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मध्यम आकार के जलचर पक्षी विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत : टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। जीववैज्ञानिक रूप से इसकी जातियाँ स्कोलोपसिडाए (Scolopacidae) नामक कुल में संगठित हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है। इसे कुररी भी कहते हैं। नर अपनी मादा को हवाई करतबों से रिझाता है, जिनमें उड़ान के बीच में द्रुत चढ़ाव, पलटे और चक्कर होते है। यह तेज़ चक्करों, हिचकोलों और लुढ़कन भरी उड़ान है, जिसमें कुछ अंतराल पर पंख फड़फड़ाने की ऊंची दूर तक सुनाई देती है। ये धरती पर मामूली सा खोदकर अथवा थोड़े से कंकरों और बालू से घिरे गढ्डे में घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन बरसात के समय मार्च से अगस्त के दौरान होता है। ये सामान्यत: दो से पांच नाशपाती के आकार के (पृष्ठभूमि से बिल्कुल मिलते-जुलते, पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी-भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों वाले) अंडे देती हैं। और यह पेड़ पर नही बैठते है।[1]
टिटहरी Sandpiper | |
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डनलिन (कैलिड्रिस अलपीना) | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी (Chordata) |
वर्ग: | पक्षी (Aves) |
गण: | करैड्रिफोर्मीस (Charadriiformes) |
उपगण: | स्कोलोपसी (Scolopaci) |
कुल: | स्कोलोपसिडाए (Scolopacidae) राफिनेस्क, 1815 |
वंश | |
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टिटहरी का एक बृहद परिवार है विश्व में। इस बड़े परिवार को अक्सर कई पक्षियों के समूहों में विभाजित किया जाता रहा है। इन समूह आवश्यक रूप से एक ही जाति में शामिल नहीं है, अपितु वे अलग मोनोफाईलेटिक विकासवादी प्रजातियों और सम्मोहों में वर्गीकृत है।[2]यहाँ उसके कई रूपों को प्रस्तुत किया जा रहा है :
जीनस न्यूमेनियस (8 प्रजाति, जो 1-2 हाल ही में विलुप्त)
जीनस बर्ट्रमिया (मोनोटाईपीक)
जीनस लिमोसा (4 प्रजाति)
जीनस लिम्नोड्रोमस (3 प्रजाति)
पीढ़ी और एस्कोलोपैक्स (लगभग 30 प्रजातियों के अलावा कुछ 6 विलुप्त)
जीनस फलारोप्स (3 प्रजाति)
जनेरा, जीनस, एक्टिटिस और त्रिंगा अब काइटोप्ट्रोफोरस तथा हेटरोसेल्स (16 प्रजातियों) भी शामिल है जो
जीनस प्रोसीओबेनिया (1 वर्तमान प्रजातियों, 3-5 विलुप्त)
ज्यादातर कई पीढ़ियों में विभाजित किया जा सकता है जो कैलिड्रिस में लगभग 25 प्रजातियों. वर्तमान में स्वीकार अन्य पीढ़ी : एरेनारिया टर्नस्टोन्स -2 के अलावा, अफरिजा, यूरिनोर्हिंचास, लिमिकोला, त्रिंगिट्स और फिलोमेचस हैं।[3]
इसी प्रकार दक्षिण एशिया में नौ प्रकार की टिटहरियाँ पायी जाती है :
लाल और पीले गलचर्म वाली टिटहरी काफी आम है और बहुतायात में पायी जाती है। लाल गलचर्म वाली टिटहरी की आँखों के आगे लाल मांसल तह होती है, जबकि पीले रंग की टिटहरी की आँखों के सामने चमकीले पीले रंग की मांसल तह और काली टोपी होती है। मादा टिटहरियों का कद नर की तुलना मे छोटा और रंग फीका होता है।
टिटहरियाँ बाहरी आक्रमण के प्रति निरंतर सजग रहती हैं और ख़तरा भांपते ही शोर मचाती हैं। लाल गलचर्म वाली टिटहरी का शोर सबसे अधिक तेज़ व वेधक होता है। टिटहरियाँ आक्रांता पर झपट पड़ती हैं और विशेष तौर पर घोंसला क़रीब होने पर उनके चारों तरफ उत्तेजित होकर चक्कर लगाती हैं। नवजातों को शिकारियों की नज़र से बचाने के लिए छद्म आवरण में रखा जाता है। किसी भी शिकारी के आने पर माता-पिता चूज़ों को मरने का स्वांग करने का संकेत देते हैं। यही तकनीक लोमड़ी जैसे अन्य पशु भी अपनाते हैं। उभरे हुए पंखों वाली टिटहरी के मगरमच्छ के खुले जबड़े के भीतर प्रवेश करने के प्रसंग विवादास्पद हैं, लेकिन हो सकता है कि ये मगर के दांतों और मसूड़ों से जोंक निकालती हों, लेकिन इन्हें कभी भी मुंह के भीतर घुसते हुए नहीं देखा गया है और मगरमच्छ के जबड़ों के पास या भीतर झुका हुआ कम ही पाया गया है। ये चीख़ मारकर मगरमच्छ को शिकारी के आगमन से आगाह करती है। दलदल और खुले मैदानों के लुप्त होने, चूजों, अंडों को खाए जाने, शिकारी व जाल में फंसाने तथा कीटनाशकों व प्रदूषण के कारण टिटहरी विलुप्तप्राय प्रजाति बन गई है। टिटहरी के पर्यावास को बचाने के लिए और अन्य जलपक्षियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रेखाकिंत करने के लिए संरक्षणवादी प्रयास कर रहे हैं। इसके बारे मे सबसे रोचक बात ये हे की ये कभी भी पेड़ पर नहीं बैठती हे
टिटहरियाँ पानी और खेतों के आसपास खुले और सूखे समतल इलाकों, ताजे पानी की दलदल, झीलों के दलदली किनारों, जुते खेतों तथा रेतीले या कंकरीले नदी के तटों में भी पाई जाती हैं। पीले गलचर्म वाली और झुंड में रहने वाली टिटहरियाँ शुष्क आवास पसंद करती हैं, जबकि लाल गलचर्म वाली टिटहरियाँ पानी से निकटता और उभरे पंख वाली टिटहरी या तटीय टिटहरी, जलासिक्त क्षेत्र में ही रहती है। इस श्रेणी के जलचर पक्षियों के शारीर और पैर लम्बे, एवं पंख संकीर्ण होते हैं। अधिकांश प्रजातियों के चोंच संकीर्ण होते है, लेकिन उनके आकार और लम्बाई में काफी विविधता होती है।
सफ़ेद पूंछ वाली टिटहरी (प्रजनन बलूचिस्तान में), झुंड में रहने वाली व धूसर सिर वाली और यूरोप तथा मध्य एशिया की उत्तरी टिटहरी शीत ॠतु में प्रवास के लिए दक्षिण एशिया में आती हैं, जबकि अन्य टिटहरियाँ यहीं की मूल निवासी हैं। वर्गीकरण विशेषज्ञ उभरे हुए पंख की टिटहरी को तेज़ दौड़ लगाने वालों की श्रेणी में रखते हैं।
भोजन की तलाश में टिटहरियाँ छोटी-छोटी दौड़ भरती हैं, रुककर, सीधी खड़ी हो जाती हैं और फिर झुककर शिकार चोंच में ले जाती हैं, इनकी उड़ान तेज़, शक्तिशाली, सीधी और सधी हुई होती है। इनके भोजन में मोलस्क, कीड़े कृमियों और अन्य छोटे रीढ़हीन जंतुओं के साथ-साथ नरम कीचड़ से बनी हुई वनस्पतियाँ भी होती हैं।[4]
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