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कुम्हार

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मिट्टी के बर्तन बनाने वाले को 'कुम्हार' कहते हैं। इस समाज की देवी श्री यादे माँ है। कुम्हार (कुम्भकार) प्रजापति[1] जाति सपूर्ण भारत में सभी धर्म में पायी जाती है। [2] क्षेत्र व उप-सम्प्रदायों के आधार पर कुम्हारों को अन्य पिछड़ा वर्ग[3] [4] के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

इस समुदाय का प्रमुख संत श्री संत गोरा कुम्भार जी है, और भगवान विट्ठल एवं देवी रेणुका माता (येलम्मा मंदिर) की आराधना करते है। तीर्थयात्रा का पवित्र केंद्र कोल्हापुर के पास पांचालगढ़ का ज्योतिबा मंदिर है।[3] [5]

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शाब्दिक अर्थ

कुम्हार शब्द का जन्म संस्कृत भाषा के "कुंभकार" शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है-"मिट्टी के बर्तन बनाने वाला"। [6] द्रविढ़ भाषाओ में भी कुंभकार शब्द का यही अर्थ है। "भांडे" शब्द का प्रयोग भी कुम्हार जाति के सम्बोधन हेतु किया जाता है, जो की कुम्हार शब्द का समानार्थी है। भांडे का शाब्दिक अर्थ है-बर्तन। अमृतसर के कुम्हारों को "कुलाल" या "कलाल" कहा जाता है , यह शब्द यजुर्वेद में कुम्हार वर्ग के लिए प्रयुक्त हुये हैं।[2]

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चाक पूजा[7]

भारत में केवल कुम्हारों को सृजनकर्ता एवं वंश वर्धक देवता माना जाता हैं[1][8] विनायक की स्थापना से पूर्व कुम्हार के घर जाकर उसके चाक की विधि-विधान से पूजा करना चाक-पूजन/चाक-नौतना कहलाता है[9] जिसमें महिलाओं द्वारा चाक पर हल्दी से स्वस्तिक का प्रतीक बनाकर वंश वृद्धि की कामना की जाती है।[10][11] भारत की सभी जातियों के लिए शादी में चाक-पूजन एक महत्पूर्ण रस्म होती है एवं इसके बाद ही अन्य रस्में निभाई जाती हैं।[12] अंत में कुम्हार को दान-दक्षिणा देकर वंश वृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है।[13][14][15][16]

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लोक कथाएं[2]

सारांश
परिप्रेक्ष्य

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में 'कुम्हार' से सबंधित अनेकों प्रकार की किवदंतियां उपलब्ध है-

(1) पंजाब में एक लोक मान्यता के अनुसार, ऋषि कुबा भिक्षा देने के लिए प्रतिदिन बीस घड़े बनाते थे, लेकिन एक दिन तीस साधुओं का एक समूह उनके घर आया और भिक्षा में बर्तनों की मांग की। भगवान की कृपा पर भरोसा करते हुए, कुबा भगत ने अपनी पत्नी को पर्दे के पीछे बैठने और साधुओं को एक-एक करके बर्तन देने के लिए कहा। दैवीय चमत्कार से बीस बर्तन बढ़कर तीस हो गए और इस तरह प्रत्येक साधु को एक एक घड़ा मिल गया।[1][2]

(2) कुललन शब्द का उपयोग तमिलनाडु के द्रविड़ भाषी लोगों द्वारा किया जाता है, जो मानते हैं कि 'कुम्हार' कुललन के तीनों पुत्रों के वंशज हैं, जो ब्रह्मा के पुत्र थे। यहां कुलाल शब्द उत्तर और दक्षिण के बीच एक सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने का आधार प्रदान करता है।[1][2]

(3) एक बार ब्रह्मा ने अपने पुत्रों के बीच गन्ना बाँट दिया और उनमें से कुम्हार को छोड़कर प्रत्येक ने अपना हिस्सा खाया, लेकिन कुम्हार जो अपने काम में बहुत तल्लीन था, गन्ने को खाना भूल गया। गन्ने का वह टुकड़ा जो उसने अपनी मिट्टी के ढेले के पास रखा था, कुछ समय बाद गन्ने के पौधे में बदल गया। कुछ समय पश्चात्, जब ब्रह्मा ने अपने पुत्रों से गन्ना पुनः मांगा, तो उनमें से कोई भी उन्हें गन्ना नहीं दे सका, केवल कुम्हार ने नए गन्ने सहित पूरा पौधा पेश किया। ब्रह्मा 'कुम्हार' की अपने काम के प्रति समर्पण से प्रसन्न हुए और उसे "प्रजापति" की उपाधि से सम्मानित किया।

यह कथा पंजाब, राजस्थान और गुजरात में बहुत प्रचलित है। मालवा के कुछ हिस्सों में भी भी प्रचलित हैं। अन्य स्थानों पर किंवदंती कुछ अंतर के साथ दोहराई जाती है। कहा जाता है कि गन्ने के स्थान पर पान के पत्ते (नागरबेल) ब्रह्मा द्वारा वितरित किये गये थ[2][1]

वर्गीकरण

कुम्हारों को मुख्यतया हिन्दू व मुस्लिम सांस्कृतिक समुदायो में वर्गीकृत किया गया है।[2]

कुम्हारों ,े कई समूह है, जैसे कि - गुजराती कुम्हार, राणा कुम्हार, लाद, तेलंगी कुम्हार इत्यादि। इन सभी को सम्मिलित रूप से कुम्हार जाति कहा जाता है।[17]

भारत मे व्याप्ति

चम्बा (हिमाचल)

चम्बा के कुम्हार घड़े, सुराही, बर्तन, अनाज संग्राहक, मनोरंजन के लिए खिलौने इत्यादि बनाने में निपुण होते है। कुछ बर्तनो पर चित्रण कार्य भी किया जाता है।[18]

महराष्ट्र

सतारा, कोल्हापुर, भंडारा-गोंदिया , नागपुर विदर्भ, सांगली, शोलापुर तथा पुणे क्षेत्रों में कुम्हार पाये जाते है। वे आपस में मराठी भाषा बोलते है परन्तु बाहरी लोगो से मराठी ओर हिन्दी दोनों भाषाओ में बात करते हैं। पत्र व्यवहार में वे देवनागरी लिपि का प्रयोग करते है।[3] यहां कुछ गैर मराठी कुम्हार भी है जो मूर्तियां ओर बर्तन बनाते हैं ।[2]

मध्य प्रदेश

यहा हथरेटी, गोल्ला ओर चकारेटी कुम्हार पाये जाते है। बर्तन बनाने के लिए चाक को हाथ से घुमाने के कारण इन्हे हथरेटी कहा जाता है।[19]

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राजस्थान

राजस्थान में कुम्हारों (प्रजापतियों) के उप समूह है-माथेरा, कुम्हार, खेतेरी, मारवाडा., तिमरिया, और मालवी,जाटवा सामाजिक वर्ण क्रम में इनका स्थान उच्च जातियो व हरिजनो के मध्य का है। वे जातिगत अंतर्विवाही व गोत्र वाहिर्विवाही होते है।[6]

उत्तर प्रदेश,बिहार तथा झारखंड

उत्तर प्रदेश व बिहार में कुम्हार जाति का वर्गीकरण

कनौजिया(पंडित),गधेरे(गधेवाल), वर्दिया, हथ्रेटिया, चक्रेटियाम आदि हैं।

सन्दर्भ

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