नील माधव
विष्णु (एक हिन्दू भगवान) की एक अवतार / From Wikipedia, the free encyclopedia
नीलमाधव, भगवान कृष्ण और विष्णु की उस मूर्ति का नाम है जो 'जगन्नाथ' के रूप में पुरी में स्थापित एवं पूजित है। पहले इस मूर्ति को 'नीलमाधव' के रूप में जाना जाता था। यह मूर्ति बिश्वबसु नामक एक वनवासी राजा के पास थी। नीलमाधव पहाड़ी पर विराजमान थे और उनकी पूजा बिश्वबसु किया करते थे । आदिवासी लोग नील माधव जी को अपना आराध्य देवता मानते हे।[1]
Nilamadhaba Temple, Kantilo | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
सरदार विश्वासु जी नीलमाधव जी को अपना आराध्य देवता मानते थे नीलमाधव जी एक गुफा में विराजमान थे भील जनजाति के लोग बड़े ही हर्षोल्लास से भगवान नीलमाधव जी की आराधना किया करते थे [2] ।शास्त्र कहते हैं कि, भगवान कृष्ण के प्रकट होने के बाद, उन्होंने भगवान विष्णु का रूप धारण कर लिया। बिसवासु ने इस पत्थर को पाया और इसकी दिव्यता को महसूस किया। इसलिए उन्होंने इसकी पूजा शुरू की और उनका नाम भगवान नीला माधव रखा।
नील माधव | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
प्राचीन काल में नीलमाधव जी की जानकारी बाहरी लोगों को पता नहीं थी । पहाड़ी पर आदिवासी लोग नील माधव जी की पूजा किया करते थे और जिससे हुआ यह की यह जगह अन्य राजाओं की नजर में आई और वे इस बात को जानने को इच्छुक हुए की भील सरदार और उनकी प्रजा आखिरकार पहाड़ी पर विराजमान किस देवता की पूजा इतने पूर्ण मन से करते हैं ।
धीरे धीरे अन्य लोगों के मन में नील माधव जी के बारे में जानने की जिज्ञासा बड़ी और वे पहाड़ी पर पहुंचने के लिए रास्ता ढूंढने लगे , लेकिन राजा विश्वासु भील एक चतुर राजा थे वह इतनी आसानी से किसी को भी पहाड़ी पर नहीं आने देते थे लेकिन छल पूर्वक एक व्यक्ति पहाड़ी पर जा पहुंचा । धीरे धीरे अन्य राजाओं का ध्यान पहाड़ी पर स्थित नील माधव जी पर गया ।