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प्रतिऑक्सीकारक
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प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का विरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण(OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अर्थात प्रति-आक्सीकारक वे अणु हैं, जो अन्य अणुओं को ऑक्सीकरण से बचाते हैं या अन्य अणुओं की आक्सीकरण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ऑक्सीकरण एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है जिसके द्वारा किसी पदार्थ से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन ऑक्सीकारक एजेंट को स्थानांतरित हो जाते हैं।

प्रतिआक्सीकारकों का उपयोग चिकित्साविज्ञान तथा उद्योगों में होता है। पेट्रोल में प्रतिआक्सीकारक मिलाए जाते हैं। ये प्रतिआक्सीकारक चिपचिपाहट पैदा करने वाले पदार्थ नहीं बनने देते जो अन्तर्दहन इंजन के लिए हानिकारक हैं। प्रायः प्रतिस्थापित फिनोल (Substituted phenols) एवं फेनिलेनेडिआमाइन के व्युत्पन्न (derivatives of phenylenediamine) इस काम के लिए प्रयुक्त होते हैं।
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परिचय
सारांश
परिप्रेक्ष्य
अनेक यौगिक हवा में खुले रखे जाने पर हवा के ऑक्सीजन द्वारा स्वत: ऑक्सीकृत (autooxidise) हो जाते हैं। इस रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप उन पदार्थो में कुछ अवांछनीय गुणधर्म आ जाते हैं, जो उनको साधारण उपयोग के लिये अनुपयुक्त कर देते हैं। इस प्रकार के अनेक परिवर्तनों का बोध साधारण इंद्रियों द्वारा हो जाता है। अत: स्वत: ऑक्सीकरण द्वारा पदार्थो के बिगड़ जाने तथा अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने का ज्ञान मनुष्य को बहुत दिनों से था यद्यपि 'स्वत: ऑक्सीकरण' की क्रिया का पूर्ण ज्ञान काफी बाद में हो पाया।
स्वत: ऑक्सीकरण की क्रिया चार पदों में संपन्न होती है :
(१) प्रारंभिक पद जो बहुत ही मंद गति से घटित होता है,
(२) क्रमश: तीव्र होनेवाली गति,
(३) लगभग स्थायी गति तथा
(४) अंतिम ह्रासोन्मुखी गति।
प्रथम पद तथा दूसरे पद की मंद गति तक की जो अवधि होती है उसे प्ररेण अवधि (Induction period) कहते हैं और यह इस बात को प्रदर्शित करता है। यह बात शृंखला अभिक्रिया (Chain reaction) के आधार पर ऑक्सीकरण अभिक्रिया प्रक्रम की पुष्टि करती है।
स्वत: ऑक्सीकरण प्रक्रिया में शृंखलावाहक का काम मुक्तमूलक (free radical) करते हैं जो बहुत ही सक्रिय होते हैं। स्वत: ऑक्सीकृत होनेवाले अणु में जो सबसे निर्बल कार्बन-हाइड्रोजन बंध होता है उसी के टूटने से ये मूलक बनते हैं। अत: इस प्रकार के पदार्थ में आसानी से निकल जानेवाले एक हाइड्रोजन परमाणु की उपस्थिति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसमें एक द्विबंध भी होना चाहिए जिसके साथ मुक्तमूलक संयुक्त हो सके।
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चिकित्साविज्ञान में प्रतिआक्सीकारक
सारांश
परिप्रेक्ष्य
यद्यपि आक्सीकरण अभिक्रियाएँ जीवन के लिए अति महत्वपूर्णन हैं, वे हानिकारक भी हो सकती हैं। ऑक्सीकरण अभिक्रिया से मुक्तमूलक उत्पन्न हो सकते हैं, जिनके द्वारा कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने वाली शृंखला अभिक्रिया आरंभ हो जाती है। प्रतिआक्सीकारक पदार्थ स्वयं इन मुक्त मूलकों से ऑक्सीकृत हो जाते हैं (अर्थात् मुक्त मूलकों को 'खा जाते' हैं) जिससे शृंखला अभिक्रिया को तोड़ने में मदद मिलती है। कर कोशिकाओं पर होने वाली इन शृंखला अभिक्रियाओं को रोक देते हैं। अतएव प्रायः एंटीऑक्सीडेंट रिड्यूसिंग एजेंट्स होते हैं, जैसे थायोल, एस्कॉर्बिक अम्ल या पॉलीफिनॉल आदि।
पादपों एवं जन्तुओं में विविध प्रकार के प्रतिआक्सीकारकों के निर्माण एवं संग्रह की जटिल व्यवस्था पायी जाती है। इनमें बीटा कैरोटीन ग्लुटाथिओन, (glutathione), विटामिन-सी, विटामिन-ई, एंजाइम (जैसे कैटालेज, सुपराक्साइड, डिस्मुटेज तथा विविध प्रकार के पेराक्सीडेज आदि) आदि आते हैं। प्रतिआक्सीकारकों की अपर्याप्त मात्रा होने पर या प्रतिआक्सीकारक एंजाइमों के नष्ट होने से आक्सीकर तनाव (oxidative stress) पैदा होता है जिससे कोशिकाओं को क्षति हो सकती है या उनकी मृत्यु हो सकती है।
ऐसा समझा जा रहा है कि आक्सीकर तनाव ही अनेकों रोगों का कारण है। इसलिए भेषजगुणविज्ञान (फार्माकोलोजी) में प्रतिआक्सीकारकों का गहन अध्ययन किया जाता है विशेषतः आघात तथा तंत्रिका-अपभ्रष्टी (neurodegenerative) रोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। आक्सीकर तनाव रोगों का कारण भी है और परिणाम भी।
प्रतिआक्सीकारकों का पूरक भोजन के रूप में खूब प्रयोग किया जाता है।
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प्रतिऑक्सीकारकों के औद्योगिक उपयोग
प्रतिऑक्सीकारक अधिकांश कार्बनिक यौगिक, जैसे ऐरोमेटिक एमीन, फ़िनोल, एमीनो फ़िनोल आदि होते हैं जो सरलता से हाइड्रोजन परमाणु निकालकर मुक्तमूलक में परिणत हो सकें और शृंखलित क्रिया का प्रसारण कर सकें। प्रतिऑक्सीकारक अपना कार्य करते समय स्वत: नष्ट हो जाते हैं या स्वत: ऑक्सीकृत होनेवाले पदार्थ इनको क्रमश: नष्ट कर देते हैं।
रबर, गैसोलीन तथा स्नेहक तेल (lubricating oil) आदि कुछ पदार्थो में तो प्रतिऑक्सीकारक स्वत: विद्यमान रहते हैं पर उनके शोधन के समय वे नष्ट हो जाते हैं। अत: इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि वे नष्ट न हों या शोधन के बाद फिर उनमें और प्रतिऑक्सीकारक मिलना पड़ता है।
अनेक ऐल्डीहाइड, जेसे बेंजैल्डिहाइड बहुत ही तीव्र गति से स्वत: ऑक्सीकृत हो जाते हैं अत: उसे रोकने के लिये हाइड्रोक्वीनोन, ऐल्फानैफथाल, कैटीकोल आदि प्रतिऑक्सीकारकों का उपयोग करना पड़ता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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