विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु
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विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु 1 तथा 2 (HSV-1 तथा HSV-2), जिसे मानव विसर्पिका विषाणु 1 तथा 2 (HHV-1 तथा -2) भी कहा जाता है, विसर्पिका विषाणु परिवार- हर्प्सविरिडी (Herpesviridae) के सदस्य हैं।[1] HSV-1 तथा -2 दोनों सर्वव्यापी एवं संक्रामक हैं। संक्रमित व्यक्ति द्वारा विषाणु के उत्पादन और प्रसार से ये फैलते हैं।
Herpes simplex virus | |
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TEM micrograph of a herpes simplex virus. | |
विषाणु वर्गीकरण | |
Group: | Group I (डीएसडीएनए) |
कुल: | Herpesviridae |
उपकुल: | Alphaherpesvirinae |
वंश: | Simplexvirus |
Species | |
Herpes simplex virus 1 (HWJ-1) |
विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु के संक्रमण के लक्षणों में शामिल हैं त्वचा अथवा मुंह की म्यूकस झिल्ली, होंठ या जनन अंगों पर पानी भरे फफोले.[1] विसर्पिका रोग में घाव पर पपड़ी जमने के बाद घाव ठीक होते हैं। यद्यपि, न्यूरोट्रॉपिक तथा न्यूरोइन्वैसिव विषाणु होने के कारण HSV-1 तथा -2 वाहक के शरीर में जड़ जमा लेते हैं और वहां वे सुप्त रहते हैं और शरीर के रोग-प्रतिरोधी तंत्र से बचकर तंत्रिकाओं के कोशिकाकाय में छिपे रहते हैं। आरंभिक या प्राथमिक संक्रमण के बाद, कुछ संक्रमित लोगों को विषाणुजनित पुनर्सक्रियन या प्रकोपों की छिटपुट घटनाओं से गुजरना पड़ता है। संक्रमण के दौरान तंत्रिका कोशिका में विषाणु सक्रिय हो जाते हैं और तंत्रिका के ऐक्सॉन के जरिए त्वचा में पहुंचते हैं और वहां अपनी संख्या वृद्धि करते हैं और प्रसारित होते हैं जिस कारण नए फोड़े पैदा होते हैं।[2]
HSV संक्रमण का कोई इलाज़ नहीं है लेकिन उपचार द्वारा विषाणु के फैलने में कमी लाई जा सकती है।