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भारतीय राजनेता विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
ब्रज कुमार नेहरू, आयसीएस (4 सितम्बर 1909 – 31 अक्टूबर 2001) एक भारतीय राजनयिक और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत (1961-1968) थे।[1] वो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई बृजलाल और रामेश्वरी नेहरू के पुत्र थे।
ब्रज कुमार नेहरू | |
संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत | |
कार्यकाल 1961 – 1968 | |
पूर्व अधिकारी | एम सी छागला |
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उत्तराधिकारी | अली यावर जंग |
ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त | |
कार्यकाल 1973 – 1977 | |
जन्म | 04 सितम्बर 1909 इलाहाबाद, ब्रितानी भारत |
मृत्यु | 31 अक्टूबर 2001 92) कसौली, भारत | (उम्र
जीवन संगी | शोभा नेहरू (मगदोलना फ़्रीडमैन उर्फ़ फ़ोरी) |
विद्या अर्जन | ऑक्सफोर्ड |
धर्म | हिन्दू धर्म |
नेहरू का जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके पिता का नाम बृजलाल नेहरू एवं माँ का नाम रामेश्वरी देवी था।[2] उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (भारत), द लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स और ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।[3] उन्हें उनके विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठित कार्य के लिए "जामिया पंजाब" (वर्तमान में पाकिस्तानी पंजाब में स्थित पंजाब विश्वविद्यालय) ने साहित्य में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्रदान की।[4] उनके पितामह (दादा) पण्डित नन्दलाल नेहरू, पंडित मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई थे।[5] वो भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा नेहरू-गांधी के चचेरे भाई थे।[6] नेहरू को यूके में अपनी सहपाठी छात्रा मगदोलना फ़्रीडमैन से प्यार हो गया जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। यूरोप के यहूदि समुदाय के दुर्व्यवहार ने उसके पिता को उसका नाम मगदोलना फोरबठ से बदले का संकेत किया। उसका उपनाम फ़ोरी था। विवाह के बाद उसने अपना नाम कश्मीरी पंडिताइन के तौर पर शोभा (फ़ोरी) नेहरू रख लिया।[7][8]
वे 1934 में भारतीय सिविल सेवा में चुने गये और भारत के सात राज्यों के राज्यपाल बने। सन् १९३४ से १९३७ के मध्य उन्हें पंजाब प्रान्त के विभिन गर्वनर पदों पर नियुक्ति दी गयी।[2] उन्हें १९४५ के नव वर्ष सम्मान सूची में ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वोच्च सम्मान के लिए चुना गया।[9] नेहरू 1957 में वितीय मामलों के सचिव बने।[10] उन्हें 1958 में भारत के वित विभाग का जनरल आयुक्त (विदेशी वित सम्बंध) नियुक्त किया गया।[2] वे जम्मू और कश्मीर (1981–84), असम (1968–73),[11] गुजरात (1984–86), नागालैण्ड (1968–73), मेघालय (1970–73), मणिपुर (1972–73) और त्रिपुरा (1972–73) के राज्यपाल रहे। 1991 में लोकसभाध्यक्ष दलबदल क़ानून के तहत तत्कालीन विदेश मंत्री विद्याचरण शुक्ल को लोकसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। तब सत्ताधारी समाजवादी जनता पार्टी के पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसे विदेश मंत्री बनाया जा सके। उस समय नेहरू को भारत का विदेश मंत्री बनने का आग्रह किया गया और साथ में यह भी कहा गया कि वो छह महीनों तक बिना कोई चुनाव लड़े इस पद पर बने रह सकते हैं। बाद में उनके लिए एक संसदीय सीट ढूंढ ली जाएगी। उनकी आत्मकथा के अनुसार उन्होंने अधिक उम्र होने के कारण इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।[7]
नेहरू ने विश्व बैंक (1949) के कार्यकारी निदेशक के रूप में और वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में वितमंत्री (1954) के तौर पर कार्य किया।[2] उन्होंने 1958 में एड इण्डिया क्ल्ब (Aid India Club) के निर्माण में सहायता की, जो उन दाता देशों का एक संघ था जो भारत के विकास के लिए 2000000 $ दान करने के लिए प्रतिबद्ध थे।[6] उन्होंने विभिन्न देशों में भारत के राजदूत के रूप में राजनयिक की भूमिका भी निभाई और १९५१ में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के महासचिव के पद का प्रस्ताव मिला जिसे उन्होंने त्याग दिया। नेहरू १९७३ से १९७७ तक लंदन में भारतीय उच्चायुक्त भी रहे।[6] बृज १४ वर्षों के लिए संयुक्त राष्ट्र निवेश समिति के अध्यक्ष थे।[3] उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद क्षतिपूर्ति सम्मेलन में ब्रिटेन के साथ 'स्ट्रलिंग बेलेंश' वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया।[12] संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव हैमरशोल्ड की हवाई दुर्घटना में मौत के बाद कई यूरोपीय देश चाहते थे कि बीके नेहरू को इस पद के लिए चुना जाए, लेकिन कृष्ण मेनन के मनाने पर उन्होंने इस पद को त्याग दिया। हालांकि बाद में उन्हें अपनी इस भूल का ऐहसास हुआ और बर्मा के यू थान को यह पद मिला।[7]
आपातकाल के दौरान वो निजी तौर पर इन्दिरा गाँधी से उसे हटाने का अनुरोध करते रहे लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्होंने आपातकाल का समर्थन किया। इसी प्रकार वर्ष 1983 में जब वो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे तो राज्य के चुने हुए नेता फ़ारूक अब्दुल्लाह को बर्ख़ास्त करने के मुद्दे पर उनका इन्दिरा गांधी से मतभेद हो गया जिसके बाद उनका तबादला गुजरात कर दिया गया जहाँ पूरी तौर पर शराबबंदी लागू थी। जाने माने पत्रकार इंदर मल्होत्रा ने उनसे पूछा कि आपने तबादला स्वीकार करने के बजाए अपने पद से त्यागपत्र क्यों नहीं दे दिया? तो उन्होंने उत्तर दिया था, "मैं एक हद से ज़्यादा इंदिरा गांधी को नाराज़ नहीं कर सकता था।"[7]
नेहरू ने नाइस गाइज़ फ़िनिश सेकेंड' शीर्षके से आत्मकथा लिखी।[13][7]
उन्हें १९९९ में पद्म विभूषण से सम्मनित किया गया।[14]
नेहरू का ९२ वर्ष की आयु में ३१ अक्टूबर २००१ को भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के कसौली नामक नगर में निधन हुआ। उनके शव को दाह संस्कार के लिए दिल्ली लाया गया और पवित्र सास्त्रानुसार मंत्रोचारण के बाद उनका दाह संस्कार कर दिया गया।[15]
राजनीतिक कार्यालय | ||
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पूर्वाधिकारी एम सी छागला |
संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत 1961–1968 |
उत्तराधिकारी अली यावर जंग |
सरकारी कार्यालय | ||
पूर्वाधिकारी विष्णु सहाय |
असम के राज्यपाल 1968–1973 |
उत्तराधिकारी लल्लन प्रसाद सिंह |
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