सत्संग
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सत्संग (संस्कृत सत् = सत्य, संग= संगति) का अर्थ भारतीय दर्शन में है (1) "परम सत्य" की संगति, (2) गुरु की संगति, या (3) व्यक्तियों की ऐसी सभा की संगति जो सत्य सुनती है, सत्य की बात करती है और सत्य को आत्मसात् करती है।[1] इसमें विशिष्ट बात है कि इसमें प्राचीन ग्रंथों को सुना या पढ़ा जाता है, उस पर बात की जाती है, उसके अर्थ पर चर्चा की जाती है, उन शब्दों के स्रोत को आत्मसात् किया जाता है, ध्यान किया जाता है और उनके अर्थ को अपने दैनंदिन जीवन में उतारा जाता है। समकालीन पाश्चात्य सत्संग कराने वाले गुरु- जो अक्सर अद्वैत वेदांत परंपरा के हैं - कई बार परंपरागत पूर्वी ज्ञान को आधुनिक मनोविज्ञान की पद्धतियों के साथ मिलाते हैं। सत यानि सच,संग यानि साथ। "सत" सच्चाई, शुद्ध अर्थात भगवान या संतों को दर्शाता है , और संग उनकी संगति। सत संग इस प्रकार सच या भगवान का सानिध्य भी कहा जा सकता है।