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विद्युत से चलने वाले वाहन विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
विद्युतीय वाहन या विद्युत वाहन एक प्रकार के विद्युत से चलने वाले वाहन होते हैं। ये वाहन अपनी बैटरी द्वारा [1] या किसी बाहरी स्रोत द्वारा विद्युत दिये जाने पर चलते हैं। इसमें विद्युत से चलने वाली रेल भी शामिल हैं। यह रेल ऊपर दिये गए तार द्वारा उच्च विद्युत प्रवाह किए जाने पर चलतीं हैं। लेकिन कभी कभी रेलगाड़ी की छत पर गलती से लोग चले जाते हैं और विद्युत प्रवाह के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन यह रेल कई प्रकार से उपयोगी है। इसके द्वारा पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है और इसमें बहुत से लोग एक साथ अपनी यात्रा कर सकते हैं, जिससे लागत में भी कमी आती है।
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विश्व पर्यन्त विद्युत वाहन (ऊपर बायें से):
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1832 और 1839 के मध्य रोबर्ट एंडर्सन ने स्कॉटलैण्ड में पहली विद्युत से चलने वाली एक ही बार आवेशित होने वाली बैटरी का निर्माण किया था। इसके बाद 20वीं सदी तक कई सामान्य जगहों पर विद्युत से चलने वाले वाहन और रेल आदि के यातायात उपलब्ध होने लगे। समय के साथ इसमें लागत कम होने लगा और यह बाजार में अधिक बिकने लगा। धीरे धीरे इसके ट्रक आदि वाहन भी बनने लगे।
बहुत से वाहन लीथियम ऑयन बैटरी का उपयोग करते हैं। क्योंकि इसमें अधिक ऊर्जा क्षमता होती है और यह बहुत अधिक समय तक अपनी ऊर्जा बचा कर रख सकता है। यह सुरक्षा, लागत, और ऊष्मीयता आदि के मामलों में खरा उतरा इस कारण इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग सुरक्षित तापमान और विद्युत के साथ करता चाहिए। इसमें इसकी समय सीमा कम करने पर इसकी लागत भी कम हो जाती है।[2][3]
विद्युत वाहनों में मुखयतः पाँच प्रकार के मोटर लगते हैं। सबके अपने-अपने लाभ और हानियाँ हैं।
सौर मंडल में चंद्रमा और अन्य ग्रहों के अन्वेषण हेतु मानव और मानव रहित वाहनों का प्रयोग किया जाता रहा है। १९७१ एवं १९७२ में अपोलो कार्यक्रम के अन्तिम तीन अभियानों में अन्तरिक्षयात्रियों ने सिल्वर-ऑक्साइड संचालित लूनर रोविंग वाहनों द्वारा चंद्रमा की सतह पर 35.7 किलोमीटर (22.2 मील) तक की दूरी तय की हैं। मानव रहित सौर ऊर्जा संचालित रोवर्स का प्रयोग चंद्रमा एवं मंगल के अन्वेषणों में भी प्रयोग किये गए हैं।
यदि अति गरम या ज्यादा चार्ज किया जाता है, तो बैटरी खराब हो सकती है। कई मामलों में यह रिसाव, विस्फोट या आग पैदा कर सकता है। इन जोखिमों को कम करने के लिए, कई लिथियम आयन कोशिकाओं (और बैटरी पैक) में सर्किटरी होती है जो बैटरी को डिस्कनेक्ट करती है, जब उसका वोल्टेज सेल 3-4.2 वाल्ट प्रति सेल निर्धारित होता है। खराब डिजाइन या गलत बैटरी प्रबंधन सर्किट भी समस्याएं पैदा कर सकते हैं; यह निश्चित होना मुश्किल है कि किसी भी विशेष बैटरी प्रबंधन सर्किट को ठीक से लागू किया गया है। लिथियम आयन कोशिकाओं की स्वीकृत वोल्टेज श्रेणी के बाहर ,क्षति के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं ,जो आमतौर पर अधिकांश एलएफपी कोशिकाओं के लिए (2.5 से 3.65) इस वोल्टेज श्रेणी से, यहां तक कि छोटे वोल्ट (मिलिवल्ट्स) के परिणामस्वरूप कोशिकाओं के समय से पहले निष्क्रीय हो जाती है और इसके अलावा, कोशिकाओं में प्रतिक्रियाशील घटकों के कारण सुरक्षा जोखिम होता है।
हर बैटरी जिसे पुनः आवेशित किया जा सकता है, उसे उपयोग होने के बाद पुनः आवेशित करने की आवश्यकता होती है। लेकिन हर बार आसपास उसे आवेशित करने का कोई माध्यम नहीं होता है। इस कारण यह एक बहुत बड़ी परेशानी है। इसके अलावा इस तरह के आवेशन करने पर भी यह बहुत दूर के सफर हेतु नहीं बना है अर्थात यदि किसी दूर वाले स्थल पर जाना हो तो इसके स्थान पर कोई और माध्यम तलाशना पड़ेगा।
उच्च क्षमता वाले विद्युत वाहन में विद्युत चुंबकीय विकिरण का प्रभाव पड़ता है। लेकिन यह केवल तभी होता है, जब यदि उसमें किसी प्रकार का विस्फोट हो जाये या उसमें अधिक भरी वस्तु को डाल दिया जाये।[4]
कई बैटरी पुनः आवेशित नहीं होते हैं या कुछ में बहुत समय लग जाता है। इस कारण बैटरी की अदला-बदली की जाती है। एक प्रकार के स्थल पर इस तरह के वाहन की बैटरी उपलब्ध होती है। लेकिन यह सभी जगह पर उपलब्ध नहीं होने के कारण परेशानी होती है।
इसी प्रकार चंद्र रावेिंग वाहन (एलआरवी) या चंद्रमा रोवर, 1971 और 1972 के दौरान अमेरिकी अपोलो कार्यक्रम (15, 16 और 17) के अंतिम तीन अभियानों में इस्तेमाल किया जाने वाला एक बैटरी चालित चार-पहिया रोवर है। यह मुख्य रूप से मून बग्गी के नाम से लोकप्रिय है।
सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम का उपयोग वाहन की स्थिरता और गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जैसे कि इसका कर्षण, स्थिरता और सुरक्षा।
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