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मतरुकात

विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

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मतरूकात का सिद्धान्त का अर्थ है भाषा में बिगड़े हुए शब्द एवं प्रयोग को भाषाकोश से बाहर निकालना जो अप्रचलित या लुप्तप्रयोग हो चुके हैं। भारत में मतरूकात के सिद्धान्त के कारण ही उर्दू और हिन्दी में से बहुत से शब्द छोड़ दिये गये। इसके कारण 'हिन्दी' और उर्दू में दूरी बढ़ती चली गयी।

मतरूकात के दो पहलू हैं - एक तो बहुत से प्रचलित शब्द 'गंवारू' कहकर छोड़ दिये गये, दूसरे उच्च साम्स्कृतिक शब्दावली के लिये केवल अरबी-फारसी से शब्द उधार लिये गये।

हिन्दी का उर्दू से विलगाव इसलिये आवश्यक था कि उर्दू कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, रसखान आदि द्वारा प्रयुक्त देशी शब्दों की परम्परा से अपने को जानबूझकर अलग कर लिया था।

उर्दू में जितने अरबी शब्द अंग्रेजों के राज में आये उतने मुसलमानों के राज में भी नहीं आये थे। 'उर्दू अलग भाषा है', 'मजहब के आधार पर भी कौमें बनतीं हैं' - ये विचार अंग्रेजी राज में ही प्रचारित किये गये, मुसलमानों के शासनकाल में नहीं।

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