क्षत्रिय
हिन्दू धर्म में एक वर्ण / From Wikipedia, the free encyclopedia
क्षत्रिय (पालि रूप : खत्तिय) हिंदू समाज के चार वर्णों में से एक वर्ण है।[1] संस्कृत शब्द 'क्षत्रिय' का प्रयोग वैदिक काल के समाज के संदर्भ में किया जाता है जिसमें सदस्यों को चार वर्णों द्वारा उल्लिखित किया जाता था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।[2] प्राचीन काल में किसी भी वर्ण के अंतर्गत आनेवाला व्यक्ति "क्षत्रिय वर्ण" में सामिल हो सकता था। वैदिक काल में कोई भी वर्ण स्थायी नहीं था, व्यक्ति का वर्ण उसके द्वारा चुने गए कर्म के अनुसार तय किया जाता था। वैदिक कर्मकाण्ड पढ़ने वाले को ब्राह्मण, सैन्य सेवा देने वाले को क्षत्रिय, व्यापार करने वाले को वैश्य एवं खेती और अन्य सेवाएं प्रदान करने वाले को शुद्र कहा जाता था। कालांतर में ब्राह्मणो की रूढ़िवादी विचारों के कारण कर्म चुनने का अधिकार समाप्त हो गया, और व्यक्ति परिवारों के यथास्थिति कर्म को जाति का रूप दे दिया गया।
क्षत्रिय वर्ण के लोगों का काम गांवों, कबीलो व राज्य की रक्षा करना था मनु के अनुसार इस वर्ण के लोगों का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान और यज्ञादि करना तथा विषयवासना से दूर रहना है। वशिष्ठ ने इस वर्ण के लोगों का मुख्य धर्म अध्ययन, शस्त्राभ्यास और प्रजापालन बतलाया है। वेद में इस वर्ण के लोगों की सृष्टि प्रजापति की बाहु से कही गई है।