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मापयंत्रण

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मापयंत्रण
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मापयंत्रण (Instrumentation) इंजीनियरी की एक शाखा है जो मापन एवं नियंत्रण से सम्बन्धित है।

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वाष्प टरबाइन का नियंत्रण पटल (कंट्रोल पैनेल)

इन युक्तियों को मापकयंत्र (instrument) कहते हैं जो किसी प्रक्रम (process) के प्रवाह (flow), ताप, दाब, स्तर आदि चरों (variables) को मापने या नियंत्रित करने के काम आते हैं। मापकयंत्र के अन्तर्गत वाल्व, प्रेषित्र (transmitters) आदि अत्यन्त सरल युक्तियों से लेकर विश्लेषक (analyzers) जैसे जटिल युक्तियां सम्मिलित हैं। प्रक्रमों का नियंत्रण अनुप्रयुक्त मापयंत्रण की प्रमुख शाखा है।

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मापयंत्रण का महत्व

सारांश
परिप्रेक्ष्य

राल्फ मूलर (Ralph Müller) ने १९४० में कहा था-

भौतिक विज्ञनों का इतिहास बहुत सीमा तक मापकयन्त्रों का इतिहास है और उनका बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग सुज्ञात है। समय-समय पर जो बड़े-बड़े सिद्धान्त और सामान्यीकरण ( generalizations) किये गये वे सफल रहे या असफल, यह इस बात पर निर्भर रहा कि मापन कितना यथार्थपूर्ण (एक्युरेट) किया गया था। कई उदाहरण हैं जिसमें नये मापनयंत्र के विकास के बिना काम को पूरा ही नहीं किया जा सकता था। कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है कि आधुनिक मानव का मस्तिष्क प्राचीन मानव के मस्तिष्क से श्रेष्ठतर है। आधुनिक मानव के औजार अवश्य ही प्राचीन मानव के औजारों की अपेक्षा अत्यन्त श्रेष्ठ हैं।

डेविस बेयर्ड (Davis Baird) का विचार है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ्ल्लोरिस कोहेन ने जिस "चौथे बृहद वैज्ञानिक क्रांति" की सम्भावना को देखा था उसके पीछे वैज्ञानिक मापयंत्रण का विकास ही था। यह विकास केवल रसायन विज्ञान में नहीं हुआ था बल्कि सभी विज्ञानों में हुआ था। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में १९४० के दशक में नये मापनयंत्रण का विकास किसी वैज्ञानिक और तकनीकी क्रान्ति से कम न था। इस प्रक्रिया में परम्परागत संरचनात्मक कार्बनिक रसायन के आर्द्र-एवं-शुष्क विधियों को त्यागकर नयी विधियाँ निकाली गयीं।

डब्ल्यू ए विल्ढाक (W. A. Wildhack) ने सन १९५४ में ही प्रक्रिया नियंत्रण में निहित उत्पादक एवं विध्वंसात्मक सम्भावनाओं की चर्चा की थी। वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके प्रकृति के विभिन्न अंगों का यथार्थपूर्ण, परिशुद्ध, परीक्षणीय, पुनरावृत (reproducible) मापन की क्षमता ने संसार का एक नया स्वरूप सामने लाया है। मापयंत्रण की इस क्रान्ति ने नापने और उसके अनुसार क्रिया करने की मानव की क्षमता में मूलभूत परिवर्तन ला दिया है। इसके उदाहरण डीडीटी की मानीटरिंग, जल के प्रदूषण को मापने के लिए परा बैंगनी स्पेक्ऱॊफोटोमिति का उपयोग में स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं।

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आधुनिक नियंत्रण कक्ष
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मापयंत्रों के प्रसिद्ध निर्माता

  • एबीबी
  • Elite Instrumentaçao
  • Endress+Hauser
  • हनीवेल (Honeywell)
  • Metso
  • Smar Equipamentos Industriais
  • योकोगावा एलेक्ट्रिक (Yokogawa Electric)
  • सीमेन्स (Siemens)
  • इमर्सन (Emerson)
  • इन्वेन्सिस (Invensys)
  • नोवस आटोमेशन (Novus Automation)
  • वेगा (Vega)
  • Instrumentos Lince

भारतीय मानयंत्रण का इतिहास

सारांश
परिप्रेक्ष्य

भारत में खगोलीन प्रेक्षणों (मापन) के लिए वराहमिहिर, आर्यभट, भास्कराचार्य प्रथम, ब्रह्मगुप्त, लल्ल, वटेश्वर, श्रीपति और भास्कराचार्य द्वितीय के द्वारा किए गये कार्यों के द्वारा ४०० ई से लेकर १२०० ई तक खगोलशास्त्र का तेजी से विकास हुआ।

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के यन्त्राध्याय में 'यन्त्र' के प्रयोजन के बारे में ब्रह्मगुप्त लिखते हैं-

इदानीं यन्त्राध्यायारम्भप्रयोजनमाह ।
गोलस्य परिच्छेदः कर्तुं यन्त्रैर्विना यतोऽशक्यः ।
संक्षिप्तं स्पष्टार्थं यन्त्राध्यायं ततो वक्ष्ये ॥ ४ ॥
अब यन्त्राध्याय प्रारम्भ करने के कारण कहते हैं ।
यन्त्रों के बिना ज्यौतिषिक लोग गोल का विचार अच्छी तरह करने में असमर्थ होते हैं । इसलिए गोल की स्पष्टता के लिए संक्षेप में यन्त्राध्याय को मैं कहता हूँ।

सवाई जयसिंह के पहले तक उपयोग में आने वाले प्रमुख यन्त्र ये थे- नदिका यन्त्र (clepsydra, outflow water clock), घटिका यन्त्र (sinking bowl clepsydra), नदियालय यन्त्र (equinoctial sundial), फलक यन्त्र (sundial), कर्तारी यन्त्र (equinoctial sundial), ध्रुवभ्रम यन्त्र (measuring the time by the rotation of the Big Dipper), कपाल यन्त्र (hemispherical sundial, प्रतोद यन्त्र (whip shaped gnomonic device), यन्त्रराज (astrolabe), तुरीययन्त्र (quadrant), तथा गोलनन्द (armillary sphere)। [1]

लल्लाचार्य ने अपने ग्रन्थ में १२ यन्त्रों का वर्णन किया है-

गोलो भगणश्चक्रं धनुघटी शंकुशकटकर्तर्यः।
पीप्टक पालशलाका द्वादशयन्त्राणिसह यष्टया ॥

अनुवाद : गोला, भणक (ring,), चक्र (dial), धनु (bow), घटी (time measuring water vessel) , शंकु (Gnomon), शकट (divider), कर्तयः (scissor), पीप्टक , पाल और शलाका, छड़ी - ये १२ यन्त्र है )

भास्कराचार्य सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, "काल के सूक्ष्म खण्डों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं यंत्रों के बारे में कहता हूं।" वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र, चाप, तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं।

अथ यन्त्राध्यायो व्याख्यायते । तत्राऽऽदौ तदारम्भप्रयोजनमाह-
दिनगतकालावयवा ज्ञातुमशक्या यतो विना यन्त्रैः ।
वक्ष्ये यन्त्राणि ततः स्फुटानि संक्षेपतः कतिचित् ॥१॥
गोलो नाडीवलयं यष्टिः शङ्कुर्घटी चक्रम् ।
चापं तुर्यं फलकं धीरेकं पारमार्थिकं यन्त्रम् ॥२॥
( यन्त्रों के बिना दिनगत काल के सूक्ष्माति सूक्ष्म अवयवों का ज्ञान नहीं होता है, अत एव संक्षेप से समय सूचक कतिपय यन्त्रों का वर्णन इस यन्त्राध्याय नाम के अध्याय में किया जा रहा है।॥१॥
इस प्रकार यन्त्रों में (१) गोलयन्त्र (२) नाडोवलय (३) यष्टि (४) शङ, (५) घटी, (६) चक्र, (७) चाप, (८) तुर्य और (९) फलक यन्त्रों के वर्णन के साथ सर्वोपरि सर्वोत्तम एक यन्त्र है जिसका नाम “धी” अर्थात् बुद्धि यन्त्र हैं ।॥२॥)[2]

सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित जन्तर-मन्तर वास्तव में एक खुली हुई मापन-यंत्र-शाला है। जयसिंह द्वारा निर्मित जन्तर-मन्तर में विद्यमान यन्त्र ये हैं- सम्राट यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र, राशिवलय यन्त्र, राम यन्त्र, चक्र यन्त्र, दिगंश यन्त्र, कपालि यन्त्र, दक्षिणोभित्ति यन्त्र, क्रान्ति यन्त्र, उन्नतांश यन्त्र, नारीवलय यन्त्र, शस्थान्न्श यन्त्र, तथा यन्त्रराज।

खगोलीय मापयंत्रण से सम्बन्धित संस्कृत पाण्डुलिपियाँ

वर्तमान समय तक प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में खगोलिकी के लिये प्रयुक्त सबसे प्राचीन मापनयन्त्र शंकु ((gnomon) और घटिका (clepsydra) हैं। शंकु का उल्लेख शुल्बसूत्रों में हुआ है जबकि घटिका का उल्लेख वेदाङ्ग ज्योतिष में हुआ है। आर्यभट ने खगोलीय गोले के एक घूर्णन करने वाले मॉडेल का वर्णन किया है। आर्यभट के बाद वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, लल्ल, श्रीपति और भास्कर द्वितीय ने अनेक मापयंत्रों का वर्णन किया। भास्कर द्वितीय के पश्चात कुछ ऐसे संस्कृत ग्रन्थों की रचना हुई जिनका विषय मुख्यतः मापयंत्रण ही था। इस प्रकार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ यन्त्रराज है जिसकी रचना १३७० ई में महेन्द्र सूरि ने की थी। उन्नतांशमापी (astrolabe) का वर्णन करने वाला यह प्रथम संस्कृत ग्रन्थ भी है। महेन्द्र सूरि के पश्चात पद्मनाभ, चक्रधर, गणेश दैवज्ञ, आदि ने भी मापनयन्त्रों से सम्बन्धित ग्रन्थों की रचना की। [3]

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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