सूरज मल
राजस्थान में भरतपुर के महाराजा 1755-1763 तक / From Wikipedia, the free encyclopedia
महाराजा सूरजमल या सूजान सिंह (13 फरवरी 1707 – 25 दिसम्बर 1763) राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू राजा थे। उनका शासन जिन क्षेत्रों में था वे वर्तमान समय में भारत की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, फ़िरोज़ाबाद, एटा, जिले राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, जिले; हरियाणा का गुरुग्राम, रोहतक, झज्जर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, मेवात जिलों के अन्तर्गत हैं। राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था। इनको नितिज्ञो में कृष्ण, योद्धाओं में भीम, कहा गया है, विदेशी इतिहासकारों ने इनकी तुलना नेपोलियन, लूथर जैसे योद्धाओं से की है। मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे। राजा सूरज मल के समकालीन एक इतिहासकार ने उन्हें 'जाटों का प्लेटों' कहा है। इसी तरह एक आधुनिक इतिहासकार ने उनकी स्प्ष्ट दृष्टि और बुद्धिमत्ता को देखने हुए उनकी तुलना ओडेस से की है।[1]
सूरज मल | |
---|---|
भरतपुर के महाराजा बहादुर जंग ब्रजनरेश | |
शासनावधि | 1755 - 1763 AD |
राज्याभिषेक | डीग, 22 May 1755 |
पूर्ववर्ती | बदन सिंह |
उत्तरवर्ती | महाराजा जवाहर सिंह |
जन्म | 13 फरवरी 1707 भरतपुर |
निधन | 25 दिसम्बर 1763 दिल्ली |
जीवनसंगी | महारानी किशोरी देवी |
संतान | जवाहर सिंह नाहर सिंह रतन सिंह नवल सिंह रंजीत सिंह |
घराना | सिनसिनवार जाट |
पिता | बदन सिंह |
माता | महारानी देवकी |
सूरज मल के नेतृत्व में जाटों ने आगरा नगर की रक्षा करने वाली मुगल सेना (गैरिज़न) पर अधिकार कर कर लिया। २५ दिसम्बर १७६३ ई में दिल्ली के शाहदरा में मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में सूरजमल की मृत्यु हो गयी, सूरजमल का दुश्मनों में इतना खोंफ था कि उनकी मृत्यु के बाद कोई भी उनके शव के निकट जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।उनकी मृत्यु के समय उनके अपने किलों पर तैनात सैनिकों के अलावा, उनके पास 25,000 पैदल सेना और 15,000 घुड़सवारों की सेना थी।[2]
महाराजा सूरजमल ने अपने जीवन काल में अस्सी (80) युद्ध लड़े(जिनमें सात महायुद्ध थे) परन्तु उन्हें कोई हरा नहीं पाया।
भरतपुर जहां स्थित है, वह इलाका सोघरिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था। यहां पर सन 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली गई। सन 1732 में बदनसिंह ने अपने 25 वर्षीय पुत्र सूरजमल को डीग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर गांव के सोघरियों पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सूरजमल ने सोघर को जीत लिया। वहाँ राजधानी बनाने के लिए किले का निर्माण शुरू कर दिया। भरतपुर में स्थित यह किला लोहागढ़ किला ( Iron fort ) के नाम से जाना जाता है। यह देश का एकमात्र किला है, जो विभिन्न आक्रमणों के बावजूद हमेशा अजेय व अभेद्य रहा। बदन सिंह और सूरजमल यहां सन 1753 में आकर रहने लगे।[उद्धरण चाहिए]
भरतपुर के किले का निर्माण-कार्य शुरू करने के कुछ समय बाद बदनसिंह की आंखों की ज्योति क्षीण होने लगी। अतः उसने विवश होकर राजकाज अपने योग्य और विश्वासपात्र पुत्र सूरजमल को सौंप दिया। वस्तुतः बदनसिंह के समय भी शासन की असली बागडोर सूरजमल के हाथ में रही।[उद्धरण चाहिए]
मुगलों, मराठों व राजपूतों से गठबंधन का शिकार हुए बिना ही सूरजमल ने अपनी धाक स्थापित की। घनघोर संकटों की स्थितियों में भी राजनीतिक तथा सैनिक दृष्टि से पथभ्रांत होने से बचता रहा। बहुत कम विकल्प होने के बावजूद उसने कभी गलत या कमजोर चाल नहीं चली। उसने यत्न किया कि संघर्ष का पथ अपनाने से पहले सब शांतिपूर्ण उपायों को अवश्य आज़माया जाए।[उद्धरण चाहिए]
नवजात जाट राज्य की रक्षा करने और उसे सुरक्षित बनाए रखने के लिए उसने साहस तथा सूझबूझ का परिचय दिया।[उद्धरण चाहिए]
Jat raja