स्टर्लिंग इंजन
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स्टर्लिंग इंजिन एक ऐसा उष्मीय इंजिन है जो हवा, गैस या किसी तरल पदार्थ के भिन्न-भिन्न तापमानों में चक्रीय दबावों एवं फैलाव से इस तरह कार्यान्वित होती है कि वहां पर शुद्ध रूप में उष्मीय उर्जा का बदलाव यांत्रिक क्रिया में हो जाता है।[1]
यह इंजन एक भाप इंजन की तरह होता है जिसमें इंजन दीवार के माध्यम से पूर्ण ताप को स्थानांतरित किया जाता है। इसे परम्परागत रूप से आंतरिक दहन इंजन के विपरीत एक बाह्य दहन इंजन के रूप में जाना जाता है जहां कार्यरत तरल की राशी के भीतर ईंधन के दहन के द्वारा ताप इनपुट होता है। भाप इंजन द्वारा कार्यरत तरल के रूप में तरल और गैस, दोनों पदार्थों में पानी के इस्तेमाल के विपरीत स्टर्लिंग इंजन हवा या हीलियम जैसे गैसीय तरल की निश्चित मात्रा को स्थायी रूप से संलग्न करता है। जैसा कि सभी ताप इंजन में होता है, सामान्य चक्र में शामिल है ठंडी गैस का सम्पीड़न, गैस को गर्म करना, गर्म गैस का विस्तार करना और अंत में चक्र के दोहराव से पहले गैस को ठंडा करना।
इसे भाप इंजन के प्रतिद्वंद्वी के रूप में मूलतः 1816 में एक औद्योगिक मुख्य चालक के रूप में विचारित किया गया था, इसका व्यावहारिक उपयोग एक बड़े पैमाने पर एक सदी से भी अधिक तक न्यून-बिजली घरेलू अनुप्रयोगों के लिए सीमित था।[2] स्टर्लिंग इंजन को अपनी उच्च कार्यक्षमता (40%[3] तक), निर्बाध संचालन और उस सुगमता के लिए जाना जाता है जिससे वह लगभग कोई भी ताप स्रोत का इस्तेमाल कर सकता है। वैकल्पिक और अक्षय ऊर्जा स्रोतों के साथ यह संगतता, पारम्परिक ईंधन की कीमत बढ़ने और जलवायु परिवर्तन और तेल के सीमित उत्पादन के मद्देनज़र तेज़ी से महत्वपूर्ण बन गई है। वर्तमान में यह इंजन, सूक्ष्म संयुक्त ताप और शक्ति (CHP) इकाई के मुख्य घटक के रूप में रूचि को बढ़ा रहा है, जिसमें यह एक तुलनीय भाप इंजन के मुकाबले अधिक कुशल और सुरक्षित है।[4][5] अंतरिक्ष अनुसंधान में उपयोग के लिए स्टर्लिंग इंजन पर (विशेषकर मुक्त पिस्टन प्रकार) नासा द्वारा भी विचार किया जा रहा है।[6]