Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
उष्मागतिकी एवं भौतिक रसायन में उष्मारसायन (thermochemistry) वह विद्या है जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्पन्न या शोषित की गयी उर्जा का अध्ययन करती है। उष्मारसायन में प्राय: उर्जा के शोषण या उत्सर्जन के परिणामस्वरूप होने वाले भौतिक परिवर्तन (जैसे गलन, क्वथन, फेज परिवर्तन (phase transition) आदि) का भी अध्ययन शामिल है। इसके साथ-साथ उष्मा धारिता, ज्वलन की उष्मा, निर्माण की उष्मा (heat of formation), इन्थाल्पी एवं मुक्त उर्जा (free energy) की गणना भी की जाती है।
साधारणतया किसी प्रतिक्रिया में क्षेपित या शोषित ऊष्मा को उसके समीकरण द्वारा व्यक्त कर देते हैं। उदाहरण के लिए :
H2 (गैस) + Cl2 = 2HCl (गैस) + ४४,००० कैलोरी
द्वारा पकट होता है कि १ ग्राम-अणु (२ ग्राम) हाइड्रोजन गैस तथा १ ग्राम-अणु (७१ ग्राम) क्लोरीन गैस से संयोजन से जब २ ग्राम-अणु (७३ ग्राम) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल गैस बनती है, तो ४४,००० कैलोरी ऊष्मा क्षेपित होती है। इसी प्रकार निम्नांकित समीकरण देखिए :
H2 (गैस) + I2 = 2HCl (गैस) - ११,८६० कैलोरी
द्वारा यह प्रकट होता है कि यदि २ ग्राम हाइड्रोजन तथा २५४ ग्राम आयोडीन गैस के संयोजन से २५६ ग्राम हाइड्रोजन आयोडाइड गैस बनाई जाए तो इस प्रतिक्रिया में ११,८६० कैलोरी ऊष्मा शोषित होगी।
यह तो स्पष्ट है कि किसी भी क्रिया में क्षेपित ऊष्मा की मात्रा उसमें भाग लेनेवाले पदार्थों की भौतिक अवस्था पर निर्भर रहेगी; इसीलिए भी लिख जाती है। भौतिक अवस्था का जो प्रभाव प्रतिक्रिया-उष्मा (heat of reaction) पर पड़ता है वह निम्नांकित उदाहरण से स्पष्ट हो जाएगा :
तथा
द्वितीय समीकरण में ऊष्मा की क्षेपित मात्रा प्रथम समीकरणों की अपेक्षा अधिक है क्योंकि इसमें १८ ग्राम भाप के द्रवित होने में क्षेपित ऊष्मा की मात्रा सम्मिलित है।
जिन प्रतिक्रियाओं में प्रतिकारकों के आयतन में भी परिवर्तन होता है, उनके लिए प्रतिक्रिया-उष्मा इस बात पर भी निर्भर होगी कि प्रतिक्रिया स्थिर आयतन पर की गई है अथवा स्थिर दाब पर। यदि प्रतिक्रिया करते समय आयतन स्थिर रखा जाए, तो मंडल (सिस्टम) को बाह्य दाब के विरुद्ध कुछ कार्य नहीं करना पड़ता। अतएव स्थिर आयतन पर प्रतिक्रिया की यथार्थ ऊर्जा क्षेपित या शोषित होती है। परंतु यदि क्रिया करते समय दाब को स्थिर रखते हुए आयतन को बढ़ने या घटने दिया जाए, तो प्रतिक्रिया-उष्मा का यथार्थ मान ज्ञात नहीं होगा। उदाहरण के लिए; आयतन बढ़ने में मंडल बाह्य दाब के विरुद्ध कार्य करता है, जिसमें ऊर्जा व्यय होगी; अतएव यदि प्रतिक्रिया उष्माक्षेपक है तो इस अवस्था में क्षेपित की मात्रा कम हो जाएगी। साधारणत: प्रतिक्रियाओं की ऊष्मा स्थिर आयतन पर ही नापी जाती है।
उष्मारसायन के दृष्टिकोण से अभिक्रियाओं को प्राय: कई वर्गों में बाँट लेते हैं और अभिक्रिया स्वभाव के अनुकूल अभिक्रिया-उष्मा को नाम दे दिया जाता है - जैसे विलयन-उष्मा (हीट ऑव सोल्युशन), तनुकरण-उष्मा (हीट ऑव डाइल्यूशन), उत्पादन-उष्मा (हीट ऑव फ़ॉर्मेशन), दहन-उष्मा (हीट ऑव कंबश्चन) तथा शिथिलीकरण-उष्मा (हीट ऑव न्यूट्रैलाइज़ेशन)।
किसी विलेय को विलायक में घोलने पर प्राय: ऊष्मा का क्षेपण होता है। जो लवण जल से क्रिया करके जलयोजित (हाइड्रेटेड) लवण बनाते हैं उनके घुलने पर अधिकतर ऊष्मा का क्षेपण होता है। अन्य लवणों के घुलने में क्षेपित ऊष्मा की मात्रा बहुत कम है। किसी पदार्थ के एक ग्राम-अणु को विलायक में घोलने पर क्षेपित या शोषित ऊर्जा की मात्रा को विलयन-उष्मा कहते हैं।
इसके अतिरिक्त सांद्र विलयन को तनु करने में भी ऊष्मा में परिवर्तन होता है और इसे विलयन की तनुकरण-उष्मा कहते हैं। तनुकरण-उष्मा की मात्रा विलयनों की तनुता के साथ कम हाती जाती है और अधिक तनु विलयनों के लिए इसे शून्य माना जा सकता है। ऐसे तनु विलयनों की उष्मारसायन में "जलीय" कहते हैं। उदाहरण के लिए; पोटैशियम नाइट्रेट जल में विलीन होकर अति बनु विलयन बनाता है, तो उसकी विलयन ऊष्मा ८,५०० कैलोरी होती है। इस तथ्य को निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं :
अवयव तत्वों के संयोग से किसी यौगिक के एक ग्राम-अणु बनने में जितनी ऊष्मा शोषित या क्षेपित होती है, उसे उस योगिक की उत्पादन-उष्मा कहा जाता है। उदाहरण के लिए निम्नांकित समीकरणों द्वारा स्पष्ट है कि कार्बन डाइऑक्साइड (क्ग्र्2), मेथेन (क्क्त4), तथा नाइट्रिक अम्ल (क्तग़्ग्र्3) की उत्पादन-उष्मा क्रामनुसार ९४.४, १८.८ तथा ४२.४ कैलोरी है :
उत्पादन ऊष्मा ऋणात्मक भी हो सकती है, जैसे :
आवयव तत्वों से जिन यौगिकों के बनने में ऊष्मा क्षेपित होती है उन्हें उष्माक्षेपक यौगिक कहते हैं और जिन यौगिकों के बनने में ऊष्मा शोषित होती है उन्हें उष्माशोषक योगिक कहते हैं। अधिकतर यौगिक उष्माक्षेपक होते हैं, जैसे हाइड्रोजन, क्लोराइड, जल, हाइड्रोजन सलफ़ाइड, सलफर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, लेड क्लोराइड आदि सब उष्माक्षेपक यौगिक हैं। उष्माशोषक यौगिकों के उदाहरण हाइड्रोजन आयोडाइड, कार्बन डाइसलफाइड, ऐसेटिलीन, ओज़ोन आदि दिए जा सकते हैं।
उष्माशोषक यौगिक उष्माक्षेपक यौगिकों की अपेक्षा बहुत कम स्थायी होते हैं और सुगमता से अपने अवयवीय तत्वों में विच्छेदित हो जाते हैं। उष्माक्षेपक और उष्माशोषक यौगिकों के स्थायित्व का उपर्युक्त भेद उनमें अंतर्निहित ऊर्जा के अंतर के कारण होता है। उदाहरण के लिए; १ ग्राम-अणु कार्बन तथा 1 ग्राम-अणु ऑक्सीजन के संयोग से जब १ ग्राम-अणु कार्बन डाइऑक्साइड बनता है, तो ९४,३०० कैलोरी ऊष्मा क्षेपित होती है। स्पष्ट है कि अपने अवयव तत्वों की अपेक्षा १ ग्राम-अणु कार्बन डाइऑक्साइड में ९४,३०० कैलोरी ऊर्जा कम होगी। इसी प्रकार कार्बन डाइसल्फाइड जैसे उष्माशोषक यौगिक में अपेन अवयव तत्वों की अपेक्षा २२,००० कैलोरी ऊर्जा अधिक होगी। यदि समस्त तत्वों की अंतर्निहित ऊर्जा को शून्य मान लिया जाए, तो उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यौगिकों की अंतर्रिहित ऊर्जा उनकी उत्पादन ऊष्मा के बराबर होगी; परंतु यदि उत्पादन ऊर्जा ऋणात्मक है तो अंतर्निहित ऊर्जा धनात्मक होगी और इसके विपरीत यदि उत्पादन ऊष्मा धनात्मक हो, तो अंतर्निहित ऊर्जा ऋणात्मक होगी। उदाहरणत: कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बन डाइसलफाइड की अंतर्निहित ऊर्जाएँ क्रमानुसार - ९४,३०० तथा २२,००० कैलोरी के बराबर होंगी।
किसी तत्त्व यो यौगिक की १ ग्राम-अणु मात्रा को ऑक्सीजन में स्थिर आयतन पर पूर्णतया जलाने से ऊष्मा की जो मात्रा क्षेपित होती है, उसे उस तत्त्व या यौगिक की दहन-उष्मा कहते हैं।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित समीकरण से स्पष्ट है कि मेथेन की दहन-उष्मा २,१२,८०० कैलरी है :
कार्बन को ऑक्सीजन में जलाने पर दो यौगिकों का बनना संभव है-
यह बात ध्यान देने योग्य है कि कार्बन की दहन-उष्मा ९४,३०० कैलोरी है, २६,००० कैलोरी नहीं, क्योंकि प्रथम क्रिया में ही कार्बन पूर्णतया जलता या आक्सीकृत होता है। दूसरी क्रिया में कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड में परिवर्तित हो गया है, परंतु अभी उसका दहन पूर्ण नहीं हुआ क्योंकि कार्बन मोनोक्साइड का और दहन करके उसे कार्बन डाइऑक्साइड में आक्सीकृत किया जा सकता है।
दहन-उष्मा ज्ञात करने के लिए एक विशेष प्रकार के कलरीमापक का उपयोग किया जाता है जिसे बम-कलरीमापक (बॉम्ब कैलोरिमीटर) कहते हैं। वैज्ञानिक बरथेलों ने इसे सर्वप्रथम १८८१ में बनाया था। यह गनमेटल इस्पात का बना रहता है और बेलन के आकर का होता है। इसके आंतरिक तल पर एक विशेष प्रकार का इनैमल चढा रहता है, जिससे उसपर ऑक्सीजन की कोई क्रिया नहीं होती। ढक्कन ढ को दृढ़ता से बंद करने के लिए इसमें मजबूत पेंच लगे रहते हैं। जिस पदार्थ की दहन-उष्मा निकालना हो उसकी एक निश्चित मात्रा प्लैटिनम की प्याली "प" में ले ली जाती है और बम में लगभग २०-२५ वायुमंडलीय दाब पर ऑक्सीजन भर लेते हैं। इसके बाद वम को दृढ़ता से बंद करके उसे साधारण कलरीमापक में रखते हैं। साधारण कलरीमापक में जल की एक निश्चित मात्रा ले ली जाती और प्रयोग द्वारा पहले ही यह निर्धारित कर लिया जाता है कि इस कलरीमापक में जल के ताप को १ डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ाने के लिए कितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। बाह्य कलरीमापक में जल का ताप नाप लिया जाता है। अब प्लैटिनम के तारों अ तथा अ द्वारा लोहे के एक महीन तार त में विद्युत् प्रवाहित करते हैं। विद्युत्प्रवाह से तार त गरम होकर लाल हो जाता है और प्याली प में रखा पदार्थ आक्सीकृत होने लगता है। लोहे के तार के जलने में तथा आक्सीकरण की इस क्रिया में ऊष्मा क्षेपित होती है, जिसकी मात्रा बाह्य कलरीमापक में उपस्थित जल के ताप में वृद्धि से ज्ञात कर ली जाती है। इस प्रयोग से प्राप्त उष्मा-मात्रा में से लोहे के ज्वलन में क्षेपित ऊष्मा को घटाकर पदार्थ के दहन द्वारा क्षेपित ऊष्मा की मात्रा ज्ञात की जा सकती है। स्पष्ट है कि इस प्रयोग में मंडल का आयतन स्थिर रहता है; अतएव इस विधि से किसी पदार्थ की दहन-उष्मा निर्धारित की जा सकती है।
एक ग्राम-तुल्य मात्रा क्षार को एक ग्राम-तुल्य मात्रा अम्ल द्वारा शिथिल (न्यूट्रैलाइज़) करने पर ऊष्मा की जो मात्रा लेपित होती है उसे शिथिलीकरण-उष्मा कहते हैं। यदि अम्ल तथा क्षार इतने तनु विलयनों में लिए जाएँ कि वे पूर्णतया आयनों में विघटित हों तो शिथिलीकरण की क्रिया केवल हाइड्रोजन तथा हाइड्रोक्सिल आयनों के संयोग से अविघटित अणु बनने की क्रिया होगी। अतएव तनु विलयनों में सब प्रबल (स्ट्राँग) अम्लों द्वारा प्रबल क्षारों के शिथिलीकरण की ऊष्मा समान होगी। प्रयोग द्वारा इस ऊष्मा का मान १३,७०० कैलोरी आता है। अत: प्रबल अम्लों द्वारा प्रबल क्षार के शिथिलीकरण को निम्नलिखित समीकरणों द्वारा व्यक्त कर सकते हैं :
जहाँ X कोई मूलक है और M कोई धातु है,
अर्थात्
अर्थात्
परंतु यदि अम्ल या क्षार दुर्बल हो, तो वह तनु विलयन में भी पूर्णतया विघटित न होगा। अतएव ऐसे अम्लों या क्षारों की शिथिलीकरण ऊष्मा १३,७०० कैलोरी नहीं आएगी। उदाहरण के लिए अमोनियम हाइड्रॉक्साइड की आयनीकरण-उष्मा (१ ग्राम-अणु के आयनीकरण की उष्मा) -१,५०० कैलोरी है, अतएव अमोनियम हाइड्रॉक्साइड तथा किसी प्रबल अम्ल (जैसे हाक्लो) की शिथिलीकरण ऊष्मा (१३,७००-१,५००) १२,२०० कैलोरी होगी।
प्रयोग द्वारा शिथिलीकरण ऊष्मा को निर्धारित करने के लिए साधारणत: एक थरमस फ्लास्क में क्षार के तनु विलयन की एक निश्चित मात्रा लेकर फ्लास्क को स्थिर तापवाले जल में डुबाकर रखते हैं, जिससे विकिरण (रेडिएशन) द्वारा फ्लास्क के भीतर विलयन के ताप में अंतर न हो। अब बनु विलयन में अम्ल की समतुल्य मात्रा लेकर उसका ताप क्षार के ताप के बराबर स्थिर कर लेते हैं। अम्ल का ताप स्थिर हो जाने पर उसे शीघ्रता से क्षार में मिला देते हैं। काच के एक विलोडक (स्टरर) द्वारा विलयन को चलाकर उसका उच्चतम ताप नाप लिया जाता है। अब यदि मिश्र विलयन की मात्रा, उसकी विशिष्ट-उष्मा (स्पेसिफ़िक हीट), ताप, प्रयुक्त फ्लास्क की उष्माधारिता (हीट-कैपेसिटी) ज्ञात हो, तो शिथिलीकरण क्रिया में क्षेपित ऊष्मा की मात्रा सुगमता से ज्ञात की जा सकती है। इसी विधि द्वारा लवणों की विलयन-उष्मा भी सुगमता से निकाल सकते हैं।
उष्मा-रसायन का सबसे प्रमुख नियम स्विस वैज्ञानिक जरमेन हेनरी हेस ने सन् १८४० में प्रतिपादित किया था। इस नियम के अनुसार,
हेस का नियम उष्मा-रसायन में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसकी सहायता से प्रत्यक्ष रूप से न की जा सकनेवाली प्रतिक्रियाओं में होनेवाले उष्मा-परिवर्तनों को भी परोक्ष रूप से निकाला जा सकता है। उदाहरण के लिए; साधारणत: कार्बनिक यौगिकों की उत्पादन-उष्मा प्रत्यक्ष क्रिया द्वारा नहीं निकाली जा सकती, परंतु कार्बनिक यौगिक तथा इसके अवयव तत्वों की दहन-उष्मा को निर्धारित करके यौगिक की उत्पादन-उष्मा हेस के नियम से निकाल सकते हैं।
रासायनिक क्रियाओं से प्राप्त ऊर्जा ही हमारे उद्योगों को चलाने का साधन रही है। आज कृत्रिम उपग्रह के युग में जब मानव चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों की यात्रा में प्रयत्नशील है तो ऐसे ईधनों की खोज आवश्यक हो गई है जिनकी सूक्ष्म से सूक्ष्म मात्रा अधिक तम ऊर्जा दे सके। बोरन यौगिक इस ओर बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं, क्योंकि समान मात्रा में कार्बन यौगिकों से उनकी दहन-उष्मा अधिक होती है और वे हमें अधिक ऊर्जा देने में सफल होते हैं।
उष्मारसायन के अन्य उपयोग बहुत काल से होते आए हैं। उदाहरण के लिए ;प्रथम तालिका में ऐल्यूमिनियम औक्साइड की उत्पादन-उष्मा सबसे अधिक दिखाई गई है। इसी गुण का उपयोग गोल्डडश्मिट की उष्मन विधि (थर्मिट प्रोसेस) में किया गया है। ऐल्यूमिनियम ऑक्साइड की उत्पादन-उष्मा इतनी अधिक होने के कारण प्रतिक्रिया,
में इतनी अधिक ऊष्मा क्षेपित होती है कि मंडल का ताप लगभग ३,००० सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है और लोहा तक पिघल जाता है। इस प्रकार टूटी हुई रेल की पटरियों भी भारी मशीनों के टूटे हुए भागों को उपर्युक्त क्रिया की सहायता से पिघलाकर जोड़ा जा सकता है। (रा.च.में.)
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.