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राधा वल्लभ मंदिर
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वृन्दावन नगर में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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श्री राधा वल्लभ मंदिर (या राधा वल्लभ लाल जी मंदिर) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वृन्दावन नगर में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है, जो राधा कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर राधा वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख उपासना केंद्र है और इसकी स्थापना वृन्दावन के संत हित हरिवंश महाप्रभु की प्रेरणा से की गई थी।[1]
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विशेष परंपरा और इतिहास
सारांश
परिप्रेक्ष्य
श्री राधा वल्लभ मंदिर वृन्दावन का एक प्राचीन और प्रतिष्ठित मंदिर है, जिसकी स्थापना हित हरिवंश महाप्रभु द्वारा की गई थी। यह मंदिर राधा वल्लभ संप्रदाय का प्रधान तीर्थ स्थल है। मंदिर में प्रतिदिन रात्रि में मधुर और पारंपरिक समाज-गान की परंपरा आज भी अनवरत चली आ रही है, जो इस मंदिर की एक विशिष्टता मानी जाती है।[2]
मूल मंदिर का निर्माण लगभग सवा चार सौ वर्ष पूर्व हुआ था, परंतु मुगल शासक औरंगज़ेब के काल में यह क्षतिग्रस्त हो गया। इसके बाद श्री राधा वल्लभ जी की मूर्ति की सुरक्षा हेतु उन्हें राजस्थान के भरतपुर ज़िले के कामां नगर ले जाया गया और वहीं एक मंदिर में स्थापित किया गया। वे वहाँ 123 वर्षों तक पूजित रहे। पुनः जब स्थिति अनुकूल हुई तो उन्हें वृन्दावन लौटाकर एक नवनिर्मित मंदिर में स्थापित किया गया।[3]
इस नए मंदिर का निर्माण कार्य विक्रम संवत 1881 (सन् 1824 ई.) में पूर्ण हुआ। यह वही स्थान है जहाँ आज राधा वल्लभ जी प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिर श्री हरिवंश महाप्रभु के वंशजों द्वारा सेवा-पूजन के अंतर्गत संचालित होता है। मंदिर के प्रमुख आचार्य हित मोहित मराल गोस्वामी (युवराज) के अनुसार, मुगल सम्राट अकबर ने वृन्दावन के सात प्रमुख मंदिरों को कुल 180 बीघा भूमि आवंटित की थी, जिनमें से अकेले राधा वल्लभ मंदिर को 120 बीघा भूमि प्राप्त हुई थी।
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा मंदिर के बाहर एक प्रस्तर पट्ट (शिलालेख) लगाया गया है, जिसमें उल्लेख है कि यह मंदिर देवबंद निवासी श्री सुंदरदास खजांची द्वारा सन् 1584 में बनवाया गया था। उन्हें यह कार्य हित व्रजचन्द महाप्रभु की आज्ञा से सौंपा गया था। यही मूर्ति बाद में 1842 ई. में वर्तमान मंदिर में पुनः प्रतिष्ठित की गई। इस मंदिर में हित हरिवंश महाप्रभु का चित्रपट भी पूजित रूप में स्थापित है।
यह मंदिर केवल स्थापत्य और भक्ति का केन्द्र ही नहीं, बल्कि राधा वल्लभ सम्प्रदायीय संत परंपरा और भोग-राग-सेवा के वैष्णव अनुशासन का जीवंत उदाहरण भी है।
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किंवदंती
जनश्रुति के अनुसार, राधा वल्लभ जी की मूर्ति किसी मूर्तिकार द्वारा नहीं बनाई गई थी। यह मूर्ति शिवजी द्वारा आत्मदेव नामक भक्त को चरथावल मे उनकी कठोर तपस्या के फलस्वरूप भेंट स्वरूप दी गई थी। हित हरिवंश महाप्रभु जब वृन्दावन की यात्रा पर निकले, तब देवी राधा ने उन्हें आत्मदेव की कन्याओं से विवाह करने और मूर्ति को साथ लेकर जाने का आदेश दिया।[4][5]
स्थापत्य
मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है, जो उस समय केवल शाही भवनों और किलों में प्रयुक्त होता था। इसकी दीवारें लगभग 10 फीट मोटी हैं और दो स्तरों में बनी हुई हैं। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर विशिष्ट नागर शैली में निर्मित है।[6]
प्रमुख उत्सव
- हितोत्सव – हित हरिवंश महाप्रभु की स्मृति में मनाया जाने वाला 11 दिवसीय उत्सव।
- राधाष्टमी – राधा जी के प्राकट्य दिवस पर 9 दिवसीय भव्य उत्सव।
- जन्माष्टमी – कृष्ण जन्मोत्सव।
- व्याहुल उत्सव – राधा-कृष्ण विवाह का प्रतीकात्मक उत्सव।
अन्य उत्सवों में होली, दीवाली, शरद पूर्णिमा, दशहरा, झूलन उत्सव, खिचड़ी महोत्सव, फूल बंगले, संझी उत्सव और पाटोत्सव प्रमुख हैं।[7][8][9][10]
- श्री राधा वल्लभ मंदिर का आंतरिक परिसर (वृन्दावन)
- श्री राधा वल्लभ लाल जी का विग्रह स्वरूप
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दर्शन समय
- प्रातःकाल – 05:00 AM से 12:00 PM तक
- सायंकाल – 06:00 PM से 09:00 PM तक
(समस्त समय भारतीय मानक समय - IST, UTC+05:30 के अनुसार)
समीपवर्ती स्थल
देखें भी
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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