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जापानी उद्यान कला जापान की राष्ट्रीयता और संस्कृति की द्योतक है। यह शैली का प्रचार जापान में कदाचित् छठी शताब्दी में मोहान लोन हान नामक व्यक्ति ने किया। उसने नकली पहाड़ियाँ, टीले तालाब पानी की नालियाँ, झरने आदि बनाकर उनमें फूलों आदि के वृक्ष लगाकर सुशोभित करने का प्रयास प्रारंभ किया था। यही कला विकसित होते होते अब सर्वथा नूतन कला हो गई।
जापानी उद्यानों की विधि, बनावट आदि के विषय में श्रीमती टेलर का यह कथन अत्यंत सत्य है कि पत्थर और चट्टानें जापानी उद्यान के शरीर की अस्थियाँ हैं, भूमि की सब रेखाएँ शरीर के आकार को प्रदर्शित करती हैं, फूल और वृक्ष उसके वस्त्र और आभूषण हैं, परंतु जल तो उसका जीवन और प्राण ही है। पत्थर और पानी का जापानी उद्यानों में मुख्य स्थान है। बिना इनके किसी उद्यान का संपूर्ण होना संभव नहीं। जिन स्थानों में पानी की कमी होती है, यहाँ पानी के स्थान में बालू फैलाई जाती है और उसी से पानी का आभास होता है।
छोटे से छोटे स्थान को अत्यंत रमणीक बनाने की कला में जापानी सिद्धहस्त हैं। सादगी इन स्थानों की विशेषता है। जापानी उद्यान-कला का उद्देश्य यह रहा है कि दर्शक को थोड़े से स्थान में ही पर्वतीय दृश्य, झरता हुआ झरना, एक छोटी सी झील और उसमें एक द्वीप, एक पुल और विशेष रूप से शिलाएँ और चट्टानें आदि सब वस्तुएँ देखने की मिलेंगी। स्थान स्थान पर पुल, पहाड़ियाँ, जलकुंड, प्राकृतिक विश्राम गृह और जलपानगृह आदि पंगडंडियों और रास्तों के किनारे और चारों ओर एक प्रकार बनाए जाते हैं कि उद्यान में धूते समय वे आपको जगह जगह दृष्टिगोचर हों और उनके सौंदर्य को निरखकर आप प्रसन्न हों।
भिन्न भिन्न आकार के पत्थरों से वे छोटे छोटे स्थानों को भी अत्यंत आर्कषक ढंग से सजाते हैं। पानी के बीच में वे प्राय: कछुए के आकार का पत्थर रखते हैं और उसके पास ही दूसरा पत्थर उड़ते हुए हंस के आकार का होता है। दोनों ही प्राणी दीर्घजीवी होने के कारण बड़े शुभ माने जाते हैं। कभी कभी जहाजों के आकार के एक के पीछे एक सात पत्थर पानी में रखे जाते हैं, जिनका आशय यह होता है कि सात बड़े बड़े खजानों की खोज में समुद्र की लंबी यात्रा पर जा रहे हैं। (सात का अंक जापान में बड़ा शुभ माना जाता है)।
पानी का होना भी जापानी उद्यान में आवश्यक है। पानी के झरने और तालाब और उनके ऊपर पुल जापानी उद्यान के अनिवार्य अंग हैं। पानी के किनारे पेड़ और पत्थर आदि इस प्रकार सजाते हैं कि पानी में उनका प्रतिबिंब और भी सुंदर लगता है।
अनेक प्रकार के फलनेवाले और महीन पत्तीवो शोभाकर पेड़ लगाते हैं। चीड़ के पेड़ों का विशेष महत्त्व है। प्राय: वे मुख्य द्वार के दोनों ओर संतरी के समान लगे मिलते हैं। दूसरे ये वृक्ष भी दीर्घजीवन के प्रतीक माने जाते हैं।
"बोनसाई" कला में, अर्थात् बड़े ऊँचे बढ़ेवाले पेड़ों को छोटे अकार में उगाने की कला में, भी जापानी सिद्धहस्त होते हैं और इसका उपयोग जापानी उद्यान कला में प्रचुर मात्रा में होता है।
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