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पानीपत का प्रथम युद्ध
दिल्ली सल्तनत की मुगल विजय के दौरान 1526 की लड़ाई विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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पानीपत का प्रथम युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था,और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। मुग़ल खानदान के पहले किसी व्यक्ति का यह भारत मे पहला बड़ा युद्ध था। इस पहले ही युद्ध मे मुग़ल बाबर ने परम्परागत वीरता के प्रदर्शन को छोड़कर चालाकी और कपट से काम लिया । बिना हाथियों और मात्र चौथाई से कम सेना के बल पर भरपूर चालाकी और कपट से तुलुगमा पद्धति का प्रयोग कर यह युद्ध जीत लिया। भारत मे यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था।
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बाबर अफगान का भगोड़ा था। पर वह अफगान और भारत पर विजय के सपने देखता था। उसने तुर्क और अफगान सैनिकों को इकठ्ठा किया इस तरह अपनी सेना तैयार की। उस समय सेना का मुख्य बल हाथी हुआ करते थे। भारत मे तोप, गोले और बारूद को कोई जानता भी न था। युद्ध आमने सामने हाथियों की सेना और अपनी छाती के बल पर लड़ा जाता था। चूंकि बाबर भगोड़ा था इसलिए उसके पास हाथी बिल्कुल भी न थे। जो कुछ थे सिर्फ घोड़े थे। अतः बाबर ने सामने छाती से छाती अड़ाकर लड़ने के बजाय कपट और चालाकी का सहारा लिया। उसने तुलुगामा कौशल का प्रयोग किया। भारतीय वीर युद्ध के मैदान में किसी भी कपट और चालाकी को प्रयोग करना पाप और कायरता मानते थे। तुलुगामा में सामने थोड़े से सैनिक अड़ाकर दोनों बगलों में अतिरिक्त सैनिक छुपाकर रखे जाते हैं। सामने से दुश्मन को कपट पूर्ण उलझाया जाता है। जैसे ही दुश्मन उलझने में फंसता है, दोनों बगलों से अतिरिक्त सैनिकों से हमला कर दिया जाता है। वही बाबर ने किया ।सामने गड्ढे और छोटी छोटी खन्दक खोदकर तोपों को छुपाया। बाबर सामने नहीं आया। बैलगाड़ियाँ आड़े लगा दीं। उनकी आड़ से हाथियों पर गोले और बारूद से हमला किया। हाथियों ने पहले कभी न तो गोले और बारूद की आवाज सुनी थी और न हमले देखे थे। हाथी भड़क गए और अपनी ही तरफ वापस सैनिकों को रौंदने लगे। बस यही तो बाबर चाहता था। बाहुबल और वीरता की जगह कपट और तरकीब काम कर गयी। हजारों हाथियों के होते हुए भी लोदी युद्ध हार गया और कपटी बाबर जीत गया। पानीपत के मैदान ने वीरता के स्थान पर मुगलों का यह पहला पाप देखा था।
सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान (इब्राहिम लोदी), की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया।
युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं।
एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 12,000-25,000 के करीब सैनिक और 20 मैदानी तोपें थीं। लोदी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे।
इस युद्ध में बाबर ने तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया था। इसका एक अन्य नाम उच्चतर युद्ध कौशल था। यह अब तक के युद्धों में पहला ऐसा युद्ध था जिसमें इसका प्रयोग किया गया।
बाबर के द्वारा इस युद्ध में उस्मानी विधि ( तोप सज़ाने की विधि) का भी प्रयोग किया गया। ये इसने तुर्को से सीखी थी। पानीपत के इस युद्ध मे इब्राहिम लोधी युद्ध भूमि मे मारा गया।। इस तरह बाबर की विजय हुई। बाबर ने लौटकर काबुल की जनता को चांदी के सिक्के उपहार मे दिए । इस उपरांत बाबर को कलंदर की उपाधि दी गई।
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इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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