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ज़िम्मी

सरियत इस्लामिक देश में रहने वाले गैर इस्लामी लोग /समुह विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

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इस्लाम में ध़िम्मी (अरबी: ذمي‎, Arabic pronunciation: [ˈðɪmːiː]; समूह में أهل الذمة, हिन्दी लिप्यान्तरण: अह्ल अल-ध़िम्माह; उस्मानी तुर्की, फ़ारसी, उर्दू इत्यादि में ذمی ज़िम्मी) उस व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को कहते हैं जो मुसलमान नहीं है और शरियत क़ानून के अनुसार चलने वाले किसी राज्य की प्रजा है। इस्लाम के अनुसार इन्हें जीवित रहने के लिये ऋण (टैक्स) देना अनिवार्य है जिसे जज़िया कहा जाता है। ध़िम्मी को मुसलमानों की तुलना में बहुत कम सामाजिक और क़ानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं। किन्तु यदि ध़िम्मी इस्लाम स्वीकार कर ले तो उसको लगभग पूरा अधिकार मिल जाता है।

ज़िम्मी क़ानूनी संरक्षण के साथ इस्लामी हुकूमत में रहने वाले काफ़िरों के लिए एक ऐतिहासिक शब्द है। [1] [2] :470 इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है "संरक्षित व्यक्ति", [3] इसके विपरीत, राज्य के प्रति वफ़ादारी और जज़िया कर के भुगतान के बदले में व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति, साथ ही धर्म की स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए शरिया के तहत राज्य के दायित्व का जिक्र है। मुस्लिम प्रजा द्वारा दी जाने वाली ज़कात या अनिवार्य भिक्षा के लिए। [4] ज़िम्मी को विशेष रूप से मुसलमानों को सौंपे गए कुछ कर्तव्यों से छूट दी गई थी यदि वे चुनाव कर का भुगतान करते थे, किन्तु अन्यथा सम्पत्ति, अनुबन्ध और दायित्व के क़ानूनों के तहत समान थे। [5] [6]

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सन्दर्भ

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