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डूंगरपुर

पूर्व रियासत विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

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डूंगरपुर (Dungarpur) भारत के राजस्थान राज्य के डूंगरपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। इसकी स्थापना राजा डुंगरिया भील ने तैरहवीं शताब्दी में की थी।[1] यहाँ से होकर बहने वाली सोम और माही नदियाँ इसे उदयपुर और बांसवाड़ा से अलग करती हैं। पहाड़ों का नगर कहलाने वाला डूंगरपुर में जीव-जन्तुओं और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं। डूंगरपुर, वास्तुकला की विशेष शैली के लिए जाना जाता है जो यहाँ के महलों और अन्य ऐतिहासिक भवनों में देखी जा सकती है।[2][3]

सामान्य तथ्य डूंगरपुर Dungarpur, ज़िला ...
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इतिहास

डूंगरपुर की स्थापना 13 वी शताब्दी मे राजा डुंगरिया भील ने की थी। रावल वीर सिंह नेे धोखे से भील प्रमुख डुंगरिया की हत्या करी उन्हीं नाम पर इस जगह का नाम डूंगरपुर पड़ा था। 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी थी।

मुख्य आकर्षण

सारांश
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डूंगरपुर की हवेली जूना महल

जूना महल

सफेद पत्थरों से बने इस सातमंजिला महल का निर्माण १३वीं शताब्दी में हुआ था। इसकी विशालता को देखते हुए यह महल से अधिक किला प्रतीत होता है। इसका प्रचलित नाम पुराना महल है। इस महल का निर्माण तब हुआ था जब मेवाड़ वंश के लोगों ने अलग होकर यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया था। महल के बाहरी क्षेत्र में बने आने जाने के संकर रास्ते दुश्मनों से बचाव के लिए बनाए गए थे। महल के अंदर की सजावट में काँच, शीशों और लघुचित्रों का प्रयोग किया गया था। महल की दीवारों और छतों पर डूंगरपुर के इतिहास और 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच राजा रहे व्यक्तियों के चित्र उकेरे गए हैं। इस महल में केवल वे मेहमान की आ सकते हैं जो उदय विलास महल में ठहरे हों।

देव सोमनाथ

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देव सोमनाथ मंदिर

देव सोमनाथ डूंगरपुर से 24 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। दियो सोमनाथ सोम नदी के किनार बना एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर के बार में माना जाता है कि इसका निर्माण विक्रम संवत 12 शताब्दी के आसपास हुआ था। और इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसे एक रात में बनाया गया था। बिना किसी चूनाई के सफेद पत्थर से बने इस मंदिर पर पुराने समय की छाप देखी जा सकती है। मंदिर के अंदर अनेक शिलालेख भी देखे जा सकते हैं।

संग्रहालय

इस संग्रहालय का पूरानाम है राजमाता देवेंद्र कुंवर राज्य संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र। यह संग्रहालय 1988 में आम जनता के लिए खोला गया था। यहाँ एक खूबसूरत शिल्प दीर्घा है। इस दीर्घा में तत्कालीन वागड़ प्रदेश की इतिहास के बार में जानकारी मिलता है। यह वागड़ प्रदेश आज के डूंगरपुर, बंसवाड़ा और खेरवाड़ा तक फैला हुआ था। समय: सुबह 10 बजे-शाम 4.30 बजे तक, शुक्रवार और सरकारी अवकाश के दिन बंद

गैब सागर झील

इस झील के खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण में कई पक्षी रहते हैं। इसलिए यहाँ बड़ी संख्या में पक्षियों को देखने में रुचि रखने वाले यहाँ आते हैं। झील के पास ही श्रीनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर विजय राज राजेश्वर का है जो भगवान शिव को समर्पित है।

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दो नदी पुल, डूंगरपुर
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निकटवर्ती दर्शनीय स्थल

बड़ौदा

(41 किलोमीटर) डूंगरपुर से 41 किलोमीटर दूर बड़ौदा वगद की पूर्व राजधानी थी। यह गाँव अपने खूबसूरत और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय है सफेद पत्थरों से बना शिवजी का प्राचीन मंदिर। इस मंदिर के पास एक कुंडली है जिस पर संवत 1349 अंकित है। गाँव के बीच में एक पुराना जैन मंदिर है जो मुख्य रूप से पार्श्‍वनाथ को समर्पित है। मंदिर की काली दीवारों पर 24 जन र्तीथकरों को उकेरा गया है।

बेणेश्वर धाम

साँचा:Main बेणेश्वर धाम (60 किलोमीटर) बेणेश्वर धाम डूंगरपुर से 60 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर में इस क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर सोम माही और जाखम के मुहाने पर बना है। यह एक त्रिवेणी संगम है इसे वागड़ के कुंभ के नाम से भी जाना जाता इस दो मंजिला भवन में बारीकी से तराशे गए खंबे और दरवाजे हैं। माघ शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक यहाँ एक मेला लगता है। शिव मंदिर के पास ही भगवान विष्णु का मंदिर है। एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 1793 ई. में हुआ था। इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि बेनेश्वर धाम नामक इसी जगह भगवान कृष्ण के अवतार मावजी ने ध्यान लगाया था। जोकि डूंगरपुर जिले में स्थित गेपसागर जील के उपर से पैदल चलकर बेणेश्वर धाम पहुंचे थे यहाँ पर एक और मंदिर भी है जो ब्रह्माजी को समर्पित है।

गलीयाकोट

(58 किलोमीटर) माही नदी के किनार बसा गलीयाकोट गाँव डूंगरपुर से 58 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है। एक जमाने में यह परमारों की राजधानी हुआ करता था। आज भी यहाँ पर एक पुराने किले के खंडहर देखे जा सकते हैं। यहाँ पर सैयद फखरुद्दीन की मजार है। उर्स के दौरान पूरे देश से हजारों दाउद बोहारा श्रद्धालु आते हैं। यह उर्स प्रतिवर्ष माहर्रम से 27वें दिन मनाया जाता है। सैयद फखरुद्दीन धार्मिक व्यक्ति थे और घूम-घूम कर ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते थे। इसी क्रम में गलीकोट गाँव में उनकी मृत्यु हुई थी। इस मजार के अलावा भी इस जिले में अन्य महत्वपूर्ण स्थान भी हैं जैसे मोधपुर का विजिया माता का मंदिर और वसुंधरा का वसुंधरा देवी मंदिर।

आवागमन

वायु मार्ग

निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (110 किलोमीटर)

रेल मार्ग
डूंगरपुर में रेलवे स्टेशन है, नजदीकी में उदयपुर रेलवे स्टेशन है जो कि 106 किलोमीटर पर है। दूसरा नजदीकी रेलवे स्टेशन रतलाम (184 किलोमीटर, मध्यप्रदेश में) है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
सड़क मार्ग

डूंगरपुर को राजस्थान के अन्य शहरों और उत्तर भारत के राज्यों से जोड़ने वाली अनेक सड़कें हैं। राज्य परिवहन की बसें और निजी बसें इन शहरों से डूंगरपुर के बीच चलती हैं।

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आदिवासी

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आदिवासी लडकियाँ

राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और उदयपुर जिले खेरवाड़ा तहसील के 11 गांव का मिला जुला क्षेत्र "वागड़" कहलाता है। वागड़ प्रदेश अपने उत्सव प्रेम के लिए जाना जाता है। यहाँ की मूल बोली "वागड़ी" है। जिस पर गुजराती भाषा का प्रभाव दिखाई देता है। वागड़ प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी भील आदिवासियों की है। वागड़ क्षेत्र में लबाना समाज के लोग भी बड़ी संख्या में निवास करते है यह समाज लव वंशज कहलाती है यह समाज भी राजनीति और शानो शौकत के लिए मानी जाती है राजाओं के राज में भी इस समाज को सम्मान के रूप में नायक की पदमी से सम्मिनित किया गया था एवम राजा अपनी गाड़ी लेकर इनके इलाको का जाया करते थे वहा पर कलाल समाज के भी लोग रहते है। यह इलाका पहाड़ों से घिरा हुआ है। इन्हीं के तो बीच इन आदिवासियों का घेरा है।

पर्व

इनके लिए होली यह सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है, होली के पंधरा दिन पहले ही ढोल बजाये जाते है| होली दे दिन में लड़के-लडकिया नृत्य करते है, जिसे गैर नाम से जाना जाता है।

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इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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