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जोसेफ लिस्टर, प्रथम बैरन (Joseph Lister, first Baron, सन् १८२७-१९१२), अंग्रेज शल्यचिकित्सक तथा पूतिरोधी शल्यकर्म (antiseptic surgery) के जन्मदाता थे।
'== परिचय == जोसेफ लिस्टर का जन्म अपटन (एसेक्स) नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता जोसेफ़ जैक्सन लिस्टर ने अवर्णक लेंस तथा संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में उन्नति कर, प्रकाशीय विज्ञान के क्षेत्र में नाम कमाया था। पुत्र ने लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से चिकित्सा शास्त्र में एम.बी. तथा एफ.आर.सी.एस. की उपाधियाँ सन् १८५२ में प्राप्त की। सन् १८५३ में इन्होंने एडिनबरा में जैम्स साइम नामक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक के अधीन काम करना आरंभ किया। सन् १८५६ में इन्होंने साइम की पुत्री से विवाह किया और राजकीय अस्पताल में सहायक सर्जन नियुक्त हुए।
विद्यार्थी अवस्था में ही लिस्टर ने सर्वप्रथम सिद्ध किया था कि चक्षुओं की परितारिका में दो भिन्न पेशियाँ होती हैं, जिनमें से एक तो पुतली को फैलाकर बड़ा तथा दूसरी संकुचित कर छोटा कर देती है। सन् १८५३ में आपने चर्म की अनैच्छिक पेशियों पर एक ग्रंथ प्रकाशित किया। सन् १८५७ में इन्होंने शोथ की प्रारंभिक अवस्था में सूक्ष्म रक्तवाहिनियों के कार्य तथा विविध उत्तेजकों के, इन पर और ऊतकों पर प्रभाव का दिग्दर्शन कराया। घावों में इन घटनाओं का विवेचन भी किया। सन् १८५९ में आपने एक लेख द्वारा मेढक के चर्म में वर्णपरिवर्तन की क्रिया पर प्रकाश डाला। इससे शोथ की प्रारंभिक अवस्था के परिवर्तनों का भी स्पष्टीकरण हुआ। इन विशिष्ट अनुसंधानों के अतिरिक्त लिस्टर ने शल्य चिकित्सा में क्रांतिकारी विधियों का आविष्कार तथा प्रचलन किया।
सन् १८६० में लिस्टर ग्लासगो विश्वविद्यालय में शल्य चिकित्सा के प्रोफेसर तथा कुछ ही समय पश्चात् राजकीय अस्पताल में शल्य चिकित्सक नियुक्त हुए। इस समय संवेदनहारी पदार्थों का आविष्कार कुछ वर्ष पूर्व हो जाने के कारण, बड़ी तथा दीर्घकालीन शल्यक्रियाएँ की जाने लगी थीं, जिनके पश्चात् रोगी में प्राय: भयानक सेप्टिक अवस्था उत्पन्न हो जाती थी। ग्लासगो का लिस्टरवाला अस्पताल इस संबंध में बदनाम था। इस विषय में चिंता करते हुए लिस्टर का ध्यान लुई पास्ट्यर के अनुसंधान की ओर गया। पास्ट्यर ने सिद्ध किया था कि हवा और धूल से लाए सूक्ष्म जीवों के कारण ही वस्तुएँ सड़ती है। इसी सिद्धांत के आधार पर लिस्टर ने ऐसे उपायों और द्रव्यों का उपयोग आरंभ किया जो इन सूक्ष्म जीवों को घाव में तथा उसके निकट मारकर उनका प्रभाव न होने दें। इस प्रकार इन्होंने शल्य चिकित्सा में न केवल पूतिदोषरोधी (antiseptic) वरन् अपूतिदोषी (aseptic) सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
लिस्टर का अन्य महत् अनुसंधान कार्य घावों को सीने और धमनियों को बाँधने के लिए उपयुक्त तंतु के बारे में था। तब तक इस कार्य के लिए रेशम, या सन का डोरा काम में आते थे। इन पदार्थों को शरीर अवशोषित नहीं कर पाता था और इससे अनेक बार घातक द्वितीयक रक्तस्राव उत्पन्न हो जाता था। लिस्टर ने इस काम के लिए ताँत (catgut) को चुना, जो अवशोषित हो जाता है। ताँत की पुष्टता को हानि पहुँचाए बिना उसे विसंक्रमित (disinfect) करने की विधि की खोज में कई वर्ष लगे। लिस्टर के इन अनंसुधानों के कारण पेट, छाती और मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा संभव हो गई।
सन् १८९५ से १९०० तक आप रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष रहे। बैरन की उपाधि देकर आपको अभिजात वर्ग में सम्मिलित किया गया तथा सन् १९०९ में आपको 'ऑर्डर ऑव मेरिट' मिला। लिस्टर इंस्टिट्यूट ऑव मेडिसिन को लिस्टर के नाम से संयुक्त कर आपको सम्मानित किया गया। अपनी प्रतिभा से विश्व के प्राणियों का उपकार करनेवाले इस वैज्ञानिक ने ८५ वर्ष की दीर्घायु तक मानव सेवा की।
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