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फ्रैंकनस्टाइन; ऑर, द मॉडर्न प्रोमिथियस , जो साधारणतः फ्रैंकनस्टाइन नाम से विख्यात है, मेरी शेली द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। शेली ने अट्ठारह साल की उम्र में इसे लिखना शुरू किया था और उपन्यास के प्रकाशन के समय वह बीस वर्ष की थीं। इसका पहला संस्करण 1818 में लंदन में अज्ञात रूप से प्रकाशित किया गया। शेली का नाम फ्रांस में प्रकाशित दूसरे संस्करण में अंकित था। उपन्यास का शीर्षक का संबंध एक वैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से है, जो जीवन को उत्पन्न करने का तरीका सीख जाता है और मानव की तरह दिखने वाले एक प्राणी का सृजन करता है, जो औसत से कहीं ज़्यादा विशालकाय और शक्तिशाली होता है। लोकप्रिय संस्कृति में, "फ्रैंकनस्टाइन" को एक दैत्य समझा जाता है, जो गलत है। फ्रैंकनस्टाइन में गॉथिक उपन्यासों और रूमानी आंदोलन के कुछ पहलुओं का समावेश है। यह औद्योगिक क्रांति में आधुनिक मानव के विस्तार के खिलाफ भी एक चेतावनी देता है, जिसका संकेत उपन्यास के उपशीर्षक, द मॉर्डन प्रोमिथियस में मिलता है। इस उपन्यास का साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति पर काफ़ी प्रभाव रहा है और यह कई डरावनी कहानियों और फिल्मों का आधार भी बना है।
Frankenstein; or, The Modern Prometheus | |
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Illustration from the frontispiece of the 1831 edition by Theodor von Holst[1] | |
लेखक | Mary Wollstonecraft Godwin Shelley |
देश | United Kingdom |
भाषा | साँचा:English |
प्रकार | Horror, Gothic, Romance, science fiction |
प्रकाशक | Lackington, Hughes, Harding, Mavor & Jones |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी 1818 |
पृष्ठ | 280 |
आई॰एस॰बी॰एन॰ | N/A |
फ्रैंकनस्टाइन की शुरूआत, कैप्टन रॉबर्ट वाल्टन और उसकी बहन मार्ग्रेट वाल्टन सैविले के बीच पत्राचार को प्रलेखित करते हुए, पत्राकार रूप में होती है। वाल्टन, उत्तरी ध्रुव की खोज में निकलता है ताकि वह शोहरत और दोस्ती कमाने की आशा में अपने ज्ञान भंडार को बढ़ा सके. वॉल्टन का जहाज़ बर्फ में फंस जाता है और एक दिन चालक दल को कुछ दूरी पर एक डॉगस्लेज दिखता है, जिस पर एक विशालकाय मनुष्य की आकृति होती है। कुछ घंटों बाद, चालक दल को फ्रैंकनस्टाइन मिलता है लेकिन बहुत ही कमज़ोर और भूख से बेहाल अवस्था में. फ्रैंकनस्टाइन अपने दैत्य की खोज में था लेकिन उसके स्लेज के एक कुत्ते के सिवाय बाक़ी सभी मर चुके थे। उसने अपने डॉगस्लेज़ को तोड़ कर पतवार तैयार की और एक आईस राफ्ट के ज़रिए नाव तक पहुंचा। फ्रैंकनस्टाइन अपने परिश्रम से उबरने लगता है और वॉल्टन को अपनी आपबीती सुनाता है। अपनी कहानी शुरू करने से पहले फ्रैंकनस्टाइन वॉल्टन को सावधान करता है कि अगर इंसान अपनी क्षमता से ज्यादा कुछ पाने की कोशिश करता है तो उसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
फ्रैंकनस्टाइन अपसिद्धांत वाक़ई अस्तित्व में था क्योंकि वह एक दैत्य था और सभी सोचते थे कि वह असली नहीं है, जबकि वह असल में था!!!!!!!!!!!!
विक्टर फ्रैंकनस्टाइन अपनी कहानी की शुरूआत अपने बचपन से करता है। एक रईस परिवार में पलने वाले फ़ैंकनस्टाइन को अपनी आस-पास की दुनिया के बारे में बेहतर समझदारी रखने के लिए (विज्ञान के क्षेत्र में) प्रेरित किया जाता था। वह स्नेहपूर्ण परिवार और दोस्तों से घिरे एक सुरक्षित माहौल में बड़ा होता है।
फ्रैंकनस्टाइन अपनी अनाथ बहन एलिज़ाबेथ लावेंज़ा से नज़दीकी रिश्ते में बंधता है। अपनी मां की मौत के बाद एलिज़ाबेथ को फ्रैंकनस्टाइन के परिवार के साथ रहने के लिए भेज दिया जाता है। अपनी युवावस्था में फ्रैंकनस्टाइन विज्ञान के उन पुराने सिद्धांतों को लेकर काफी आसक्त होता है, जो प्राकृतिक चमत्कार हासिल करने पर केंद्रित होते थे। वह जर्मनी के इंगोलस्डाट विश्विद्यालय जाने की योजना बनाता है। लेकिन, निर्धारित रवानगी से एक सप्ताह पहले उसे खबर मिलती है कि उसकी मां और बहन एलिज़ाबेथ स्कारलेट बुखार से पीड़ित हैं। एलिज़ाबेथ ठीक हो जाती है, लेकिन फ्रैंकनस्टाइन की मां का देहांत हो जाता है। पूरा परिवार शोकाकुल हो जाता है और फ्रैंकनस्टाइन मौत को अपने जीवन के पहले दुर्भाग्य के रूप में देखता है। विश्वविद्यालय में वह रसायन विज्ञान और दूसरे विज्ञान में महारत हासिल करता है - अंशतऋ यह जानते हुए कि जीवन कैसे नष्ट होता है - और अजीव वस्तुओं में जान फूंकने का रहस्य जान जाता है। वह 1790 के दशक में आविष्कृत तकनीक गैल्वनिज़्म में दिलचस्पी लेने लगता है।
हालांकि दैत्य की रचना के वास्तविक विवरण अस्पष्ट रहते हैं, फ्रैंकनस्टाइन बताता है कि उसने मुर्दाघरों से मानव हड्डियों को एकत्रित किया और "अपनी नापाक उंगलियों से इंसान के शरीर की संरचना का रहस्य जाना". उसने यह भी कहा कि विच्छेदन कक्ष और कसाईख़ानों ने उसके लिए अधिकांश सामग्री उपलब्ध कराई.
फ्रैंकनस्टाइन स्पष्ट करता है कि वह आम आदमी से कहीं विशाल दैत्य बनाने के लिए मजबूर हुआ - वह उसके करीब आठ फीट लंबा होने का अनुमान लगाता है - अंशतः क्योंकि उसे इंसानी शरीर के सूक्ष्म अंगों के पुनर्निर्माण करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दैत्य के शरीर में जान फूंकने के बाद, फ्रैंकनस्टाइन को दैत्य की बनावट से घिन आती है और वह उससे डरता भी है। फ्रैंकनस्टाइन भाग जाता है।
मानव जीवन का सृजन करते-करते थक जाने पर, फ़्रैंकनस्टाइन बीमार पड़ जाता है। उसके बचपन का दोस्त हेनरी क्लरवल उसकी देखभाल करते हुए स्वस्थ होने में मदद करता है। फ़्रैंकनस्टाइन को बीमारी से उबरने में करीब चार महीने लग जाते हैं। जब उसे पता चलता कि उसके पांच साल के भाई विलियम का कत्ल हुआ है, तो वह घर लौटने का मन बना लेता है। एलिज़ाबेथ खुद को विलियम की मौत का दोषी मानती है, क्योंकि उसने विलियम को उसकी मां के लॉकेट को हाथ लगाने दिया था। विलियम की आया जस्टिन को इस हत्या का दोषी मानकर सूली पर चढ़ा दिया जाता है, क्योंकि उसकी जेब से फ्रैंकनस्टाइन की मां का लॉकेट मिलता है। उपन्यास में बाद में व्यक्त होता है कि उस दैत्य ने विलियम की हत्या कर लॉकेट को जस्टिन के कोट की जेब में रख दिया था और दैत्य द्वारा विलियम की हत्या की पूर्वकथा दी गई है।
इंसान के साथ कई संघर्षपूर्ण सामना करने के बाद फ्रैंकनस्टाइन का दैत्य उनसे डरने लगता है और एक साल एक घर के पास, उसमें बसे परिवार को देखते हुए बिताता है। वह परिवार अमीर था, लोकिन उसे देश निकाला मिला होता है क्योंकि उस परिवार के मुखिया फेलिक्स डी लेसी ने एक तुर्क व्यापारी की मदद की थी, जिसे एक झूठे मामले में फंसा कर फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। जिसे फेलिक्स ने बचाया था वह उसकी प्रेमिका, सेफी का पिता था। फांसी से बचने के बाद वह व्यापारी अपनी बेटी सैफी की शादी फेलिक्स से करने को तैयार हो जाता है। हालांकि एक ईसाई से अपनी बेटी की शादी का विचार उसके गले नहीं उतरता है और वह सैफी को लेकर भाग जाता है। लेकिन सैफी लौट आती है क्योंकि वह दूसरी यूरोपीय महिलाओं की तरह आज़ाद रहना चाहती है।
डी लेसी परिवार पर ग़ौर करते हुए दैत्य को समझ-बूझ आती है और वह जान जाता है कि उसके शरीर की बनावट दूसरों से बहुत अलग है और वह उनसे बिलकुल जुदा है। अकेलेपन में उसके मन में डी लेसी परिवार से दोस्ती की चाहत जाग उठती है। जब वह उस परिवार से संपर्क करने की कोशिश करता है, तो उसके प्रति उन लोगों का डर आड़े आता है। यह तिरस्कार दैत्य को अपने सृष्टिकर्ता से बदला लेने के लिए उकसाती है।
फ्रैंकनस्टाइन का दैत्य जेनेवा जाता है और वहां उसकी मुलाकात एक नन्हें बालक से होती है। इस आशा में कि बालक नादान है और शायद उसके भयंकर रूप के प्रति बड़ों जैसा प्रभावित नहीं होगा और उसका अच्छा साथी बन सकता है, फ़्रैंकनस्टाइन का दैत्य बच्चे को अगवा करने की योजना बनाता है। लेकिन वह बच्चा उसे बताता है कि वह फ्रैंकनस्टाइन का रिश्तेदार है, दैत्य को देख वह बच्चा चिल्लाता है और उसे अपमानित करता है जिससे उसे बहुत गुस्सा आता है। बच्चे को चुप करने के लिए दैत्य उसके मुंह पर हाथ रख देता है। लेकिन सांस न ले पाने की वजह से बच्चे की मौत हो जाती है। हालांकि बच्चे की हत्या करना उसकी मंशा कभी नहीं थी लेकिन वह इस घटना को फ्रैंकनस्टाइन के खिलाफ अपना पहला बदला मानता है। वह बच्चे के शरीर से लॉकेट निकालकर घर में सो रही एक लड़की जस्टिन के कपड़ों की जेब मे रख देता है। जस्टिन के कब्ज़े से लॉकेट बरामद होता है और उसे दोषी मानकर सूली पर चढ़ा दिया जाता है। मामले की सुनवाई करने वाले जज फांसी की सज़ा के खिलाफ अपने विचारों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन समाज से जाति-बहिष्कार के डर के कारण जस्टिन गुनाह कबूल लेती है और उसे फांसी दे दी जाती है।
जब फ्रैंकनस्टाइन को अपने भाई की मौत की जानकारी मिलती है तो वह अपने परिवार के साथ रहने के लिए जेनेवा लौटता है। फ्रैंकनस्टाइन उस दैत्य को जंगल में देखता है जहां उसके भाई की हत्या हुई थी और उसे इस बात पर पूरी तरह से विश्वास हो जाता है कि विलियम का हत्यारा वह दैत्य ही है। इतनी तबाही मचाने वाले दैत्य के सृजन के प्रति दुख और अपराधबोध से परेशान फ्रैंकनस्टाइन शांति की तलाश में पर्वतों की ओर निकल पड़ता है। कुछ वक्त अकेलेपन में बिताने के बाद दैत्य फ्रैंकनस्टाइन से मिलता है। आरंभ में दैत्य को देखकर फ्रैंग्कस्टीन उसे मारने की मंशा से वह उस पर हमला करने की कोशिश करता है। फ्रैंकनस्टाइन के आकार से काफी विशाल और चुस्त वह दैत्य हमले से आसानी से बच निकलता है और उनके शांत होने का इंतज़ार करता है। वह दैत्य अपनी छोटी-सी जिंदगी की एक लंबी कहानी सुनाता है, जिसकी शुरूआत वह अपने सृजन से करता है और उसकी इस कहानी में इस बात की झलक मिलती है कि वह शुरूआत में मासूम था जो किसी को चोट नहीं पहुंचा सकता था, लेकिन इंसानों के बर्ताव ने उसे खूंखार बनने पर मजबूर कर दिया. वह अपनी कहानी का अंत इस मांग के साथ करता है कि फ्रैंकनस्टाइन उसके लिए एक महिला साथी का भी सृजन करे, क्योंकि वह अकेला है और कोई मानव उसे कबूलने को तैयार नहीं होगा. वह तर्क देता है कि एक जीवित प्राणी होने के नाते उसे भी खुश रहने का हक है और उसका सृजनकर्ता होने के नाते फ्रैंकनस्टाइन का दायित्व बनता है कि वह उसकी मांग पूरी करे. वह वादा करता है कि अगर फ्रैंकनस्टाइन उसके लिए एक महिला साथी का सृजन करता है, तो वह उसे कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाएगा.
अपने परिवार की सुरक्षा की खातिर फ्रैंकनस्टाइन ना चाहते हुए भी दैत्य की बात मान लेता है और अपना काम करने के लिए इंग्लैंड चला जाता है। उसका दोस्त क्लरवल उसके साथ आता है लेकिन स्कॉटलैंड में वे जुदा हो जाते हैं। ऑर्कनी द्वीपों में दूसरे दैत्य का सृजन करने के दौरान फ्रैंकनस्टाइन को यह चिंता सताने लगती है कि अगर दूसरा दैत्य बना तो वह कितना कहर ढ़ा सकता है। फ्रैंकनस्टाइन अपनी अपूर्ण परियोजना को नष्ट कर देता है। दैत्य इसे देखता है और वह फ्रैंकनस्टाइन की सुहाग रात के दिन बदला लेने की ठान लेता है। फ्रैंकनस्टाइन की आयरलैंड वापसी से पहले दैत्य उसके दोस्त क्लरवल की हत्या कर देता है। जब फ्रैंकनस्टाइन आयरलैंड पहुंचता है, तो उसे इस हत्या के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता है और जेल में वह बहुत बुरी तरह से बीमार पड़ जाता है। जेल से रिहा होने और स्वस्थ होने के बाद फ्रैंकनस्टाइन अपने पिता के साथ घर लौटता है।
घर लौटने पर फ्रैंकनस्टाइन अपनी रिश्तेदार एलिज़ाबेथ से शादी कर लेता है और यह जानते हुए कि वह दैत्य उस पर कभी भी धावा बोल सकता है, उसके खिलाफ लड़ने की तैयारी करता है। यह नहीं चाहते हुए कि एलिज़ाबेथ उस दैत्य को देखकर डर जाए, फ्रैंकनस्टाइन एलिज़ाबेथ को रात को उसके कमरे में रहने की हिदायत देता है। दैत्य एलिज़ाबेथ को अकेला पाकर उसकी भी हत्या कर देता है। अपनी पत्नी, विलयम, जस्टीन, क्लरवल औऱ एलिज़ाबेथ की मौत के ग़म में फ्रैंकनस्टाइन के पिता का निधन हो जाता है। फ्रैंकनस्टाइन ठान लेता है कि वह तब तक उस दैत्य का पीछा करेगा जब तक कि उनमें से कोई एक-दूसरे को ना मार गिराए. महीनों की खोज के बाद, दोनों उत्तरी ध्रुव के निकट आर्कटिक सर्कल में पहुंचते हैं।
फ्रैंकनस्टाइन के वर्णन के अंत में कैप्टन वॉल्टन कहानी दोबारा सुनाना शुरू करता है। फ्रैंकनस्टाइन द्वारा कहानी सुनाना ख़त्म करने के कुछ दिनों बाद वॉल्टन औऱ उसका चालक दल फैसला करता है कि वे बर्फ को तोड़ नहीं पाएंगे और उन्हें वापस लौटना चाहिए. फ्रैंकनस्टाइन की मौत के समय, दैत्य कमरे में प्रकट होता है। वॉल्टन के सामने दैत्य अपने बदले की भावना को दृढ़तापूर्वक सही ठहराता है और साथ ही अपने गुनाहों पर खेद व्यक्त करता है, दैत्य वॉल्टन का जहाज़ छोड़कर उत्तरी ध्रुव की ओर निकल पड़ता है जहां वह अपनी चिता जलाकर खुद को नष्ट कर सके ताकि कोई उसके अस्तित्व के बारे में कभी ना जान पाए.
How I, then a young girl, came to think of, and to dilate upon, so very hideous an idea?[2]
1816 की बारिश वाली गर्मियों में, "बगैर गर्मियों वाले वर्ष", 1815 में माऊंट तम्बोरा के फटने के कारण दुनिया लंबे शीत ज्वालामुखीय लहर की चपेट में आ गई थी।[3] 18 साल की मेरी वोलस्टोनक्राफ्ट गॉडविन और उसके प्रेमी (बाद में पति) पर्सी बायशी शेली, स्विट्ज़रलैंड में जेनेवा झील के किनारे, विला डायोडाटी बंगले में लॉर्ड बायरन से मिलने पहुंचे। बाहर जाकर छुट्टियां बिताने की उनकी योजना के लिए गर्मियों का मौसम बहुत ही ठंडा और नीरस था, इसलिए समूह ने भोर तक घर के अंदर ही रहने का फैसला किया।
अन्य विषयों के साथ, बातचीत गैल्वानिस्म और लाश या संयोजित शरीर के अंगों में जान फूंकने की संभाव्यता और 18वीं सदी के नैसर्गिक दार्शनिक और कवि एरासमस डारविन के प्रयोगों की ओर मुड़ी, जिन्होंने कथित तौर पर मृत पदार्थों को सजीव किया था।[4] बायरन विला में आग सेकते हुए, समूह ने जर्मन भूत-प्रेत संबंधी कहानिंया पढ़ कर अपना दिल बहलाया, जिसने बायरन को यह सुझाव देने पर प्रेरित किया कि उनमें से प्रत्येक को अपनी अलौकिक शक्ति पर कहानी लिखनी चाहिए. इसके कुछ समय बाद ही, एक जाग्रत स्वप्न में, मेरी गॉडविन के मन में फ्रैंकनस्टाइन का विचार आया।
I saw the pale student of unhallowed arts kneeling beside the thing he had put together. I saw the hideous phantasm of a man stretched out, and then, on the working of some powerful engine, show signs of life, and stir with an uneasy, half vital motion. Frightful must it be; for SUPREMELY frightful would be the effect of any human endeavour to mock the stupendous mechanism of the Creator of the world.[5]
मेरी ने लिखना शुरू किया और ये माना कि ये एक लघु कथा होगी. पर्सी शेली के प्रोत्साहन के बाद मेरी ने इस लघु कथा को एक पूर्ण उपन्यास का रूप दे दिया.[6] उन्होने बाद में स्विट्ज़रलैंड में बिताई उन गर्मियों को एक ऐसा पल करार दिया "जब मैं अपने बचपन से बाहर निकलकर जिंदगी में कदम रखा".[7] बायरन, बालकन देशों के अपने दौरे के दौरान सुनी गई वैम्पायर की कहानियों पर आधारित एक छोटा सा ही लेख लिख पाया जो बाद में जॉन पिडोरी की "द वैम्पायर " (1819) का आधार बना, पिडोरी को रोमांटिक वैम्पायर शेली का जनक कहा जाता है। इस तरह एक घटना से दो महान डरावनी गाथाओं का जन्म हुआ।
1818 में प्रकाशित पहले तीन-भाग के संस्करण (1816-1817 के बीच लिखे गए) के लिए मेरी और पर्सी बायशी शेली के हाथों से लिखे गए कागज़ और मैरी द्वारा अपने प्रकाशक के लिए लिखी गई प्रति आज ऑक्सफॉर्ड के बॉडलियन पुस्तकालय में संग्रहित हैं। बॉडलियन ने 2004 में इन दस्तावेजों का अधिग्रहण किया और अब वे एबिंगर संग्रह का हिस्सा हैं।[8] 1 अक्तुबर, 2008 को बॉडलियन ने फ्रैंकनस्टाइन का एक नया संस्करण प्रकाशित किया जिसमें मेरी शेली द्वारा लिखी गई मूल प्रति और उसमें पर्सी शैली द्वारा दिए गए सुझावों की तुलनात्मक व्याख्या की गई है। इस नए संस्करण का संपादन चार्लस E. रोबिनसन ने किया है।.. और इसका नाम है "द ऑरिजिनल फ्रैंकनस्टाइन " (ISBN 978-1851243969).[9]
मेरी शेली ने मई 1817 में ये उपन्यास को खत्म किया और फ्रैंकनस्टाइन; या द मॉर्डन प्रोमिथियस का पहला प्रकाशन लंदन में हार्डिंग के एक छोटे से प्रकाशन घर, मेयर एंड जोन्स, द्वारा 1 जनवरी 1818 को प्रकाशित किया गया। इसे बिना किसी लेखक के नाम से प्रकाशित किया गया था, हालांकि इसमें पर्सी बायशी शेली ने मेरी के लिए प्रस्तावना लिखी थी और इसे मेरी कि पिता विलियम गॉडविन को समर्पित किया गया था। इस संस्करण की सिर्फ पांच सौ प्रतियां तीन-भागों में प्रकाशित की गईं, 19वीं सदी में पहले संस्करण को तीन-भागों (ट्रिपल-डेकर) में प्रकाशित करने का रिवाज़ था। पर्सी बायशी शेली के प्रकाशक, चार्लय ओलियर और बायरन के प्रकाशक, जॉन मरे ने पहले इस उपन्यास को छापने से मना कर दिया था।
फ्रैंकनस्टाइन का दूसरा संस्करण 11 अगस्त 1823 में दो भागों में प्रकाशित हुआ (G. और W. B. विटेकर द्वारा) और इस बार लेखक के तौर पर मेरी शेली का नाम छापा गया।
31 अक्तुबर 1831 को हेनरी कॉलबम और रिचर्ड बेन्टले ने इस उपन्यास का पहला भाग का "लोकप्रिय" संस्करण प्रकाशित किया। इस संस्करण में मेरी ने कई संशोधन किए थे और इसमें उन्होंने एक नई प्रस्तावना लिखी थी जिसमें इस उपन्यास की उत्पत्ति की कहानी को संवारकर पेश करने की कोशिश की गई थी। ये संस्करण अब तक छपे उपन्यास के दूसरे संस्करणों से ज्यादा पढ़ा गया संस्करण माना जाता है, हालांकि 1818 के ही मूल विषय वाले संस्करण अब भी छापे जाते हैं। वास्तव में विद्वान 1818 के संस्करण को ही वरीयता देते हैं उनका तर्क है कि ये शेली के मूल प्रकाशन की आत्मा/भावना को जीवित रखता है, (देखिए: W.W. नॉर्टन के आलोचनातम संस्करण में एन K. मेलर द्वारा "चूजिमग अ टेक्स्ट ऑफ फ्रैंकनस्टाइन टू टीच").
फ्रैंकनस्टाइन अपने द्वारा बनाए गए दैत्य से नाखुश था, इस तथ्य से स्थापित होता है कि उसने उसे कोई नाम नहीं दिया और इस वजह से उसकी कोई पहचान नहीं थी। बजाए इसके, फ्रैंकनस्टाइन ने उसका ज़िक्र करने के लिए "दैत्य", "राक्षस", "दुष्ट", "कमीना" और "वह" जैसे शब्दों का प्रयोग किया। जब 10वें अध्याय में फ्रैंकनस्टाइन दैत्य से बातचीत करता है तो वह उसे "घिनौना कीड़ा", "घृणित दैत्य", "दुष्ट", "कमीना शैतान" और "घृणित शैतान" जैसे अपशब्दों से संबोधित करता है।
फ्रैंकनस्टाइन के बारे में बताते हुए शेली ने उस दैत्य को "आदम" नाम से भी संबोधित किया।[11] शेली ने इडन का बागीचा में पहले इंसान का हवाला देते हुए अपने पुरालेख में कहा:
दैत्य को अक्सर "फ्रैंकनस्टाइन" कहा जाता है, जो बिल्कुल गलत है। 1908 में एक लेखक ने कहा था "ये बहुत अजीब बात है कि "फ्रैंकनस्टाइन" शब्द का इस्तेमाल दुनियाभर में गलत तरीके से किया जाता है, इसमें विद्वान लोग भी शामिल हैं, ये किसी भयानक दैत्य का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।.."[12] 1916 में छपे एडिथ वॉर्टन के द रीफ में एक उपद्रवी बच्चे को "नन्हा फ्रैंकनस्टाइन" कहा गया।[13] 12 जून 1844 में द रोवर में प्रकाशित डेविड लिंड्से के "द ब्राइडल ऑर्नामेंट" में "गरीब फ्रैंकनस्टाइन के सृजनकर्ता" का ज़िक्र है। 1931 में आई जेम्स वेल्स की मशहूर फिल्म फ्रैंकनस्टाइन देखने के बाद दर्शक दैत्य को ही "फ्रैंग्कंस्टीन" कहने लगे. यह सिलसिला ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1935) और इस श्रृंखला की दूसरी फिल्मों में भी जारी रहा, कई फिल्मों के नामों तक में भी इसका गलत इस्तेमाल हुआ जैसे कि एबट एंड कोस्टेलो मीट फ्रैंकनस्टाइन .
मेरी शेली इस बात पर हमेशा कायम रही कि उन्होंने एक सपना देखा था जहां से फ्रैंकनस्टाइन नाम अस्तित्व में आया। नाम के असलीपन को लेकर उनके कई दावों के बावजूद ये कई कयासों और विवादों से घिरा रहा है। वास्तविक तौर पर जर्मन भाषा में फ्रैंकनस्टाइन का अर्थ है "फ्रैंक्स का पत्थर". ये नाम कई जगहों से जुड़ा है, जैसे कि कासल फ्रैंकनस्टाइन(बर्ग फ्रैंग्कंस्टीन), जिसे उपन्यास लिखने से पहले मेरी शेली ने एक नाव पर यात्रा के दौरान देखा था। फ्रैंकनस्टाइन पेलेटिनेट क्षेत्र में एक कस्बे का नाम भी है; और 1946 से पहले पोलैंड के सिलिसिया में ज़ाबकोविस स्लास्की नाम के शहर को फ्रैंकनस्टाइन इन शलेशियन के तौर पर भी जाना जाता था।
हाल में ही, राडू फ्लोरेशु ने अपनी किताब इन सर्च ऑफ फ्रैंकनस्टाइन में दावा किया कि मेरी और पर्सी शेली ने स्विट्ज़रलैंड जाते समय राइन नदी के किनारे, डार्मस्टेट स्थित कासल फ्रैंकनस्टाइन का दौरा किया था, जहां कोनराड डिपल नाम के एक कुख्यात कीमियागार ने मानव शरीर के साथ प्रयोग किए थे, लेकिन मेरी शेली ने इस यात्रा का ज़िक्र नहीं किया था ताकि असलीपन का उसका दावा कायम रहे. हाल ही के एक साहित्यिक निबंध[14] में ए जे डे ने फ्लोरेशु के इस दावे को सही ठहराया कि मेरी शेली कासल फ्रैंकनस्टाइन के बारे में जानती है और अपना उपन्यास लिखने से पहले वह वहां गई थीं[15]. डे ने इसके लिए मेरी शेली के "गुम" हुए दस्तावेज़ों का हवाला दिया है जिसमें कथित तौर पर फ्रैंकनस्टाइन कासल का ज़िक्र है। हालांकि इस सिद्धांत को कुछ लोग सही नहीं मानते हैं; फ्रैंकनस्टाइन विशेषज्ञ लियोनार्ड वुल्फ इसे एक "अपुष्ट... षड़यंत्र का सिद्धांत"[16] करार दिया है, उनके मुताबिक 'गुम हुए दस्तावेज़ों' और फ्लोरेशु के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती.[17]
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जॉन मिल्टन के महाकाव्य पैराडाइस लॉस्ट का मेरी शेली पर खासा प्रभाव माना जाता है (पैराडाइस लॉस्ट में से एक संविदा भाव कोटेशन का इस्तेमाल फ्रैंकनस्टाइन के पहले पन्ने पर होना और शेली दैत्य को इस संविदा भाव को पढ़ने की इजाज़त भी देती है). मिल्टन ने पैराडाइस लॉस्ट में ईश्वर को अक्सर "द विक्टर" कहकर संबोधित किया है और शेली के लिए विक्टर भगवान की तरह ही है क्योंकि वह भी जीवन का सृजन करता है। इसके अलावा, शेली द्वारा दिया गया दैत्य का वर्णन पैराडाइस लॉस्ट में शैतान के चरित्र से काफी हद तक मेल खाता है और दैत्य इस महाकाव्य को पढ़ने के बाद यहां तक कहता है कि वह उसमें शैतान के चरित्र से समानुभूति रखता है।
विक्टर और मेरी के पति, पर्सी शेली के बीच भी कई समानताएं हैं। विक्टर, पर्सी शेली का उपनाम था, उन्होंने अपनी बहन एलिज़ाबेथ के साथ मिलकर लिखे गए कविताओं के एक संग्रह का नाम ऑरिजिनल पोइट्री बाय विक्टर एंड कज़ायर रखा था।[18] कयास लगाए जाते रहे हैं कि विक्टर फ्रैंकनस्टाइन के चरित्र लिए मेरी शेली ने पर्सी को आदर्श माना था, क्योंकि पर्सी ने ऐटन में "विद्युत और चुम्बकीय शक्ति के साथ और बारूद एवं दूसरे रसायनों के साथ कई प्रयोग किए थे" और उनके ऑक्सफॉर्ड में उनके कमरे वैज्ञानिक उपकरणों से भरे पड़े थे।[19] पर्सी शेली, ऊंची राजनीतिक पहुंच के एक अमीर जागीरदार के बड़े बेटे थे और कासल गोरिंग के पहले उपसामंत, सर बायशी शेली और एरंडल के 10वें सामंत, रिचर्ड फिट्ज़लन के वंशज थे।[20] विक्टर का परिवार भी इलाके के रौबदार परिवारों में से था और उसके पूर्वज राजदरबारी हुआ करते थे। पर्सी की एलिज़ाबेथ नाम की एक बहन थी। विक्टर की एक मुंहबोली बहन थी जिसका नाम भी एलिज़ाबेथ था। 22 फ़रवरी 1815 ने समय से दो महीने पहले (प्रीमैच्योर) एक बच्चे को जन्म दिया जिसकी दो हफ्ते बाद मृत्यु हो गई। पर्सी ने इस अवधिपूर्व बच्चे की स्थिति पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और पर्सी के संबंध मेरी की सौतेली बहन क्लैरी के साथ बढ़ने लगे.[21] जब विक्टर ने देखा की दैत्य जीवित हो उठा है तो वह कमरा छोड़कर भाग गया, हालांकि वह दैत्य उस तरह विक्टर की ओर बढ़ा था जैसे कि एक नवजात शिशु अपने माता-पिता की ओर बढ़ता है। विक्टर का दैत्य के प्रति दायित्व, इस उपन्यास की मुख्य विषय-वस्तु है।
द मॉर्डन प्रोमिथियस उपन्यास का उपशीर्षक है (हालांकि इस उपन्यास के कई नए संस्करण इसका इस्तेमाल नहीं करते और सिर्फ परिचय में ही इसका ज़िक्र करते हैं). प्रोमिथियस, यूनानी पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वह देवता था जिसने मानव जाति का सृजन किया। वह प्रोमिथियस ही था जिसने स्वर्ग से आग्नि चुराकर मानव को दी थी। जब देवताओं के राजा ज़ीयस को यह बात पता चली तो उन्होंने सज़ा के तौर पर प्रोमिथियस को ताउम्र एक चट्टान के साथ बांधकर रख दिया जहां रोज़ एक परभक्षी पक्षी आकर उसका कलेजा खाता था, लेकिन वह दोबारा उग जाता था और पक्षी अगले दिन आकर उसे दोबारा खाता था, अंत में प्रोमिथियस को हेराकल्स (हरक्यूलीस) ने इस बंधन से मुक्ति दिलाई.
प्रोमिथियस लातिन में भी सुनाए जाना वाला एक पौराणिक कथा है लेकिन कहानी बिल्कुल अलग है। इस कहानी में प्रोमिथियस मिट्टी और पानी से मानव का सृजन करता है, जो फ्रैंकनस्टाइन में एक अहम विषय-वस्तु है क्योंकि विक्टर भी प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता है और परिणामस्वरूप उसकी रचना ही उसे सज़ा देती है।
प्रोमिथियस की यूनानी पौराणिक कथा में जो देवता है, वह विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से तुल्य है, जिस तरह विक्टर नए तौर तरीकों से मानव का सृजन करता है ठीक उसी ही तरह देवता भी मानव जाति का सृजन करता है। एक तरह से विक्टर नें भगवान से मानव सृजन का रहस्य छीन लिया ठीक वैसे ही जैसे कि देवता ने स्वर्ग से आग चुराकर मानव को सौंप दी थी। विक्टर औऱ देवता दोनों ही अपने कर्मों की सज़ा पाते हैं। विक्टर को अपने सगे-संबंधियों की मौत की वजह से बहुत कष्ट झेलना पड़ता है और उसे डर भी सताता है कि उसके द्वारा किया गया सृजन उसे मार डालेगा
मेरी शेली के लिए प्रोमिथियस कोई नायक नहीं था बल्कि कुछ-कुछ शैतान की तरह था, जिसे वह मानव को आग देने का दोषी मानती थी और जिसकी वजह से मानव जाति को मांस खाने की बुरी लत लग गई (आग से पाक कला विकसित हुई और उससे शिकार और हत्याएं भी शुरू हो गईं).[22] इस दावे के प्रति मेरी का समर्थन, उपन्यास के 17वें अध्याय में देखने को मिलता है, जहां "दैत्य" विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से कहता है: "मेरा भोजन मनुष्य नहीं है; मैं अपने पेट के लिए मेमने और बच्चे को नहीं मारता; मेरे पोषण के लिए बेर और बंजुफल ही काफी हैं।" आम तौर पर रूमानी दौर के कलाकारों के लिए, मानव को प्रोमिथियस का तोहफा 18वीं सदी के दो महान अव्यवहारिक वादों को दर्शाता है: औद्योगिक क्रांति और फ्रांसिसी क्रांति, जिसमें दोंनों महान वादे और अनकहे-अनसुने सक्षत भय मौजूद थे।
बायरन को एशिलस के नाटक प्रोमिथियस बाउंड से खासा लगाव था और पर्सी शेली जल्द ही अपना प्रोमिथियस अनबाउंड (1820) लिखने वाले थे। "मॉर्डन प्रोमिथियस" शब्द इमैनुएल कैंट ने गढ़ा था, जिसमें उन्होंने बेंजामिन फ्रैंकलिन और उस दौरान किए गए उनके विद्युतीय प्रयोगों का ज़िक्र किया था।[23]
शेली ने अपने उपन्यास में कई अलग स्रोतों का समावेश किया, जिनमें से एक थी ओविड की प्रोमिथियन दंतकथा। जॉन मिल्टन के पैराडाइस लॉस्ट और सैम्युल टेलर कोलेरिज के "द राइम ऑफ द एंशियंट मरीनर ", वह किताबें जो दैत्य को कैबिन में मिलती हैं, का असर उपन्यास में साफ देखने को मिलता है। साथ ही शेली दंपत्ति ने विलियम थॉमस बेकफोर्ड के गॉथिक उपन्यास वैथेक को पढ़ा था। [उद्धरण चाहिए] फ्रैंकनस्टाइन में मेरी शेली की मां मेरी वॉल्स्टोनक्राफ्ट का कई जगह ज़िक्र है और उनकी मुख्य किताब "अ विंडिकेशन ऑफ द राइट्स ऑफ वुमन " का भी, जिसमें पुरुषों और महिलाओं में समान शिक्षा की कमी का वर्णन किया गया है। अपनी मां के विचारों को अपने काम में शामिल करना भी उपन्यास के सृजन और मातृत्व की विषय-वस्तु से ही जुड़ा है। मेरी ने फ्रैंकनस्टाइन के चरित्र के लिए हम्फ्री डेवी की किताब एलिमेंट्स ऑफ केमिकल फिलोसॉफी से शायद कुछ प्रेरणा भी ली होगी जिसमें डेवी ने लिखा है कि "विज्ञान ने... मानव को कई शक्तियां प्रदान की हैं जिन्हें सृजनात्मक कहा जा सकता है; और जिसकी बदौलत वह अपने आस-पास के जीव-जंतुओं को बदलने और सुधारने में सक्षम हुआ है।.."
शेली ने अपने उपन्यास की एक विवेचना का खुद प्रसंगवश उल्लेख किया है, जब वह अपने पिता विलियम गॉडविन की अतिवादी राजनीति का हवाला देती है।
The giant now awoke. The mind, never torpid, but never rouzed to its full energies, received the spark which lit it into an unextinguishable flame. Who can now tell the feelings of liberal men on the first outbreak of the French Revolution. In but too short a time afterwards it became tarnished by the vices of Orléans — dimmed by the want of talent of the Girondists — deformed and blood-stained by the Jacobins.[24]
शेली के उपन्यास में एक जगह दैत्य और विक्टर एक हिमनद पर आमने-सामने आते हैं। दैत्य अकेलेपन और बहिष्कृत होने की अपनी भावनाओं का वर्णन करता है। विक्टर फिर भी नहीं देख पाता है कि उसने ही इस दैत्य का बहिष्कार किया था और यह उसका दायित्व बनता था कि वह उस दैत्य को प्यार करे और उसको अपना कुछ समय दे, जैसा कि बचपन में उसके माता-पिता ने उसके लिए किया था। विक्टर को इतना अलगाव क्यों है? वह खुद को एक पिता की तरह क्यों नहीं देखता? द नाइटमेअर ऑफ रोमांटिक आईडियलिसम नामक निबंध में लेखक कहता है, "जब फ्रैंकनस्टाइन बाप बनता है […], वह बच्चों के प्रति अपने कर्तव्य को आसानी से भूल जाता है […], एक सृजनकर्ता होते हुए भी उसमें एक गुण की कमी है और वह गुण वह है उसके लिए वह अपने माता-पिता की प्रशंसा करता है: उन्हें इस बात का बोध था कि जिसे उन्होंने जन्म दिया है उसके प्रति उनका दायित्व बनता है।.." (शेली 391) यह लेखक यह भी कहता है कि "(फ्रैंकनस्टाइन द्वारा) जिंदगी में […] एक व्यस्क की भूमिका को स्वीकार करने से इनकार करके […]वह सृजन की शक्ति को कायम रखता है। लेकिन उसी के साथ-साथ वह बिल्कुल गैर-ज़िम्मेदार भी है […] और उसमें अपने कर्मों के परिणामों को झेलने की हिम्मत नहीं है।"(शेली 391) यह वाक्य अपनी रचना के प्रति विक्टर की मानसिक्ता का वर्णन करते हैं। दुर्भाग्यवश, फ्रैंकनस्टाइन का कोमल बचपन उसे असली दुनिया के लिए तैयार नहीं कर पाया। उसे बढ़ा होकर अपने कर्मों की ज़िम्मदारी उठाने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी. फ्रैंकनस्टाइन सृजनकर्ता और सृजन के बीच के रिश्तों को ढूंढने की कोशिश करता है और साथ ही परिजनों और समाज के प्यार और स्वीकृति की वैश्विक ज़रूरत को भी बयां करता है। विक्टर द्वारा अपनी रचना का बहिष्कार करना दैत्य को बहिष्कृत अनुभव कराता है और उस दैत्य के अंदर गुस्से और खेद की भावना को जन्म देता है और हिंसक प्रतिक्रिया में वह उन लोगों को मार डालता है जो विक्टर के बहुत करीबी थे, यह सिलसिलता अंत तक चलता है जब विक्टर खुद मर जाता है और दैत्य खुद को नष्ट करने के लिए चला जाता है।
फ्रैंकनस्टाइन की एक प्रचलित विषय-वस्तु अकेलापन और मनुष्य पर होने वाले अकेलेपन के प्रभाव हैं। यह विषय-वस्तु, उपन्यास के तीन मुख्य पात्रों: वॉल्टन, फ्रैंकनस्टाइन और दैत्य, के विचारों और अनुभवों के ज़रिए दर्शाई गई है। कहानी की शुरूआत में वॉल्टन के पत्र उसकी अकेलेपन की भावनाओं से भरे हैं क्योंकि वह जिस साहसिक अभियान पर निकला था उसमें कुछ रोचक नहीं रह गया था। विक्टर पूरी किताब में डर और बेचैनी का अनुभव करता है। कहानी की शुरुआत में विक्टर का कार्य उसे उसके परिवार से अलग कर देता है। वह कई वर्ष अकेलेपन में बिताता है। कहानी में आगे चलकर जब उसके परिजन और दोस्त मरने लगते हैं तो उसके अनुभव और भी कड़वे जाते हैं। उसने कहा है "यह मनोदशा मेरे उस स्वास्थ्य को खा गई है, जो पहले झटके से बचने के बाद पूरी तरह ठीक हो गया था। मैंने इंसान के चेहरे से किनारा कर लिया था; खुशी से भरी हर एक आवाज़ मुझे काटती थी; एकांतवास ही मेरा इकलौता सहारा था- घनघोर अंधेरा— मौत की तरह सन्नाटा". फ्रैंकनस्टाइन ने इसी तरह की भावनाओं को फिर व्यक्त किया जब उसने कहा "दुनिया के एक सबसे घिनौने काम में लिप्त, मैं अकेलेपन में डूब गया था, जहां कोई भी एक पल के लिए मेरा ध्यान भटका नहीं सकता था, मेरी इच्छाएं मर चुकीं थीं, मैं बैचेन और घबराने लगा था।" दैत्य बताता है कि किस तरह उसके अकेलापन ने उसे बदल दिया जब वह कहता है "मैं यह विश्वास नहीं कर सकता कि मैं वही हूं जिसके विचार कभी श्रेष्ठ और उत्तम सुंदरता और अच्छाई से भरे पड़े थे। लेकिन ऐसा भी है, कि एक पतित फरिश्ता एक विद्वेशपूर्ण शैतान बन जाता है। फिर भी उसके सूनेपन में भगवान और इंसान के उस दुशमन के दोस्त थे; लेकिन मैं फिर भी अकेला हूं". शेली स्पष्ट रूप से इस विष्य-वस्तु का अन्वेशण कर रही थी क्योंकि अकेलापन उसके मुख्य चरित्रों की महत्वपूर्ण प्रेरणा है।
नाइटमेअर: बर्थ ऑफ हॉरर में क्रिस्टोफर फ्रेलिंग इस विष्य-वस्तु की चर्चा उपन्यास में अभिव्यक्त जीवच्छेदन के विपरीत करते हैं, क्योंकि शेली शाकाहारी थीं। तीसरे अध्याय में विक्टर लिखते हैं कि उन्होंने "अजीव मिट्टी में जान फूंकने के लिए जीवित प्राणी को यातना दी." और दैत्य कहता है: "मेरा भोजन मनुष्य नहीं है; मैं अपने पेट के लिए मेमने और बच्चे को नहीं मारता."
एक अल्पसंख्क विचार को रखते हुए, आर्थर बेलेफेंट ने अपनी किताब फ्रैंकनस्टाइन, द मैन एंड द मॉन्स्टर (1999,ISBN 0-9629555-8-2) में दावा करते हैं कि मेरी शेली की मंशा थी कि पाठक यह समझे कि दैत्य कभी विद्यमान ही नहीं था और यह कि विक्टर फ्रैंकनस्टाइन ने ही तीनों हत्याएं की थीं। उनकी इस विवेचना में, यह कहानी विक्टर के नैतिक पतन का अध्य्यन है और इस कहानी में वैज्ञानिक परिकल्पना के पहलू विक्टर की कल्पना हैं।
एक और अल्पमत साहित्यिक आलोचक जॉन लौरिस्टन की 2007 की किताब "द मैन हू रोट फ्रैंकनस्टाइन "[25] में किया गया दावा है, जिसमें वह कहते हैं कि मेरी के पति, पर्सी बायशी शेली, उपन्यास के लेखक थे। मेरी शेली के प्रमुख विद्वान इस अनुमान को ज्यादा त्वज्जो नहीं देते हैं[उद्धरण चाहिए] , हालांकि आलोचक कैमिली पागलिया ने इसकी उत्साहपूर्वक प्रशंसा की है और जर्मेन ग्रीर[26] ने इसकी तीखी आलोचना की है।[27]
डेलावेयर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर चार्लस ई रॉबिन्सन ने 2008 में प्रकाशित फ्रैंकनस्टाइन के अपने संस्करण में इस विवादित लेखन को कुछ हद तक समर्थन दिया है, रॉबिन्सन ने फ्रैंग्कंस्टीन की हस्तलिपियों को दोबारा पढ़ा और उनमें पर्सी शेली द्वारा की गई मदद को मान्यता दी.[उद्धरण चाहिए]
शुरूआत में आलोचको ने इस किताब को ज्यादा पसंद नहीं किया, साथ ही इस बात को लेकर कई अटकलें भी लगती रहीं कि इसका असली लेखक कौन है। सर वॉल्टर स्कॉट ने लिखा कि "सबसे बढ़कर, यह कार्य हमें प्रभावशाली लगा क्योंकि यह लेखक की वास्तविक निपुणता और व्यक्त करने की खुशनुमा शक्ति का अंदाज़ा देता है", हालांकि ज्यादातर समालोचकों ने इसे "बेतुकेपन का एक भयानक और घिनौने उतक माना". (क्वाटर्ली रिव्यू)
इस तरह की समालोचनाओं के बावजूद, फ्रैंकनस्टाइन ने बहुत जल्द ही प्रसिद्धि हासिल कर ली. कई नाटकों और रंगमंचों द्वारा अपनाए जाने के बाद यह और भी मशहूर हो गया — मेरी शेली ने 1823 में रिचर्ड ब्रिंसले पीक के नाटक प्रीसम्पशन: ऑर द फेट ऑफ फ्रैंकनस्टाइन, को भी देखा. फ्रैंकनस्टाइन का फ्रांसीसी अनुवाद 1821 में ही प्रकाशित कर दिया गया (जूल्स सालादिन द्वारा अनूदित, फ्रैंकनस्टाइन: ऊ ला प्रोमिथी मॉर्डन)
1818 में गुमनाम प्रकाशन के बाद से ही फ्रैंकनस्टाइन की बहुत प्रशंसा भी हुई है और आलोचना भी. उस समय के आलोचकों द्वारा की गई समीक्षा इन दो मतों को दर्शाती है। द बेले एसेंबली ने उपन्यास को "निर्भीक परिकल्पना" (139) करार दिया. क्वार्टर्ली रिव्यू ने कहा कि "लेखक के पास कल्पना और भाषा दोनों की शक्ति है"(185). सर वॉल्टर स्कॉट, ने ब्लैकवुड एडिबर्ग मैगज़ीन में लिखते हुए बधाई दी, "लेखक की वास्तविक निपुणता और व्यक्त करने की खुशनुमा शक्ति", हालांकि जिस तरह से दैत्य ने दुनिया और भाषा का ज्ञान हासिल किया उससे वह कम सहमत थे।[28] द एडिनबर्ग मैगज़ीन और लिट्ररी मिसलेनी ने उम्मीद व्यक्त की कि "वह इस लेखक के और उपन्यास चाहेंगे"(253).
दो अन्य समीक्षाओं में जहां यह मालूम पड़ता है कि लेखक विलियम गॉडविन की बेटी है, उपन्यास की आलोचना मेरी शेली के स्त्रीयोचित स्वभाव पर हमला है। ब्रिटिश आलोचक ने उपन्यास की कमियों को लेखक की गलती बताया है; "इसकी लेखक, हमारे मुताबिक, एक स्त्री है, यह उसका क्षोभ है और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी गलती है; लेकिन अगर वह लेखिका अपने लिंग की सौम्यता को भूल जाए, तो हमें ऐसा कोई कारण नज़र नहीं आता है कि क्यों; और इसलिए हम इस उपन्यास को आगे बिना किसी टिप्पणी के खारिज करते हैं।"(438). द लिट्ररी पैनोरमा और नेशनल रजिस्टर ने उपन्यास पर हमला बोलते हुए इसे "एक मशहूर उपन्यासकार की बेटी" द्वारा लिखित "मिस्टर गॉडविन के उपन्यासों की नकल" करार दया.
इन शुरूआती अस्वीकृतियों के बावजूद, 20वीं शताबदी के मध्य के बाद से इस उपन्यास को आलोचकों ने काफी पसंद किया है।[29] एम ए गोल्डबर्ग और हारोल्ड ब्लूम जैसे प्रमुख आलोचकों ने इस उपन्यास की "सौंदर्यबोधी और नैतिक"[30] अहमियत की प्रशंसा की है और हाल ही के कुछ वर्षों में यह उपन्यास मनोविश्लेषण और नारीवादी आलोचना के लिए एक मशहूर विषय बन चुका है। आज यह उपन्यास आमतौर पर रूमानी और गॉथिक साहित्य और वैज्ञानिक परिकल्पना का एतिहासिक कार्य माना जाता है।[31]
आज की लोकप्रिय पागल वैज्ञानिक शेली में मेरी शैली के फ्रैंकनस्टाइन को पहला उपन्यास कहा जाता है।[32] हालांकि प्रचलित संस्कृति ने निष्कपट और सरल विक्टर फ्रैंकनस्टाइन को एक अति दुष्ट चरित्र में तब्दील कर दिया है। जैसा दैत्य को पहले पेश किया गया था, उससे बिल्कुल अलग इसने दैत्य को भी एक सनसनीखेज़, अमानुषिक प्राणी में बदल दिया है। असली कहानी में विक्टर जो सबसे बुरा काम करता है वह है डर के मारे दैत्य की उपेक्षा करना. वह डर पैदा करना नहीं चाहता. दैत्य भी एक मासूम, प्यारे प्राणी की तरह अस्तित्व में आता है। जब दुनिया उस पर अत्याचार करती है तो उसके मन में द्वेष की भावना पनपती है। अंत में विक्टर विज्ञान के ज्ञान को सक्षत शैतान और खतरनाक रूप से आकर्षक बताता है।[33]
हालांकि किताब प्रकाशित होने के तुरंत बाद, रंगमंच निर्देशकों को इस कहानी को दृश्यों में पेश करने में कठिनाई महसूस होने लगी. 1823 में शुरू हुए प्रदर्शनों के दौरान नाटककार यह बात मानने लगे कि इस उपन्यास को रंगमंच पर पेश करने के लिए वैज्ञानिक और दैत्य के अंतर्भावों के खत्म करना पड़ेगा. अपनी सनसनीखेज़ हिंसक हरकतों की बदौलत दैत्य कार्यक्रमों का सितारा बन गया। वहीं विक्टर को एक बेवकूफ की तरह पेश किया जाने लगा जो सिर्फ प्रकृति के रहस्यों में उलझा रहता था। इस सब के बावजूद यह नाटक असली उपन्यास से कहीं ज्यादा मेल खाते थे जोकि फिल्मों में नहीं होता था। इसके हास्यप्रद संस्करण भी आए और 1887 में लंदन में "फ्रैंकनस्टाइन, ऑर द वैम्पायर्स विकटिम " नाम से एक खिल्ली उड़ाता हुआ संगीतमय संस्करण भी प्रदर्शित किया गया।[34]
मूक फिल्में कहानी में जान डालने का प्रयास करती रहीं. शुरूआती फिल्में जैसे कि, एडिसन कंपनी की एक-रील फ्रैंकनस्टाइन (1910) और लाइफ विदाउट सोल (1915) उपन्यास की कथावस्तु से जुड़े रहने में कामयाब रहे. हालांकि 1931 में जेम्स वेल ने एक फिल्म का निर्देशन किया जिसने कहानी को बिल्कुल उलट कर रख दिया. युनिवर्स सिनेमा में काम करते-करते, वेल की फिल्म ने कथावस्तु में ऐसे कई तत्व जोड़े जिन्हें आज के आधुनिक दर्शक बखूबी जानते हैं: "डॉ॰" की तस्वीर. फ्रैंकनस्टाइन, जो कि शुरूआत में एक निष्कपट, युवा छात्र था; ईगोर की तरह दिखने वाला चरित्र (फिल्म में नाम: फ्रिट्ज़), जो शरीर के अंगों को इकट्ठा करते वक्त गलती से अपने मालिक के लिए एक अपराधी का दिमाग लाता है; और एक सृजन का एक सनसनीखेज़ दृश्य जो रसायनिक प्रक्रिया की बजाय विद्युतीय शक्ति पर केंद्रित होता है। (शेली के असली उपन्यास में कथावाचक के तौर पर फ्रैंकनस्टाइन जानबूझ के वह प्रक्रिया नहीं बताता जिससे उसने दैत्य का सृजन किया था, क्योंकि उसे डर था कि कोई दूसरा इस प्रयोग को दोबारा करने की कोशिश करेगा). इस फिल्म में वैज्ञानिक एक अहंकारी, होनहार, व्यस्क है, ना कि एक युवा. फिल्म में दूसरा वैज्ञानिक स्वेच्छा से दैत्य को मारने का काम करता है, लेकिन फिल्म कभी भी फ्रैंकनस्टाइन को उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए दबाव नहीं डालती है। वेल की सीक्वेल ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1935) और इसके बाद के सीक्वेल सन ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1939) और घोस्ट ऑफ फ्रैंग्कंस्टीन (1942) सभी सनसनी, डर और अतिशयोक्ति से भरी पड़ी थीं और साथ ही साथ डॉ॰ फ्रैंकनस्टाइन और दूसरे चरित्र और भी बुरे होते चले गए।[35]
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