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इंडोनेशियाई राष्ट्रीय क्रांति
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इंडोनेशियाई राष्ट्रीय क्रांति (1945-1949) इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के लिए डच साम्राज्य के खिलाफ लड़ा गया एक सशस्त्र संघर्ष था। 17 अगस्त 1945 को जापानी कब्ज़े के अंत के तुरंत बाद, इंडोनेशियाई नेताओं सुकार्नो और मोहम्मद हत्ता ने स्वतंत्रता की घोषणा की। हालाँकि, डच सरकार ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया और अपने औपनिवेशिक शासन को बहाल करने के लिए सेना भेजी, जिससे यह युद्ध छिड़ गया।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इंडोनेशिया तीन शताब्दियों तक डच औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा। 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी आंदोलन तेज हुआ, विशेष रूप से 1927 में सुकार्नो द्वारा स्थापित इंडोनेशियाई राष्ट्रीय पार्टी (PNI) के माध्यम से। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापानी सेना ने 1942 में डचों को हराकर इंडोनेशिया पर कब्ज़ा कर लिया और इंडोनेशियाई राष्ट्रवादियों को समर्थन देने का वादा किया। लेकिन जापानी हार के बाद, डचों ने अपनी शक्ति पुनः स्थापित करने की कोशिश की, जिसे इंडोनेशियाई राष्ट्रवादियों ने अस्वीकार कर दिया।[3]
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क्रांति की शुरुआत
स्वतंत्रता की घोषणा के तुरंत बाद, इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों और डच सेनाओं के बीच संघर्ष छिड़ गया। 1945 में सुरबाया की लड़ाई इस संघर्ष का पहला बड़ा सैन्य टकराव थी, जिसमें इंडोनेशियाई सेनानियों ने ब्रिटिश और डच सेनाओं के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया।[3]
इंडोनेशियाई सेनाओं ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, जिसमें गाँवों और जंगलों से हमले किए गए। डच सेना ने जवाबी कार्रवाई में कई बड़े शहरों को नियंत्रित कर लिया, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंडोनेशियाई सेनानियों का प्रभाव बना रहा।[3]
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सशस्त्र संघर्ष और कूटनीतिक वार्ता
1947 में, संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में लिंग्गाजती समझौता हुआ, जिसमें डच सरकार ने इंडोनेशिया को एक संघीय राज्य के रूप में मान्यता देने का आश्वासन दिया। लेकिन डचों ने इस समझौते को तोड़ते हुए सैन्य अभियान शुरू किए, जिन्हें "पोलिश एक्शन" कहा गया।[4]
1948 में, डच सेनाओं ने इंडोनेशियाई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन इंडोनेशियाई गुरिल्लाओं ने लगातार संघर्ष जारी रखा। वैश्विक दबाव बढ़ने लगा और अमेरिका, सोवियत संघ और भारत जैसे देशों ने इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दिया।[5]
1949 में स्वतंत्रता की मान्यता
डच सरकार ने महसूस किया कि वह इंडोनेशिया को सैन्य रूप से नियंत्रित नहीं कर सकती। दिसंबर 1949 में, हेग सम्मेलन में, डच सरकार ने इंडोनेशिया की संप्रभुता को औपचारिक रूप से मान्यता दी। 27 दिसंबर 1949 को इंडोनेशिया एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया और सुकार्नो इसके पहले राष्ट्रपति बने।[5]
निष्कर्ष
इंडोनेशियाई राष्ट्रीय क्रांति केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक क्रांति भी थी जिसने उपनिवेशवाद को समाप्त कर एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना की। इस संघर्ष ने एशिया में औपनिवेशिक शक्ति के अंत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा। स्वतंत्रता के बाद भी, इंडोनेशिया को आंतरिक संघर्षों और बाहरी दबावों का सामना करना पड़ा, लेकिन 1945-1949 की क्रांति ने इसे एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित कर दिया।[4]
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संदर्भ
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