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शाकद्वीपीय ब्राह्मण
उत्तरीभारत ब्राह्मण जाति का एक वर्ग विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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शाकद्वीपीय ब्राह्मण, शकलद्वीपीय ब्राह्मण अथवा मग ब्राह्मण, ब्राह्मणों का एक सर्वोत्तम वर्ग है यही एक ऐसे ब्राम्हण है जिनका उल्लेख वेद और पुराणों में भी किया गया है। जो उत्तरी भारत में पाया जाता है तथा जो पुजारी, आयुर्वेदिक वैद्य आदि होते हैं। ये ब्राह्मण वर्ग में सर्वोत्तम माने जाते हैं। प्राचीन इतिहासकारों के अनुसार ये शाकद्वीप से श्री कृष्ण द्वारा जम्बूद्वीप में लाए गए थे। इन्हें पुराणों में तथा श्री करपात्रीस्वामी के अनुसार दिव्य ब्राह्मण की उपाधि दी गई है। यह हिन्दू ब्राह्मणों का ऐसा वर्ग है जो मुख्यतः पूजा पाठ, वेद-आयुर्वेद, चिकित्सा, संगीत से संबंधित है। इनकी जाति मुख्यतः बिहार तथा पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में है। इन्हें सूर्य के अंश से उत्पन्न होने के कारण सूर्य के समान प्रताप वाला ब्राह्मण माना जाता है।

शकद्वीपीय ब्राह्मण मुख्यतः मगध के थे, अतः उनको मग भी कहा गया है। आज भी मगध के आसपास ही हैं। मग के दो ब्राह्मण विक्रमादित्य काल में जेरूसलेम गये थे जो उस समय रोम के अधीन था। रोमन राज्य तथा विक्रमादित्य राज्य के बीच कोई अन्य राज्य नहीं था। इन लोगों ने ही ईसा के महापुरुष होने की भविष्यवाणी की थी। किन्हीं ग्रन्थों में द्वारका शाकद्वीप में स्थित कही गई है। वेद तथा पुराणों में इनका उल्लेख ब्राह्मणों की एक सर्वोत्तम जाति के रूप में है जिनका जन्म सूर्यदेव के अंश से हुआ था। महाभारत काल में इन्हें शाक द्वीप से जम्बू द्वीप लाया गया था।
वेद पुराणों के अनुसार साकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्य से उत्पन्न हुए तथा सूर्य के समान ही उनका तेज था। वह सभी शाकद्वीप में निवास करते थे तथा योनिज न होने से दिव्य कहलाए, यह अग्रणी सूर्योपासक माने जाते हैं।
मनुस्मृति के अनुसार सूर्यास्त के पश्चात श्राद्ध कर्म निषेध है, ऐसे में एक शाकद्वीपीय ब्राह्मण को सूर्य वरण करके श्राद्ध सम्पन्न किया जा सकता है। यह बात उनकी विशिष्टता तथा दिव्यता का सूचक है। आध्यात्मिक तंत्र तथा पुरातन विशिष्ट चिकित्सा में इनका एकाधिकार था।
भारतीय ब्राह्मण स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं इसी कारण इन्हें पूर्व में दरिद्रता आदि के श्राप भी मिले हैं। अपने इसी सूक्ष्म विचारों से वे शाकद्वीपीय ब्राह्मण को हीन भाव से देखते हैं। शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के गोत्र भी काश्यप, भरद्वाज आदि के ही होते हैं। यह संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हैं तथा भविष्य पुराण आदि में इन्हें दिव्य ब्राह्मण भी कहा गया है।
जब भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कुष्ठ रोग हुआ तब वे अत्यन्त चिंतित हो गए। तब उन्हें एक विप्र जाति के संबंध में जानकारी हुई जो शाकद्वीप में रहती थी। भगवान नें वहाँ के अट्ठारह परिवारों को जम्बूद्वीप में सम्मान पूर्वक बुलवाया। साकद्वीपीय ब्राह्मणों ने साम्ब के कुष्ठ रोग को अपने आध्यात्मिक चिकित्सा से समाप्त कर दिया। कालान्तर में मगध नरेश की आग्रह पर भगवान ने शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के बहत्तर परिवारों को मगध के विभिन्न पुरों में बसा दिया।
पुराणों में सात द्वीपों (जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप तथा पुष्करद्वीप) का वर्णन है जिनके अलग अलग वर्ण, उपद्वीप, पर्वत, सागर, इष्टदेव, नदियाँ तथा शासक हैं।
शाकद्वीप इन्ही में से एक है जिनके शासक प्रियव्रत पुत्र मेधातिथि हैं। इसमें भी सात उपद्वीप हैं जिनका नाम क्रमश: पुरोजव, मनोजव, पवमान, धुम्रानीक, चित्ररेफ, बहुरूप और चित्रधार है। इन्हीं नामके मेधातिथि के पुत्र हुए तथा उनके पुत्रों ने अपने नाम के उपद्वीपों पर राज किया। यहाँ ईशान, उरुशृंग, बलभद्र, शतकेसर, सहस्रस्रोत, देवपाल और महानस नामक सप्त मर्यादापर्वत हैं तथा अनघा, आयुर्दा, उभयस्पृष्ठि, अपराजिता, पंचपदी, सहस्रस्रुति और निजधृति नामक सात नदियाँ हैं। यहाँ की जातियाँ (वर्ण) ऋतव्रत, सत्यव्रत, दानव्रत तथा अनुव्रत हैं तथा इष्टदेव श्रीहरि हैं। इस शाकद्वीप में एक शाक नामक वृक्ष है जिसकी मनोहर सुगंध पूरे द्वीप में छाई रहती है। यहाँ के वासी, बीमारियों से दूर तथा हजारों वर्षों तक जीवित रहने वाले हैं। शाकद्वीप के चारो ओर मट्ठे का सागर है।
शाकद्वीपीय कुल में कई विद्वान हुए हैं जिनकी विद्वत्ता ने भारत को गौरवान्वित किया है। इन्होंने राजनीति, अध्यात्म, चिकित्सा, तन्त्र, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्र में अपनी ख्याति दिखाई।वराहमिहिर, शिवराज आचार्य कौण्डिन्न्यायन, आर्यभट, वाणभट्ट चाणक्य, भास्कराचार्य आदि प्रमुख शाकद्वीपीय विद्वान हैं।
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परिचय
सारांश
परिप्रेक्ष्य
शाकद्वीपीय मुख्यतः मगध के थे, उनको मग भी कहा गया है। भविष्य पुराण एवं परमाक्षर सूत्र की ज्ञानवती टीका के अनुसार भगवान् सूर्य को मकार से सम्बोधित किया गया है एवं उनका ध्यान करने से शाकद्वीपीय को मग कहते हैं।[1]
मग के विक्रमादित्य काल में जेरूसलेम गये थे जो उस समय रोम के अधीन था। रोमन राज्य तथा विक्रमादित्य राज्य के बीच कोई अन्य राज्य नहीं था। इन लोगों ने ही ईसा के महापुरुष होने की भविष्यवाणी की थी। किन्हीं ग्रन्थों में द्वारका शाकद्वीप में स्थित कही गई है। वेद तथा पुराणों में इनका उल्लेख की एक सर्वोत्तम चिकित्सक जाति के रूप में है जिनका जन्म सूर्यदेव के उपासक के रुप में था। महाभारत काल में इन्हें शाक द्वीप से जम्बू द्वीप लाया गया था।
पुराणों के अनुसार शाकद्वीपीय चिकित्सा करने वाले वर्ग हुए तथा सूर्य कि पूजा करने वाला वर्ग था। वह सभी शाकद्वीप ईरान में निवास करते थे तथा योनिज न होने से दिव्य कहलाए, यह अग्रणी सूर्योपासक माने जाते हैं।[2]
"तेजमय सूर्यांश". मूल से से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 13 जुलाई 2014.</ref>
भारतीय चिकित्सा में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते थे इसी कारण इन्हें पूर्व में दरिद्रता आदि के श्राप भी मिले हैं। अपने इन्ही सूक्ष्म विचारों से वे शाकद्वीपीय चिकित्सक को ईर्ष्या के भाव से देखते हैं।[3] शाकद्वीपीय बाद में तमाम गोत्र धारण करने लगे, जैसे काश्यप, भरद्वाज आदि के होते हैं। यह संस्कृत के विद्वान भी होने लगे हैं तथा भविष्य पुराण आदि में इन्हें चिकित्सक भी कहा गया है।
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आगमन
जब भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कुष्ठ रोग हुआ तब वे अत्यन्त चिंतित हो गए। तब उन्हें एक विप्र जाति के संबंध में जानकारी हुई जो शाकद्वीप में रहती थी। भगवान नें वहाँ के अट्ठारह परिवारों को जम्बूद्वीप में सम्मान पूर्वक बुलवाया। शाकद्वीपीय चिकित्सको ने साम्ब के कुष्ठ रोग को अपने आध्यात्मिक चिकित्सा से समाप्त कर दिया। कालान्तर में मगध नरेश की आग्रह पर भगवान ने शाकद्वीपीय चिकित्सको के बहत्तर परिवारों को मगध के विभिन्न पुरों में बसा दिया।[4]
उपलब्ध तथ्यहीन निराधार एवं काल्पनिक है कहीं भी शकद्वीपी को भारत से जुड़ा नही बतलाया है अतः इस निराधार विषय को अस्वीकार किया जाय
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बाहरी कड़ियाँ
समाचार पत्र
- शाकद्वीपीय ब्राह्मण बन्धु (पत्रिका)
- भाई बन्धु (शाकद्वीपीय पत्रिका)
सन्दर्भ
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