिक जीवनकाल | |
पद | मुंशी |
वो मुग़ल सल्तनत के बंगाल सुबा में स्थित गाऊँ पांचनूर, चाकदहा, नदिया, में सैयद मुहम्मद इतेसाम उद्दीन की नाम से जनम हुआ था। वो एक बंगाली मुसलमान घराने में जनम हुआ था और इसके पिता का नाम शेख ताज उद्दीन था जो शिहाब उद्दीन का बेटा था। उनकी जन्मस्थान क़ाज़ीपाड़ा मस्जिद आज भी खड़ी है और कहा जाता है कह इसके पूर्वजों युद्ध पांडुआ के बाद वहां पहुँचे थे। ये भी कहा जाता है कह इसके पूर्वजों फारस में मंगोल हमले से फ़रार होने की कोशिश कर रहे थे। वो एक विशेषाधिकार प्राप्त पिस दृश्य से आया था, जिसमें वो अरबी , बांग्ला , हिन्दुस्तानी और फ़ारसी भाषाओं में अच्छी शिक्षा शील और प्रवाह रखते थे। इसका बड़ा भाई नवाब ए बंगाल , अलीवर्दी खान का मुफ़्ती और सलाहकार था। मुंशी सलीमुल्लाह और मिर्ज़ा मुहम्मद क़ासिम, जो मीर जाफ़र के सहायक काम करते थे, ने इतेसाम को भी मुंशी बनने की शिक्षण दी और इन्हें फ़ारसी भाषा की शिक्षा दी।[4]
इसने अपने कैरियर का आरंभ मुर्शिदाबाद मैं मीर जाफ़र के मुंशी के तौर पर किया।[3] मीर कासिम के परिग्रहण के बाद वो ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मेजर मार्टिन योर्क और मेजर मार्क के साथ राजा असद उज़्ज़मान खान बीरभूम खिलाफ़ एक अभियान में हिस्सा लिया । युद्ध के बाद, शाह आलम द्वितीय ने अज़ीमाबाद के दौरे के दौरान इसकी प्रयासों को अभिनंदन किया।[4]
बाद मैं , इतेसाम ने अनाथालय के लिए बतौर तनख़्वाहदार कैप्टन मैकिनॉन के सहायक सेवाएँ नतीजा दें। इसने मैकिनॉन और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ मिल कर १७६३ मैं मीर कासिम के खिलाफ़ युद्ध ए गिरिया और उधवा की लड़ाई के दौरान लड़ी । बारडेट ने क़ुतुबपुर का तहसीलदार भी इतेसाम को बनाया।
एक अनुमान के मुताबिक़ इसका मृत्यु १८०० में हुआ।
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