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कबूतर का मांस विश्व के अनेक खाद्याभ्यासों मे जनप्रिय हैं। साधारणतः ४ सप्ताह से कम उम्र वाले कबूतर का भक्षण किया जाता हैं।[1] पाश्चात्य जगत मे कम उम्र वाले कबूतर के मांस के लिए स्क्वाब शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो सम्भवतः स्वीडिश शब्द स्क्भाब से आया है, जिसका अर्थ है "ढीला, मेदवहुल मांस"।[2] विभिन्न समय मे विश्व के अनेक प्रान्तों मे भिन्न प्रकार के कबूतरों का भक्षण किया गया है, परन्तु वर्तमान प्रायः घरेलु कबूतर को ही खाया जाता हैं।[3][4] कई लोग इसका क्रीडा के रूप मे भी शिकार करते है।[5]
कबूतर पालने का अरंभ संभवतः अफ्रीका महादेश के उत्तरी भाग मे हुआ था। ऐतिहासिक रूप से ईजिप्ट्, रोम तथा यूरोप के अन्य देशों के साथ साथ चीन, भारत [6] तथा अन्य एशियाई देशों मे भी यह एक जनप्रिय खाद्य रहा है।
कबूतर के मांस को एक सुस्वादु आहार गण्य किया जाता है, जो अन्य पक्षियों के मांस के तुलना मे अधिक स्वादिष्ट है, यद्यपि प्रत्येक चिडिया से अल्प परिमाण मे ही मांस् प्राप्त होता है, और इस मांस का अधिकांश कबूतर के वक्ष से आता है।[7][8] कबूतर एक "डार्क मीट" है, अर्थात इसका चर्म मेदवहुल होता है, बतख की तरह।[9] इस मांस का सहज रूप से पाचन होता है और यह प्रोटीन, मिनरल्स तथा विटामिन आदि का अच्छा श्रोत है।[10] कई लोग कबूतर के मांस को "रेशमी" आख्या देते है, क्योंकि यह अति कोमल होती है।[11] कई प्रान्तों मे कबूतर के मांस को लाल और सफ़ेद मदिरा के साथ ग्रहण किया जाता है।[12]
कबूतर का मांस वर्तमान मे विश्व के अनेक खाद्याभ्यासों मे जनप्रिय है। फ्रांस, ईजिप्ट, अमेरिका, इटली, उत्तरी अफ्रीका, भारत, चीन और अन्यान्य एशियाई देशों मे यह लोकप्रिय है।[13][14] फ्रांस की साल्मिस, ईजिप्ट की माःशी, भारत की पारौ मांख़ौर जुल, मोरोक्को की पेस्टिला आदि कबूतर के रन्धन की लोकप्रिय पद्धतिया है।[15][16]
वाणिज्यिक रूप से उत्पादित कबूतर के मांस के रन्धन मे अन्य कबूतर के तुलना मे आधा समय लगता है।[17] साथ ही साथ, कम उम्र के कबूतर को कम समय मे पकाया जा सकता है।[18][19][20][21]
यद्यपि कबूतर पालना सहज है, खाद्य सुरक्षा के कारण इसके बारे मे "साधारणतः नही सोचा जाता है"।[22] विश्व के कुछ स्थानो मे कबूतर के मांस को अरुचिकर माना जाता है, क्योंकि कबूतरो को शहरी कीटों की तरह देखा जाता है।[23] लेकिन, अन्य अनेक चिडियो के मांस के तुलना मे, कबूतर के मांस मे रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु कम हो सकते है।[24][25][26] कम आपूर्ति के कारण अन्य चिडियो के मांस के तुलना मे, कई स्थानो मे कबूतर के मांस का विक्री मूल्य अधिक है और इसे हौते क्विज़ीन या उच्च-पाककला मे अन्तर्भुक्त किया जाता है।[27]
चतुर्दश शताब्दी के ग्रन्थ "हेल्थ रिज़ीम" मे कम उम्र वाले कबूतर के मांस को "ऊष्म और नम" बोला गया है, जबकि वयस्क कबूतर के मांस को "जैसे तैसे खाया" जा सकने वाला बताया गया है।[28] रोमन रन्धनप्रणाली के ग्रन्थ "एपिकियस" मे कबूतर के मांस के साथ मीठी और खट्टी चटनी खाने का उपदेश दिया गया है। यह उत्स केवल संभ्रांत लोगो के बीच खाए जाने वाले कबूतर के मांस के व्यंजनो का उल्लेख करती है। आम जनता के बीच प्रचलित व्यंजनो के बारे मे अधिक तथ्य उपलब्ध नही है, सिवाए इस बात के कि यह व्यंजन परिवारो मे परंपरागत रूप से चली आ रही थी।[29]
पंचदश शताब्दी के इटालवी संयासी लुसा पासियोली ने खाद्य के रहस्यो की एक पुस्तक लिखी थी। उस पुस्तक मे उन्होने "केवल पंख से सर पर मारकर कबूतर को कैसे मारा जा सकता है", इस बात की भी विधि बताई है।[30] इटली मे कबूतर का मांस प्राचीन काल से ही लोकप्रिय रहा है, यहा तक कि उम्ब्रिय और टुस्कन रन्धनशैलियों मे भी।[31] अष्टदश शताब्दी के फ्रांस मे pigeons à la crapaudine (पिज़ौं आला क्रापुदिन) को एक "कौशल्य व्यंजन" माना जाता था। इस व्यंजन मे कबूतर के मांस को इस तरह सजाया जाता है कि वह एक मेंढक की तरह दिखे। धार्मिक कारणो से कुछ विशेष दिनो मे मांसाहार फ्रांस मे वर्जित था। लेकिन मेंढक के मांस पे यह पाबंदी नही थी, क्योंकि मेंढक पानी मे रहते है। पिज़ौं आला क्रापुदिन इसी रीति के साथ खेलता है। वर्तमान मे भी, कबूतर का मांस फ्रांस के खाद्याभ्यास का एक महत्वपूर्ण अंग है।[32][33] स्पेन और फ्रांस मे कई बार कबूतर को दीर्घ काल के लिए पकाया जाता है, विशेषतः संरक्षण के लिए।[34]
अमेरिका मे वर्तमान मे कबूतर केवल विशेष मौको पर खाए जाने वाली वस्तु बनकर रह गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि तुलनात्मक रूप से सस्ती मुर्गी ने इसका स्थान ग्रहण कर लिया है।[35] अमेरिका मे कबूतर के मांस को उच्च-पाक कला का अंश माना जाता है, जो ले शियेर्क और द फ्रेंच लौंड्री जैसे विशेष भोजनालयो मे उपलब्ध है।[36][37] अन्य चिडियो के तुलना मे कबूतर के मांस की कीमत अमेरिका मे काफी ज्यादा है।[38]
भारत मे कबूतर का मांस उत्तर-पूर्वी राज्यो के खाद्याभ्यास मे देखा जाता है।[39] असम मे विशेषतः यह मांस अत्यंत लोकप्रिय है।[40] कबूतर के मांस को साधारणतः करी के साथ बनाया जाता है, जिसके साथ केले का फूल भी अकसर प्रयोग किया जाता है।[41][42] जनजातीय और अ-जनजातीय उभय गुटों के लोगो के बीच मे यह लोकप्रिय है।[43][44] कबूतर के मांस को परंपरागत रूप से शक्तिदायक माना जाता है। प्राक-औपनिवेशिक काल के हस्तलिपि कामरूप यात्रा मे कबूतर के मांस को सुस्वास्थ्य के लिए खाए जाने का परामर्श दिया गया है।[45] अनेक हिन्दू मंदिरों मे कबूतर की बलि दी जाती है, खासकर शाक्तधर्म से संबंध रखने वाले मंदिरों मे।[46] उदाहरणस्वरूप, कामाख्या मंदिर मे कबूतर की बलि दी जाती है।[47][48] नेपाल मे भी यह प्रथा प्रचलित है।[49] कबूतर का मांस साधारणतः विशेश मौको पर खाया जाता है।[50]
चीनी खाद्याभास मे कबूतर का मांस विशेष पर्व आदि मे अन्तर्भुक्त रहता है, जैसे, चीनी नववर्ष मे।[51] कबूतर के मांस की सूखी सबजी तैयार की जाती है। कैण्टनीज़ शैली मे पकाए गए मांस मे सोय सौस, चावल की मदिरा आदि भी डाले जाते है।[52] सतेजता अक्षुण्ण रखने के लिए चीन मे साधारणतः कबूतर जीवितावस्था मे ही विक्री किए जाते है।[53] परंतु कटे हुए कबूतर भी उपलब्ध है। विशेषतः दो प्रकार की शैलियां है चीन मे कबूतर को काटने के लिए: चीनी शैली, जिसे बौद्ध शैली भी कहा जाता है, जिसमे कबूतर के सर और पैर भी रहते है; और निउ यौर्क शैली, जिसे कन्फ़ूशियन शैली भी कहा जाता है, जिसमे सिर और पैर के साथ अत्रियां भी रहती है।[54] अमेरिका मे विक्री होने वाले कबूतर के मांस की विक्री अधिकांश वहा के चाइनाटाउनों मे ही होती है।[55]
इंडीनीशिया मे सुंडानीज़ और जावानीज़ रन्धनशैलियों मे कबूतर का मांस पाया जाता है। इसे धनिया, हलदी, लस्सन आदि के साथ बनाया जाता है।
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