बन्दा सिंह बहादुर
मातृभूमि के वीर सपूत / From Wikipedia, the free encyclopedia
बन्दा सिंह बहादुर सिख सेनानायक थे।[2] उन्होंने 15 साल की उम्र में तपस्वी बनने के लिए घर छोड़ दिया, और उन्हें माधो दास बैरागी नाम दिया गया। उन्होंने गोदावरी नदी के तट पर नांदेड़ में एक मठ की स्थापना की। 1707 में, गुरु गोबिंद सिंह ने दक्षिणी भारत में बहादुर शाह प्रथम बार मिलने का निमंत्रण स्वीकार किया। उन्होंने 1708 में बंदा सिंह बहादुर से मुलाकात की।[3][4][5] भी कहते हैं। उनका मूल नाम लक्ष्मण देव मन्हास था। बाद में इसका नाम माधवदास हुआ । बैराग धारण करने के कारण माधवदास बैरागी भी कहा गया । उनकी मुलाकात गुरु गोविंद सिंह से आंध्र प्रदेश में नांदेड़ नामक स्थान पर हुई । गुरु से प्रभावित होकर इन्होंने स्वयं को गुरु का बंदा कहा, तभी से इनका नाम बंदा बहादुर पड़ा । बंदा सिंह ने गुरु गोबिंद सिंह के प्रभाव में मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा और साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया। उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्ता 'खालसा राज' की राजधानी लोहगढ़ में सिख राज्य की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरु गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरें जारी की, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और जाटों को ज़मीन का मालिक बनाया। उनका जन्म कार्तिक महीने में हुआ था और इसी महीने में गुरु नानक देव जी और गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था
लक्ष्मण देव | |
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जन्म |
27 अक्टूबर 1670 राजौरी, जम्मू |
मौत |
जून 9, 1716(1716-06-09) (उम्र 45) दिल्ली, मुग़ल साम्राज्य |
समाधि | लाल किला, दिल्ली |
राष्ट्रीयता | जाट। भारतीय |
उपनाम | महंत माधोदास बैरागी (पूर्व नाम) |
कार्यकाल | 1708 -1716 |
प्रसिद्धि का कारण |
मुग़लों से युद्ध ज़मींदारी प्रथा समाप्त करने सरहिन्द के नवाब वज़ीर ख़ान को मारा पंजाब और भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य इलाक़ों में खालसा राज की स्थापना की।[1] |
पूर्वाधिकारी | गुरू गोबिन्द सिंह |
धर्म | सिख धर्म |
जीवनसाथी | सुशील कौर |
बच्चे | अजय सिंह |
संबंधी | महंत रूप दास बैरागी (शिष्य) |
लाल किला, दिल्ली |