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मोलस्का

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मोलस्का
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मृदुकवची द्वितीय सबसे बड़ा प्राणी संघ है। ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय (लवणीय एवं मीठा) तथा अंगतन्त्र स्तर के संगठन वाले होते हैं। ये द्विपार्श्विक सममिति त्रिकोरकी तथा प्रगुही हैं। शरीर कोमल परन्तु कठोर कैल्सियम के कवच से ढका रहता है। इसका शरीर अखण्डित है जिसमें शिर, पेशीय पाद तथा एक अन्तरंग ककुद् होता है। त्वचा की नरम तथा स्पंजी परत ककुद् के ऊपर प्रावार बनाती है। ककुद् तथा प्रावार के बीच के स्थान को प्रावार गुहा कहते हैं, जिसमें पंख के समान क्लोम पाए जाते हैं, जो श्वसन एवं उत्सर्जन दोनों में सहायक हैं। शिर पर संवेदी स्पर्शक पाए जाते हैं। मुख में भोजन हेतु घर्षित्र के समान घिसने का अंग होता है। इसे घर्षित्र-जिह्वा कहते हैं। प्रायः नर और मादा पृथक होते हैं तथा अण्डप्रजक होते हैं। परिवर्धन सामान्यतः डिम्भ के द्वारा होता है। उदाहरण: सेब घोंघा, मुक्ता शुक्ति, समुद्रफेनी, विद्रूप, अष्टबाहु, समुद्री शशक, रद कवचर, खाइटन[1]

सामान्य तथ्य मृदुकवची, वैज्ञानिक वर्गीकरण ...
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विविधता

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सभी ज्ञात ८०% मोलस्क प्रजाति में गैस्ट्रोपॉड के साथ-साथ कौड़ी (एक समुद्री घोंघा) भी शामिल है।

मोलस्क की प्रजातियों में रहने वाले वर्णित अनुमान ५०,००० से अधिकतम १२०,००० प्रजातियों का है। डेविड निकोल ने वर्ष १९६९ में उन्होंने लगभग १०७,००० में १२,००० ताजा पानी के गैस्ट्रोपॉड और ३५,००० स्थलीय का संभावित अनुमान लगाया था।[2]

सामान्यीकृत मोलस्क

सारांश
परिप्रेक्ष्य
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एक काल्पनिक पैतृक मोलस्क के संरचनात्मक आरेख

क्योंकि मोलस्क के बीच शारीरिक विविधता की बहुत बड़ी सीमा होने के कारण कई पाठ्यपुस्तकों में इन्हे अर्चि-मोलस्क, काल्पनिक सामान्यीकृत मोलस्क, या काल्पनिक पैतृक मोलस्क कहा जाता है। इसके कई विशेषताएँ अन्य विविधता वाले जीवों में भी पाये जाते है।

सामान्यीकृत मोलस्क द्विपक्षीय होते है। इनके ऊपरी तरफ एक कवच भी होता है, जो इन्हे विरासत में मिला है। इसी के साथ-साथ कई बिना पेशी के अंग शरीर के अंगों में शामिल हो गए।

गुहा

यह मूल रूप से ऐसे स्थान पर रहना पसंद करते है, जहां उन्हे प्रयाप्त स्थान और समुद्र का ताजा पानी मिल सके। परंतु इनके समूह के कारण यह भिन्न-भिन्न स्थानो में रहते है। सभी स्थानों पर पाया जाता है

खोल

यह उनको विरासत में मिला है। इस प्रकार के खोल मुख्य रूप से एंरेगोनाइट के बने होते है। यह जब अंडे देते है तो केल्साइट का उपयोग करते है।

पैर

इनमें नीचे की और पेशी वाले पैर होते है, जो अनेक परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न कार्यों को करने के काम आते है। यह किसी प्रकार के चोट लगने पर श्लेष्म को एक स्नेहक के रूप में स्रावित करता है, जिससे किसी भी प्रकार की चोट ठीक हो सके। इसके पैर किसी कठोर जगह पर चिपक कर उसे आगे बढ़ने में सहायता करते है। यह ऊर्ध्वाधर मांसपेशियों के द्वारा पूरी तरह से खोल के अंदर आ जाता है।


मोलस्का की विशेषताएँ  • वे ज्द् जल में, कुछ मीठे पानी में और कुछ स्थलीय रूप में पाए जाते हैं।  • वे अन्य प्राणियों के अन्दर गुप्त परजीवी के रूप में पाए जा सकते हैं।  • इनका आकार विशाल स्क्विड और क्लैम से लेकर एक मिलीमीटर लंबे छोटे घोंघे तक होता है।  • उनमें कम से कम दो रेडुला और मैन्टल लक्षण होते हैं, जो अन्यत्र नहीं पाए जाते।  • शरीर कोमल, अखण्ड, द्विपक्षीय सममित, प्रोकैविटी, त्रिगुणित (मोनोप्लाकोफोरा को छोड़कर)।  • शरीर का संगठन ऊतक प्रणाली स्तर का है।  • शरीर में सिर, पैर, आवरण और आंतीय पिंड होते हैं।  • शरीर प्रायः रोमयुक्त एक-स्तरित अधिचर्म से ढका होता है।  • शरीर सामान्यतः मेंटल द्वारा स्रावित बाह्यकंकालीय कैल्केरियस शैल के एक या अधिक टुकड़ों द्वारा संरक्षित होता है।  • पेलेसीपोडा और स्कैफोपोडा को छोड़कर, सिर अलग होता है, जिसमें मुंह, आंखें, स्पर्शक और अन्य इंद्रिय अंग होते हैं।  • अधर शरीर एक मांसल हल जैसी सतह में परिवर्तित हो जाता है, पैर को टेंगने, बिल खोदने और तैरने के लिए विभिन्न तरीकों से संशोधित किया जाता है।  • मेंटल या पैलियम शरीर की दीवार  की एक तह है जो मुख्य शरीर, मेंटल गुहा, को अपने भीतर छोड़ती है।  • शरीर की गुहा हीमोसील है। कोइलोम छोटा होता है और पेरीकार्डियल गुहा, गोनाडियल गुहा द्वारा चिह्नित होता है।  अंगों का छिन्न-भिन्न होना, आमतौर पर रेड्यूला या पेलेसीपोडा में होता है।  • सेफेलोपोड्स को छोड़कर, परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का  होता है।  श्वसन अंगों में कई गिल्स या सीटिनिडिया होते हैं जो आमतौर  पर आधार पर ऑस्फ़ेडियम से युक्त होते हैं। स्थलीय रूपों में फेफड़े विकसित होते हैं।  • मोलस्का में श्वसन गलफड़ों या फेफड़ों, या दोनों द्वारा प्रदान किया जाता है।  • उनके श्वसन वर्णक हीमोसायनिन हैं;  • उत्सर्जन युग्मित मेटानेफ्रिडिया (गुदै) द्वारा किया जाता है।  • मोलस्का तंत्रिका तंत्र में युग्मित प्रीफ्रंटल, प्लुरल, पेडल और विसराल गैन्ग्लिया के साथ-साथ अनुदैर्ध्य और अनुप्रस्थ तंत्रिका कनेक्शन होते हैं। आमतौर पर गैन्ग्लिया एक परिधि वलय बनाते हैं।  • संवेदी अंग त्वचा, स्टेटोसिस्ट और स्पर्श, गंध और स्वाद रिसेप्टर्स से बने होते हैं। लिंग आमतौर पर अलग-अलग (द्विलिंगी) होते हैं, लेकिन कुछ एकलिंगी  (उभयलिंगी) भी होते हैं।  • वेलिगर लार्वा नामक ट्रोकोफोर अवस्था के माध्यम से विकास प्रत्यक्ष या कायापलट के साथ होता है।  • आंत का यह पिंड, अपने सघन रुप में, शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को  धारण करता है, जो पृष्ठीय कूबड़ या गुम्बद का रूप ले लेता है।  ये मोलस्का की विशेष विशेषताएं हैं।[3]

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सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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