वाइमर गणराज्य
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वाइमर गणराज्य [ˈvaɪmaʁɐ ʁepuˈbliːk] ( सुनें)) इतिहासकारों द्वारा जर्मनी की उस प्रतिनिधिक लोकतांत्रिक संसदीय सरकार को दिया हुआ नाम है जिसने जर्मनी में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद १९१९ से १९३३ तक शाही सरकार के बदले में कार्यभार संभाला था। इसका नाम उस जगह से पड़ा जहाँ संवैधानिक सदन का गठन किया गया और वहीं यह पहली बार एकत्रित हुआ। वैसे जर्मनी का उस समय औपचारिक नाम जर्मन राइख ही था।
जर्मन राइख Deutsches Reich | ||||||
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राष्ट्रगान Das Lied der Deutschen | ||||||
वाइमर काल में जर्मनी का क्षेत्र | ||||||
राजधानी | बर्लिन | |||||
भाषाएँ | जर्मन भाषा | |||||
शासन | संघीय गणतंत्र, संसदीय प्रतिनिधिक लोकतंत्र (१९१९-१९३०) आपातकालीन आदेश जारी करने से एकाधिकार राज्य (१९३०-१९३३) | |||||
राष्ट्रपति | ||||||
- | १९१८-१९२५ | फ़्रीडरिक ऍबर्ट | ||||
- | १९२५-१९३४ | पॉल वॉन हिन्डनबर्ग | ||||
चांसलर | ||||||
- | १९१९ | फ़िलिप शाइडमैन | ||||
- | १९१९-१९२० | गुस्ताव बाउअर | ||||
- | १९२० | हर्मन मुऍलर (पहली बार) | ||||
- | १९२०-१९२१ | कॉन्सटॅन्टिन फ़ॅरनबाख | ||||
- | १९२१-१९२२ | जोसफ़ वर्थ | ||||
- | १९२२-१९२३ | विल्हॅल्म कूनो | ||||
विधायिका | राइखस्टैग | |||||
- | विधानसभा | राइखस्रैट | ||||
ऐतिहासिक युग | दो विश्वयुद्धों के अंतराल में | |||||
- | स्थापित | ११ अगस्त १९१९ | ||||
- | हिटलर चांसलर नियुक्त | ३० जनवरी १९३३ | ||||
- | राइखस्टैग (जर्मन संसद) की आग | २७ फ़रवरी १९३३ | ||||
- | सक्षम बनाने का क़ानून | २३ मार्च १९३३ | ||||
क्षेत्रफल | ||||||
- | १९२५[1] | 4,68,787 किमी ² (1,81,000 वर्ग मील) | ||||
जनसंख्या | ||||||
- | १९२५[2] est. | 6,24,11,000 | ||||
| 133.1 /किमी ² (344.8 /वर्ग मील) | |||||
मुद्रा | मार्क (ℳ), सामान्य भाषा में पॅपिअमार्क (१९१९-१९२३) जर्मन रॅनटॅनमार्क (१९२३-१९२४) राइखमार्क (ℛℳ) (१९२४-१९३३) | |||||
आज इन देशों का हिस्सा है: | Germany Poland Russia | |||||
ऊपर दर्शाया कुलचिन्ह १९२८ तक लागू था, फिर उसे बदल दिया गया जो कि ध्वज और कुलचिन्ह अनुभाग में दर्शाया गया है।[3] | ||||||
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नवंबर १९१८ में प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् यह गणराज्य जर्मन क्रांति की देन था। सन् १९१९ ई. में वाइमर में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया जहाँ जर्मन राइख (शासन) के लिए नया संविधान लिखा गया और उसी वर्ष के ११ अगस्त को अपना लिया गया। उदार लोकतंत्र का वह काल १९३० के दशक आने तक समाप्त हो चुका था, जिसके फलस्वरूप सन् १९३३ ई. अडोल्फ़ हिटलर तथा उसकी नाट्सी पार्टी का उत्थान हुआ। नाट्सी पार्टी द्वारा फ़रवरी से मार्च १९३३ को जो क़ानूनी हथकण्डे अपनाये गए उन्हें साधारणतः ग्लाइक्शालतुङ (समन्वय) कहा जाता है जिसका अर्थ था कि सरकार संविधान के विपरीत भी क़ानून बना सकती है। यह गणराज्य कागज पर सन् १९४५ ई. तक चलता रहा क्योंकि इसके द्वारा बनाये गए संविधान को औपचारिक रूप से कभी निरस्त किया ही नहीं गया हालांकि नाट्सियों द्वारा अपने शासनकाल के शुरुआत में जो कदम उठाये गये थे उनके अंतर्गत यह संविधान अप्रासंगिक हो चुका था। यही कारण है कि सन् १९३३ को वाइमर का अंत तथा हिटलर की तीसरी राइख का आरम्भ माना जाता है।