पंचतंत्र
भारत से पशु फिबल्स का प्राचीन संस्कृत पाठ / From Wikipedia, the free encyclopedia
संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतन्त्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व[1] के आस-पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा हैं, कहीं-कहीं रचयिता का नाम 'बसुभग' आया है।[2]उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रन्थ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग 80 वर्ष थी। पंचतन्त्र को पाँच तन्त्रों (भागों) में बाँटा गया है: चूहा और शेर की कहानी Archived 2023-12-11 at the वेबैक मशीन
- मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
- मित्रलाभ या मित्रसम्प्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
- काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
- लब्धप्रणाश ( = सर्वनाश की स्थिति आ जाने पर)
- अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)
मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है। गीदड़ फिर से अपने मित्र शेर के पास आया और उसे गले लगाकर उसके लिए बड़ी महत्वाकांक्षा जताई। शेर भी अब उससे जल्दी से नहीं खाने का सामान लाने के लिए बोला।
पंचतन्त्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है।
पंचतन्त्र की कहानियाँ बहुत जीवन्त हैं। इनमे लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। बहुत से लोग इस पुस्तक को नेतृत्व क्षमता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है। यह भारत का सर्वाधिक बार अनूदित साहित्यिक रचना है।[3]
नीतिकथाओं में पंचतन्त्र का पहला स्थान है। पंचतन्त्र ही हितोपदेश की रचना का आधार है। स्वयं नारायण पण्डित जी ने स्वीकार किया है-
- पञ्चतन्त्रात्तथाऽन्यस्माद् ग्रन्थादाकृष्य लिख्यते॥
- -- श्लोक सं.९, प्रस्ताविका, हितोपदेश