लॉकडाउन
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लॉकडाउन अथवा पूर्णबन्दी एक आपातकालीन प्रोटोकॉल है। आपातकालीन स्थिति में लोगों की आवाजाही पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा यह प्रतिबंध लगाया जाता है। जिस शहर को लॉकडाउन किया जाता है उस शहर में कोई भी व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकल सकता है। वह स्वयं को घर में कैद कर लेता है। मात्र अति आवश्यक कार्य के लिए लोग घर सेे बाहर निकल सकते हैं।[1]
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डब्ल्यूएचओ के एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर माइक रायन ने कहा कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए सिर्फ़ लॉकडाउन किया जाना ही कारगर तरीका नहीं है
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने माइक रायन के हवाले से कहा, "लॉकडाउन के साथ-साथ सभी देशों को कोरोना वायरस की सही तरह से टेस्टिंग भी करनी होगी. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है और जब लॉकडाउन ख़त्म किया जाएगा तो कोरोना का संक्रमण बहुत तेज़ी से फैलने लगेगा.|
सवाल उठता है कि भारत में लॉकडाउन कितना कारगर हो सकता है?
लॉकडाउन करने का एक ही मक़सद होता है कि लोग एक-दूसरे के संपर्क में ना आएं. लेकिन भारत में इसे पूरी तरह से लागू कर पाना संभव नहीं है. हम देख चुके हैं कि जनता कर्फ्यू के दौरान भी लोग शाम के वक़्त रैलियां निकालते हुए सड़कों पर आ गए थे. बस उम्मीद की जा सकती है कि इस बार ये 21 दिन का किया गया है तो लोगों को बीमारी कितनी ख़तरनाक है इसका अंदाज़ा लग गया होगा."
सेल्फ क्वेरेंटाइन या आइसोलेशन जैसी चीज़ें भारतीय लोगों के लिए बहुत नई हैं. वो कहते हैं कि सरकार बहुत देरी से कदम उठा रही है
किन-किन नियम को तोड़ने पर है सजा?
गृह मंत्रालय के ऑर्डर के मुताबिक, कोरोना को लेकर लगातार अफवाहें फैल रही हैं. लॉकडाउन के दौरान उसके बाद भी अगर कोई कोरोना वायरस से संबंधित अफवाह फैलाता है तो उसे भी एक साल तक की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. कोरोना वायरस के नाम पर सहायता फंड बनाकर उसमें घोटाला करने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होगी. ऐसे करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही कॉर्पोरेट जुर्माना भी लगाया जा सकता है.