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मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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मोहन मधुकरराव भागवत (जन्म: 11 सितम्बर 1950) भारतीय राजनैतिक कार्यकर्ता और पशु चिकित्सक हैं। वो सन् 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छटे और वर्तमान सरसंघचालक हैं।[1] उन्हें एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। के एस सुदर्शन ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था।[2]
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प्रारम्भिक जीवन
मोहनराव मधुकरराव भागवत का जन्म महाराष्ट्र के चन्द्रपुर नामक एक छोटे से नगर में 11 सितम्बर 1950 को हुआ था। वे संघ कार्यकर्ताओं के परिवार से हैं।[2] उनके पिता मधुकरराव भागवत चन्द्रपुर क्षेत्र के प्रमुख थे जिन्होंने गुजरात के प्रान्त प्रचारक के रूप में कार्य किया था।[2] मधुकरराव ने ही लाल कृष्ण आडवाणी का संघ से परिचय कराया था। उनके एक भाई संघ की चन्द्रपुर नगर इकाई के प्रमुख हैं। मोहन भागवत कुल तीन भाई और एक बहन चारो में सबसे बड़े हैं।
मोहन भागवत ने चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा और जनता कॉलेज चन्द्रपुर से बीएससी प्रथम वर्ष की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1975 के अन्त में, जब देश तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल से जूझ रहा था, उसी समय वे पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़कर संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गये।[2]
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संघ से सम्बन्ध
सारांश
परिप्रेक्ष्य

आपातकाल के दौरान भूमिगत रूप से कार्य करने के बाद 1977 में भागवत महाराष्ट्र में अकोला के प्रचारक बने और संगठन में आगे बढ़ते हुए नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के प्रचारक भी रहे।[2]
1991 में वे संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने और उन्होंने 1999 तक इस दायित्व का निर्वहन किया। उसी वर्ष उन्हें, एक वर्ष के लिये, पूरे देश में पूर्णकालिक रूप से कार्य कर रहे संघ के सभी प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया।
वर्ष 2000 में, जब राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और हो०वे० शेषाद्री ने स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से क्रमशः संघ प्रमुख और सरकार्यवाह का दायित्व छोडने का निश्चय किया, तब के एस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख चुना गया और मोहन भागवत तीन वर्षों के लिये संघ के सरकार्यवाह चुने गये।
21 मार्च 2009 को मोहन भागवत संघ के सरसंघचालक मनोनीत हुए। वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं। उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।
विचार
मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है।[3] उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है।[4] वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।[4]
नवम्बर 2016 में, राष्ट्रसेविका समिति की 80 वीं वर्षगाँठ पर एक 'प्रेरणा शिबिर' को सम्बोधित करते हुए, आरएसएस की महिला शाखा, मोहन भागवत ने कहा कि होमो सेपियन्स ने अतीत में होमो जीनस की अन्य प्रजातियों के अन्तरिक्ष में खाया - जैसे - होमो फ्लोरेसेंसिस और निएंडरथल, लेकिन यहां तक कि होमो सेपियन्स अगले हजार वर्षों में विलुप्त हो सकते हैं।[5]
सितम्बर 2018 में, मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस ने माधव सदाशिव गोलवलकर के "बंच ऑफ़ थॉट्स" के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया है जो वर्तमान परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।[6]
हिन्दु समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, भागवत ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए।[7]
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सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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