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विधा का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।.
विधाएँ अस्पष्ट श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकी पहचान निर्मित हो जाती है।
संस्कृत साहित्य के आचार्यों ने समूचे साहित्य को दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य - इन दो भागों में विभाजित किया है।
(1) दृश्य काव्य में नाटक (रूपक और उपरूपक) हैं।
(2) श्रव्यकाव्य में पद्य (कविता या काव्य) और गद्य ये प्रमुख दो साहित्य के भेद हैं।
दृश्यकाव्य का चक्षुओं (आँखों) द्वारा तथा श्रव्यकाव्य का श्रवणेंदि्रय (कानों) द्वारा रसास्वादन किया जाता है। संस्कृत साहित्य के समान ही हिन्दी साहित्य में भी नाटक (अनेकांकी एकांकी, रेडियोरूपक आदि) तथा पद्य (महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक, तुकान्त, अतुकान्त आदि) और गद्य की अनेक विधायें : लघुकथा, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, यात्र वृत्तान्त, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, गद्यकाव्य आलोचना तथा समीक्षा आदि हैं। इन सभी विधाओं में सृजनात्मक तथा विचारात्मक साहित्य दीर्घकाल से निरंतर विद्वानों द्वारा लिखा जा रहा है।
प्रमुख साहित्यिक विधाएँ हैं-
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