पथचारी आन्दोलन
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भ्रमण की ओर मनुष्य का स्वाभाविक आकर्षण रहा है। इसके दो प्रत्यक्ष कारण हैं- (1) अनादि काल से उसकी यायावर प्रवृत्ति, तथा (2) ज्ञानोपार्जन की अभिलाषा। भारतीय आचारसंहिता में जीवन की चार अवस्थाएँ मानी गई हैं। इनमें तृतीय है वानप्रस्थ। इस अवस्था में भ्रमण ही वांछनीय है। हमारे मनीषियों में "चरैवेति, चरैवेति" तथा "चरन् वै मधु विंदति" का संदेश कदाचित् इसी कारण दिया था।