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ग़ज़नवी साम्राज्य
तुर्क मम्लूक मूल का मुसलमान राजवंश विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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ग़ज़नवी राजवंश (फ़ारसी: ur) एक तुर्क मुसलमान राजवंश था जिसने ९७५ ईसवी से ११८६ ईसवी काल में अधिकाँश ईरान, आमू पार क्षेत्रों और उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया। इसकी स्थापना सबुक तिगिन ने तब की थी जब उसे अपने ससुर अल्प तिगिन की मृत्यु पर ग़ज़ना (वर्तमान ग़ज़नी प्रांत) का राज मिला था। अल्प तिगिन स्वयं कभी ख़ुरासान के सामानी साम्राज्य का सिपहसालार हुआ करता था जिसने अपनी अलग रियासत क़ायम कर ली थी।[5] इन्हें भारतीय सूत्रों में गर्जन तथा गर्जनक कहा गया है और इनके सुल्तान को गर्जनेश तथा गर्जनकाधिराज।
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महमूद ग़ज़नवी द्वारा साम्राज्य विस्तार
सबुक तिगिन का पुत्र, महमूद ग़ज़नी ने ग़ज़नवी साम्राज्य की सीमाओं को बहुत बढ़ाया और अपने राजक्षेत्र को उत्तर में आमू दरिया से लेकर पूर्व में सिन्धु नदी तक और दक्षिण में अरब सागर तक विस्तृत कर दिया। तुर्क नस्ल के होने के बावजूद ग़ज़नवी वंश सामानी साम्राज्य की ईरानी-फ़ारसी सभ्यता से प्रभावित था। वह सैनिक अभियानों में तुर्की भाषाएँ प्रयोग करता था लेकिन राजदरबार और संस्कृति में फ़ारसी इस्तेमाल करता था।
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साम्राज्य का पतन
मसूद प्रथम (१०३१-१०४१) के शासनकाल में ग़ज़नवी अपना पश्चिमी क्षेत्र सन् १०४० में लड़े गए दंदानाक़ान के युद्ध में सलजूक़ साम्राज्य को खो बैठे।[6] इसके बाद उनका साम्राज्य सिकुड़ कर आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान, बलोचिस्तान और पंजाब तक सीमित रह गया। ११५१ में सुलतान बहराम शाह के राजकाल में ग़ज़नवी साम्राज्य स्वयं ग़ज़नी को भी ग़ोर के अलाउद्दीन हुसैन को हार गया।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
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