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पेठा या भुआ या कुष्माण्ड (अंग्रेज़ी:winter melon ; वानस्पतिक नाम : बेनिनकेसा हिस्पिडा (Benincasa hispida)), एक बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी की तरह खाया जाता है। यह हल्के हरे वर्ण का होता है और बहुत बड़े आकार का हो सकता है। पूरा पकने पर यह सतही बालों को छोड़कर कुछ श्वेत धूल भरी सतह का हो जाता है। इसकी कुछ प्रजातियां १-२ मीटर तक के फल देती हैं।[1] इसकी अधिकांश खेती भारत सहित दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में होती है। इससे भारत में एक मिठाई भी बनती है, जिसे मुरब्बा या पेठा (मिठाई) कहते हैं।
भुआ/पेठा विंटर मेलन | |
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लगभग तैयार भुआ/पेठा | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | मैग्नोलियोफाइटा |
वर्ग: | मैग्नोलियोप्सीडा |
गण: | कुकुर्बिटेल्स |
कुल: | कुकुर्बिटेसी |
वंश: | बेनिनकासा |
जाति: | B. hispida |
द्विपद नाम | |
Benincasa hispida थन्बर्ग. | |
कुष्मांड या कूष्मांड का फल भुआ, पेठा, भतुआ, कोंहड़ा, कुम्हड़ा आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका लैटिन नाम 'बेनिनकेसा हिस्पिडा' (Benincasa hispida) है।
यह लता वार्षिकी, कठिन श्वेत रोमों से आवृत 5-6 इंच व्यास के पत्तों वाली होती है। पुष्प के साथ अंडाकार फल लगते हैं। कच्चा फल हरा, पर पकने पर श्वेत, बृहदाकार होता है। यह वर्षा के प्रारंभ में बोया जाता है। शिशिर में फल पकता है। बीज चिपटे होते हैं। इसके एक भेद को क्षेत्रकुष्मांड, भतुआ या कोंहड़ा कहते हैं, जो कच्ची अवस्था में हरा, पर पकने पर पीला हो जाता है।
कुष्मांड खेतों में बोया जाता अथवा छप्पर पर लता के रूप में चढ़ाया जाता है। कुष्मांड भारत में सर्वत्र उपजता है।
इसका प्रयोग सब्जियों के रूप में कच्ची या सुखा कर भी की जाती है और सर्वाधिक प्रचलित रूप में इसका सेवन मुरब्बा या पेठा बना किया जाता है।
आयुर्वेद में यह लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है। इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक् पत्र, मूल, डंठल-तैल ओषधियों तथा अन्य कामों में प्रयुक्त होते हैं।
इसके मुरब्बे, पाक, अवलेह, ठंढाई, घृत आदि बनते हैं। इसके फल में जल के अतिरिक्त स्टार्च, क्षार तत्व, प्रोटीन, मायोसीन शर्करा, तिक्त राल आदि रहते हैं।
कुष्मांड के फलों के खाद्य अंश के विश्लेषण से प्राप्त आंकड़े इस प्रकार हैं
कुम्हड़ा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है। इसके ताजे बीज कृमिनाशक होते हैं। इसलिए इसके बीजों का उपयोग औषधि के रूप में होता है।
इसे झारखण्ड/बिहार में जेठ महीना के आरंभ होने से पहले धुला हुआ उरद दाल, थोड़ा चना दाल, गर्म मसाला, के साथ कद्दूकस किया हुआ कुष्मांड (भतुआ) को मिला कर तेज धुप में सुखा कर अदौरी (बड़ी) बनाया जाता है। जिसे सालभर डब्बाबंद रख कर लोग खाते हैं।
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