शीर्ष प्रश्न
समयरेखा
चैट
परिप्रेक्ष्य

लखनऊ के दर्शनीय स्थल

विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

Remove ads
Thumb
बड़े इमामबाड़ा में स्थित भूलभुलैया, लखनऊ

लखनऊ के इस प्रसिद्ध इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस इमामबाड़े का निर्माण आसफउद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था।[1] यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल भुलैया है। इस इमामबाड़े में एक अस़फी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।

Remove ads

यह भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। यह घंटाघर 1887 ई. में बनवाया गया था। इसे ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में माना जाता है।[2] 221 फीट ऊंचे इस घंटाघर का निर्माण नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने सर जार्ज कूपर के आगमन पर करवाया था।

बेगम हजरत महल पार्क के समीप सआदत अली खां और खुर्शीद जैदी का मकबरा है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। मकबरे की शानदार छत और गुम्बद इसकी खासियत हैं।

Thumb
रूमी दरवाजा

बड़ा इमामबाड़ा की तर्ज पर ही रूमी दरवाजे का निर्माण भी अकाल राहत प्रोजेक्ट के अन्तर्गत किया गया है। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाजे को तुर्किश गेटवे कहा जाता है। रूमी दरवाजा कांस्टेनटिनोपल के दरवाजों के समान दिखाई देता है। यह इमारत 60 फीट ऊंची है।यही पर गदर फिल्म की शूटिंग हुई थी

यह इमामबाड़ा मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण 1837 ई. में किया गया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है। माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं दफनाया गया था। इस इमामबाड़े में मोहम्मद की बेटी और उसके पति का मकबरा भी बना हुआ है। मुख्य इमामबाड़े की चोटी पर सुनहरा गुम्बद है जिसे अली शाह और उसकी मां का मकबरा समझा जाता है। मकबरे के विपरीत दिशा में सतखंड नामक अधूरा घंटाघर है। 1840 में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माण रोक दिया गया था। उस समय 67 मीटर ऊंचे इस घंटाघर की चार मंजिल ही बनी थी। मोहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है।

Remove ads

लखनऊ रेजिडेन्सी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं। सिपाही विद्रोह के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत शहर के केन्द्र में स्थित हजरतगंज क्षेत्र के समीप है। यह रेजिडेन्सी अवध के नवाब सआदत अली खां द्वारा 1800 ई. में बनवाई गई थी।

हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा में जामी मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। जामी मस्जिद लखनऊ की सबसे बड़ी मस्जिद है। मस्जिद की छत के अंदरुनी हिस्‍से में खूबसूरत चित्रकारी देखी जा सकती है। प्रार्थना के लिए गैर मुस्लिमों का मस्जिद में प्रवेश वर्जित है।

वास्तव में यह एक चिड़ियाघर है। स्थानीय लोग इस चिड़ियाघर को बनारसी बाग कहते हैं। यहां के हरे भरे वातावरण में जानवरों की कुछ प्रजातियों को छोटे पिंजरों में रखा गया है। चिडियाघर में ही एक सरकारी संग्रहालय है जहां बहुत-सी ऐतिहासिक वस्तुएं देखी जा सकती हैं। मथुरा से लाई गई पत्थरों की मूर्तियों का संग्रह और रानी विक्टोरिया की मूर्ति देखने में बेहद आकर्षक है। संग्रहालय में मिस्र की एक ममी भी रखी हुई है जो पर्यटकों के बीच आकर्षक का केन्द्र रहती है।

Remove ads

हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी यह पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। यह गैलरी लखनऊ के उस अतीत की याद दिलाती है जब यहां नवाबों का डंका बजता था।

गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में मोती महल प्रमुख है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था। मुबारक मंजिल और शाह मंजिल अन्य दो इमारतें हैं। बालकनी से जानवरों की लड़ाई और उड़ते पक्षियों को देखने हेतु नवाबों के लिए इन इमारतों को बनवाया गया था।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

Loading related searches...

Wikiwand - on

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.

Remove ads