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ईरानी भाषा परिवार

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ईरानी भाषा परिवार
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ईरानी भाषाएँ हिन्द-ईरानी भाषा परिवार की एक उपशाखा हैं। ध्यान रहे कि हिन्द-ईरानी भाषाएँ स्वयं हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की एक उपशाखा हैं। आधुनिक युग में विश्व में लगभग १५-२० करोड़ लोग किसी ईरानी भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं और ऍथ़नॉलॉग भाषाकोष में सन् २०११ तक ८७ ईरानी भाषाएँ दर्ज थीं।[1][2] इनमें से फ़ारसी के ६.५ करोड़, पश्तो के ५-६ करोड़, कुर्दी भाषा के १.८ करोड़, बलोची भाषा के ७० लाख और लूरी भाषा के २३ लाख बोलने वाले थे। ईरानी भाषाएँ ईरान, अफ़्ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान (बलोचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त), तुर्की (पूर्व में कुर्दी इलाक़े) और इराक़ (उत्तर में कुर्दी इलाक़े) में बोली जाती हैं। पारसी धर्म की धार्मिक भाषा, जिसे अवस्ताई कहते हैं, भी एक प्राचीन ईरानी भाषा है।

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ईरानी भाषाओं का आनुवंशिक विभाजन
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विवरण

सारांश
परिप्रेक्ष्य

हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की शाखा हिन्द-ईरानी भाषा परिवार की उपशाखा, ईरानी भाषा परिवार हिन्द-आर्य उपशाखा की भाँति ही महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में यह प्राचीन फ़ारसी (पारसी) के रूप में एक राजकीय भाषा थी और अवस्ताई के रूप में धार्मिक भाषा थी। मध्य ईरानी काल में दो प्रभूत जनभाषाएँ विकसित हुईं, पूर्व प्रदेश में सोग़दी और पश्चिमी प्रदेश में पहलवी। इनके अतिरिक्त फ़ारसी बहुत समय तक एशिया के बड़े भूभाग में संस्कृति की भाषा रही।

प्राचीन फारसी ईरान के दक्षिण-पश्चिमी कोने की भाषा थी। उसका परिचय हमें कीलाक्षरों में खुदे हुए हख़्मानी बादशाहों के अभिलेखों से मिलता है। इनकी लिपि संभवत: अक्कदी लिपि से संबद्ध है। सबसे पुराना लेख अरिय-रग्न (610-580 ई.पू.) का बताया जाता है, किंतु सबसे महत्त्व के लेख बादशाह दारा (520-486 ई.पू.) के हें जो उसके साम्राज्य में सर्वत्र पाए जाते हैं। इनमें भी बिहिस्तून का अभिलेख सर्वप्रसिद्ध है। प्राचीन फारसी के अतिरक्त ये लेख अन्य दो भाषाओं (एलमी और बेबीलोनी) में भी पाए जाते हैं।

अवस्ताई धर्मग्रंथ की भाषा है और वैदिक संस्कृत के बहुत क़रीब है। अवेस्ता अहुरमज़्द के उपासक पारसी लोगों का धर्मग्रंथ है। इसमें भिन्न-भिन्न कालों में रचित उपासना और प्रार्थना के सूक्त पाए जाते हैं। ऋग्वेद की भाँति अवेस्ता भी श्रुतिपरंपरा पर ही निर्भर थी और यह पहलवी वर्णमाला में सासानी बादशाहों के समय में लेखबद्ध की गई। विद्वान्‌ इसके प्राचीन भागों का काल ई.पू. आठवी सदी निर्धारित करते हैं। यह ईरान के पूर्वी भाग की भाषा थी। प्राचीन ईरानी का अवेस्ती और प्राचीन फारसी को छोड़कर हमें और कोई लेख नहीं मिलता।

मध्य ईरानी के दो समुदाय हैं:

  • पश्चिमी मध्य ईरानी को पहलवी कहते हैं। इस शब्द का संबंध पहलवीक्‌ जाति से समझा जाता है। यह सासानी साम्राज्य (226 ई.पू.-652 ई.) की राजभाषा थी और इसमें लिखित बहुत से धार्मिक तथा अन्य ग्रंथ मिलते हैं। इनकी लिपि अरमीनी से प्रभूत तथा प्रभावित मालूम होती है। मध्य ईरानी की कई भाषाओं के अभिलेख भाषाओं के अभिलेख और पुस्तकें अभी 50-60 वर्ष पूर्व तुर्फ़ान (पूर्वी तुर्किस्तान) में प्राप्त हुई हैं। इनमें पारथी भाषा उल्लेखनीय है। मध्यकालीन फारसी भी इसी समुदाय की है। इसमें सासानी बादशाहों के अभिलेख मिलते हैं। यही भाषा पज़ंद नाम से अवेस्ती धर्म की पुस्तकों के लिए भी प्रयोग में आई है।
  • पूर्वी मध्य ईरानी में पूर्वी तुर्किस्तान में प्राप्त हुए साहित्य की भाषाएँ हैं। इनमें बुख़ारा और समरकंद के क्षेत्र की प्राचीन भाषा सोग़दी है जो एशिया के मध्यवर्ती विस्तृत क्षेत्र की भाषा रही होगी। यह मंगोलिया से लेकर तिब्बत के सीमाप्रांत तक फैली हुई थी। इसमें बौद्ध धर्मग्रंथ (बहुधा चीनी भाषा से अनूदित), ईसाई धर्मग्रंथ (सीरीयाई भाषा से अनूदित तथा मौलिक) और मनीची ग्रंथ मिलते हैं। सबसे पुराने ग्रंथों का समय ईसवी चौथी शती होगा। सोग्दी के अतिरिक्त इस समुदाय की दूसरी महत्त्व की भाषा खोतानी है। इसे 'शक' भी कहते हैं। इसमें बहुत से धर्मग्रंथ आठवीं से 10वीं शती के लिखे हुए प्राप्त हुए हैं। इनमें बहुत से बौद्धधर्म संबंधी हैं। लिपि सबकी ब्राह्मी है और शब्दावली में प्राकृत के बहुत से शब्द मिलते हैं।

आधुनिक ईरानी की सबसे महत्वपूर्ण भाषा फ़ारसी है। यह अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। यह अफ़्ग़ानिस्तान से लेकर पश्चिम के काफी बड़े भूप्रदेश में संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा है। इसमें आठवीं शती ई. से लेकर प्रभूत साहित्य का सृजन हुआ है। गठन की दृष्टि से पामीरी भाषाएँ, कुर्दी, बलोची और पश्तो भी ईरानी उपशाखा के अंतर्गत हैं। विस्तार की दृष्टि से हिंद-ईरानी शाखा की तीन भाषाओं ने महत्त्व प्राप्त किया - संस्कृत, पालि और फ़ारसी और ये तीनों सभ्यता और संस्कृति की प्रचारक रहीं।[3]

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इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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