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नैरो गेज रेलवे वह रेल ट्रैक होता है, जो 1,435 मिमी (4 फीट 8½ इंच) के मानक गेज से संकरा होता है। अधिकांश नैरो गेज, जो अब भी अस्तित्व में हैं; ३ फीट, ६ इंच (1,067 मिमी) या इससे भी संकरे हैं।
दो फीट छह इंच की इस नैरो गेज लेन पर नौ नवंबर, १९०३ से आजतक रेल यातायात जारी है। कालका-शिमला रेलमार्ग में १०३ सुरंगें और ८६९ पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर ९१९ घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन ४८ डिग्री के कोण पर घूमती है।
वर्ष १९०३ में अंग्रेजों द्वारा कालका-शिमला रेल सेक्शन बनाया गया था। रेल विभाग ने ७ नवम्बर २००३ को धूमधाम से शताब्दी समारोह भी मनाया था, जिसमे पूर्व रेलमंत्री नितीश कुमार ने हिस्सा लिया था। इस अवसर पर नितीश कुमार ने इस रेल ट्रैक को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए मामला यूनेस्को से उठाने की घोषणा की थी। यूनेस्को की टीम ने कालका-शिमला रेलमार्ग का दौरा करके हालात का जायजा लिया।
टीम ने कहा था कि दार्जिलिंग रेल सेक्शन के बाद यह एक ऐसा सेक्शन है जो अपने आप में अनोखा है। यूनेस्को ने इस ट्रैक के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए भरोसा दिलाया था कि इसे वल्र्ड हैरिटेज में शामिल करने के लिए वह पूरा प्रयास करेंगे। और अन्ततः २४ जुलाई २००८ को इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया।
कुछ देशो में नैरो गेज वहा की प्रमुख गेज है, लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में प्रयोगनीय नैरो गेज है:
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