मन्त्र

मंत्र जप एक विज्ञान भी है- ताप की तरह शब्द में भी एक प्रचंड शक्ति है। / From Wikipedia, the free encyclopedia

हिन्दू श्रुति ग्रंथों की कविता को पारम्परिक रूप से मंत्र कहा जाता है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद संहिता में लगभग १०५५२ मंत्र हैं। स्वयं एक मंत्र है और ऐसा माना जाता है कि यह पृथ्वी पर उत्पन्न प्रथम ध्वनि है।

इसका शाब्दिक अर्थ 'विचार' या 'चिन्तन' होता है [1] । 'मंत्रणा', और 'मंत्री' इसी मूल से बने शब्द हैं । मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं।[2]

काफी चिन्तन-मनन के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर मंत्र कह देते हैं। "षडकर्णो भिद्यते मंत्र" (छः कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है।

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