सीलेन्टरेटा
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गुहान्त्र प्राणी या आन्तरगुही जंतु जगत की एक बड़ी निम्न पद की संघ है। इस प्रसृष्टि के सभी जीव जलप्राणी हैं। केवल आदिजन्तु और स्पंज ही ऐसे प्राणी हैं जो आन्तरगुही से भी अधिक सरल आकार के होते हैं।
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विकासक्रम में ये प्रथम बहुकोशिकीय जंतु है जिनकी विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में विभेदन तथा वास्तविक ऊतकनिर्माण दिखाई पड़ता है। इस प्रकार इनमें तंत्रिका तंत्र तथा पेशीतंत्र का विकास हो गया है। परंतु इनकी रचना में न सिर का ही विभेदन होता है, न विखंडन ही दिखाई पड़ता है। इनका शरीर खोखला होता है, जिसके भीतर एक बड़ी गुहा होती है। इसको आँतरगुहा (सीलेंटेरॉन) कहते हैं। इसमें एक ही छेद होता है। इसको 'मुख' कहते हैं, यद्यपि इसी छिद्र के द्वारा भोजन भी भीतर जाता है तथा मलादि का परित्याग भी होता है। शरीर की दीवार कोशिकाओं की दो परतों की बनी होती है- बाह्मस्तर (एक्टोडर्म) तथा अंत:स्तर (एँडोडर्म)- और दोनों के बीच बहुधा एक अकोशिकीय पदार्थ - मध्यश्लेष (मीसाग्लीया)- होता है। मुख के चारों ओर बहुधा कई लंबी स्पर्शिकाएँ होती हैं। इनका कंकाल, यदि हुआ तो, कैल्सियमयुक्त या सींग जैसे पदार्थ का होता है। जल में रहने तथा सरल संरचना के कारण इनमें न तो परिवहनसंस्थान होता है, न उत्सर्जन या श्वसनसंस्थान। जननक्रिया अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों ही विधियों से होती है। अलैंगिक जनन कोशिकाभाजन द्वारा होता है। लैंगिक जनन के लिए जननकोशिकाओं की उत्पत्ति बाह्मस्तर अथवा अंत:स्तर में स्थित जननांगों में होती है। परिवर्धन अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है, इन जीवों में कई प्रकार के डिंभ (लार्वा) पाए जाते हैं और कई जातियों में पीढ़ियों का एकांततरण होता है।
आंतरगुहियों के बीच में गुहा रहती है। अंतड़ी, फेफड़ा, इत्यादि कोई अंग इनमें नहीं होते।