Loading AI tools
उर्दू तथा फारसी भाषा के महान शायर विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" (1723 - 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था-
हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने
दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान कियादेख तो दिल के जाँ से उठता है।
ये धुँआ सा कहाँ से उठता है।।
इनका जन्म आगरा (अकबरपुर) मे हुआ था। उनका बचपन अपने पिता की देखरेख मे बीता। उनके प्यार और करुणा के जीवन में महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पड़ा जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे, इनके उपर ३०० रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें। १७ साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए। बादशाह के दरबार में १ रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ। इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए। १७३९ में फ़ारस के नादिरशाह के भारत पर आक्रमण के दौरान समसामुद्दौला मारे गए और इनका वजीफ़ा बंद हो गया। इन्हें आगरा भी छोड़ना पड़ा और वापस दिल्ली आए। अब दिल्ली उजाड़ थी और कहा जाता है कि नादिर शाह ने अपने मरने की झूठी अफ़वाह फैलाने के बदले में दिल्ली में एक ही दिन में २०-२२ हजार लोगों को मार दिया था और भयानक लूट मचाई थी।
उस समय शाही दरबार में फ़ारसी शायरी को अधिक महत्व दिया जाता था। मीर तक़ी मीर को उर्दू में शेर कहने का प्रोत्साहन अमरोहा के सैयद सआदत अली ने दिया। २५-२६ साल की उम्र तक ये एक दीवाने शायर के रूप में ख्यात हो गए थे। १७४८ में इन्हें मालवा के सूबेदार के बेटे का मुसाहिब बना दिया गया। लेकिन १७६१ में एक बार फ़िर भारत पर आक्रमण हुआ। इस बार बारी थी अफ़गान सरगना अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) की। वह नादिर शाह का ही सेनापति था। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे हार गए। दिल्ली को फिर बरबादी के दिन देखने पड़े। लेकिन इस बार बरबाद दिल्ली को भी वे अपने सीने से कई दिनों तक लगाए रहे। अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली पर हमले के बाद वह अशफ - उद - दुलाह के दरबार मे लखनऊ चले गये। अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने लखनऊ मे ही गुजारे।
“मीर के शि`र का अह्वाल कहूं क्या ग़ालिब
जिस का दीवान कम अज़-गुल्शन-ए कश्मीर नही”
मीर की ग़ज़लों के कुल ६ दीवान हैं। इनमें से कई शेर ऐसे हैं जो मीर के हैं या नहीं इस पर विवाद है। इसके अलावा कई शेर या कसीदे ऐसे हैं जो किसी और के संकलन में हैं पर ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि वे मीर के हैं। शेरों (अरबी में अशआर) की संख्या कुल १५००० है। इसके अलावा कुल्लियात-ए-मीर में दर्जनों मसनवियाँ (स्तुतिगान), क़सीदे, वासोख़्त और मर्सिये संकलित हैं।
यह जीवनचरित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.